Sunita gupta

Add To collaction

दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय शायरी

ख़ुद को अभी तक,आजमाता ही रह गया।
आंखों में नये  ख्व़ाब ,सजाता ही रह गया।।
अंधेरा आया था,तूफ़ां से दोस्ती करके ,
मैं रात भर  च़राग, जलाता  ही रह गया ।
आंखों में नये ख़्वाब, सजाता ही रह  गया ।।
वो  देते  रहे  दिल पर , ज़ख़्म बार  बार ,
मैं  रात- दिन  मरहम ,लगाता  ही  रह गया ।।
जब  छोड़ गया  मांझी ही ,कस्ती भंवर  में,
मैं चीख चीख सबको ,बुलाता ही रह गया।
ख़ुद को अभी तक,आजमाता ही रह गया।
कुछ नाग छिपकर बैठें हैं,आस्तीन में मेरी,
मैं"मलय"उनसे गिरेबान बचाता ही रह गया।
आंखों में नये सपने ,सजाता ही रह गया ।।

सुनीता गुप्ता का

   16
6 Comments

Sachin dev

12-Oct-2022 08:06 PM

बहुत ख़ूब

Reply

Palak chopra

12-Oct-2022 07:09 PM

Very nice 👍

Reply