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लेखनी प्रतियोगिता -12-Oct-2022माँ की बाँहौ की सुनहरी यादें


         शीर्षक:-  माँ की बाँहौ की सुनहरी यादें
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             राजन  स्कूल से आकर एक पार्क में बैठ गया था वह सोच रहा था  कि अब स्कूल की फीस कैसे भरेगा क्यौकि आज उसके अध्यापक ने उसे कडे़ शब्दौ में कह दिया था कि यदि कल फीस नहीं लाया तब कल से  स्कूल में  मत आना।

      राजन को मालूम था कि उसकी सौतेली माँ उसका स्कूल जाना बन्द करना  चाहती थी। उसके पापा उसकी सौतेली माँ की ही बात मानते थे। आज उसे अपनी माँ की बहुत याद आरही थी।

     राजन जब पांच बर्ष का था तब उसकी माँ की एक लम्बी बीमारी के कारण मौत होगयी थी। इसके बाद उसके पापा ने  दूसरी शादी करली थी।  राजन की जब सौतेली माँ आई थी तब कुछ दिन तक वह उसका खयाल रखती थी।

        परन्तु जब उसका स्वयं का बेटा आगया तबसे उसने राजन को सताने के अलावा और कुछ नहीं किया था। उसकी सौतेली माँ उससे घर का पूरा काम भी करवाती थी ।उसको राजन का स्कूल जाना पसन्द नही था।

       सौतेली माँ ने एक दिन उसके पापा से बोला," देखो  राहुल के पापा अब राजन को स्कूल भेजना बन्द करो वह कलट्टर तो बनने से रहा।  मेरा बेटा हमेशा अपनी क्लास में टाप करता है राजन तो पास भी बहुत मुश्किल से हो पाता है।"

        " नहीं ऐसी बात नहीं है वह आज तक फेल नहीं हुआ है। उसको तुम पढ़ने कब देती हो मैं जब भी घर आता हूल वह तुम्हारे काम करने मे लगा रहता है। ," उसके पापा ने उसकी सौतेली माँ को समझाया।

      परन्तु राजन की सौतेली माँ पर इन बातौ का कोई असर नहीं हुआ और उसने उसके स्कूल की फीस देना बन्द करदी थी । राजन ने दसवी की परीक्षा पास करली थी अब वह ग्यारहवी में था।

     आज जब उसको स्कूल से  फीस जमा करवाने के लिए  कहा गया था वह इसी लिए पार्क में बैठकर अपनी माँ को याद करके अपनी किस्मत पर आँसू बहा रहा था।

                 वह रोते हुए माँ का फोटो हाथ मे लेकर कह रहा था," माँ तुम मुझे अकेला छोड़कर क्यौ चली गयी। अब यहाँ मेरा कोई नहीं है । अब तो पापा भी बहुत बदल गये है। वह मौसी से बहुत डरते हैं। माँ तू मुझे भी अपने पास बुलाले अब मुझे यहाँ रहना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता है। मौसी मुझे बचा हुआ खाना देती है पेट भर खाना तो बहुत दिनौ से नहीं खाया है। माँ अब तो मौसी ने स्कूल की फीस देने से भी मना कर दिया है ।वह कहती हैं कि तू पढ़कर कलट्टर तो बनने से रहा।

          माँ तू कितने प्यार से खिलाती थी स्कूल के लिए कितनी चीजे रखती थी। माँ कभी तो यहाँ से भागकर जाने का मन करता है माँ तू एक बार फिर से अपनी बाहौ मे लेकर प्यार करले।" इतना कहकर राजन बुरी तरह रोने लगा । यहाँ उसके आँसू पौछने वाला कोई नहीं था।माँ तू अपनी बाँहौ में भरकर कितना प्यार करती थी। मै उस प्यार के लिए तृस गया हूँ। अब तू मुझे भगवान से कहकर अपने पास बुलाले।

          शाम होचुकी थी परन्तु राजन का घर जाने को मन नहीं खर रहा था। वह पार्क मे रखी हुई बैन्च पर लेट गया। 

     जब राजन घर नहीं पहुँचा तब उसके पापा को चिन्ता हुई और वह उसको खोजते हुए पार्क में आगये।  जब उसके पापा ने उससे घर न जाने का कारण पूछा तब उसने घर जाने से इन्कार कर दिया।

      वह बोला," मुझे नहीं जाना उस नरक में जहाँ खाने को भरपेट खाना भी नहीं मिलता हो। मौसी ने स्कूल की फीस भी देने से मना कर दिया है। मै कल से कोई काम  करना शुरू करूँगा।  वह कोई घर है ?  आपको मुझसे कोई मतलब ही नहीं है। आप घर जाओ।मुझे मेरी तकदीर के सहारे छोड़ दो । मै आपका बेटा नहीं हूँ आप तो  केवल राहुल के पापा हो। आज मेरी माँ जिन्दा होती तब ऐसा हाल नहीं होने देती।

     राजन की बातौ ने   राकेश को सोचने पर मजबूर कर दिया और वह राजन को बहुत मुश्किल से घर लेकर आये और स्कूल की फीस भी भरी उसके बाद उसको होस्टल में भर्ती करवा दिया।

     वहाँ रहकर वह पढ़ लिखकर बडा़ आदमी बनगया। और उसका सौतेला भाई कुछ नहीं कर सका। तब उसकी सौतेली माँ को भी अपनी भूल का अहसास हुआ। और अन्त मे उसको अपनी बाहौ मे भरकर प्यार किया और अपनी भूल की क्षमा माँगी।

दैनिक प्रतियोगिता हेतु रचना।

नरेश शर्मा "  पचौरी "

12/10/2022

     
     

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16 Comments

दशला माथुर

14-Oct-2022 06:58 PM

लाजवाब 👌

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बेहतरीन रचना

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Khan

14-Oct-2022 04:10 PM

Bahut khoob 💐👍

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