परहित रंग
सम्मानित मंच सादर नमन।
विषय- गीत।
शीर्षक- परहित रंग चढ़ा नहीं.
दिनाँक11/01/2022.
परहित रंग चढ़ा नहीं जिनके,
वे राम भजन क्या गाएँगे।
मीत बने हों काँटे जिनके,
फूल उन्हें क्या भाएँगे।
लोक-लाज जग छोड़े जिनने,
उन्हें न कोई भातें हैं।
प्रीति-प्रतीति नहीं मन जिनके,
कभी नहीं सुख पाते हैं।
राग - द्वेष उर भरे निरंतर,
सद्गुण कैसे पाएँगे।
परहित रंग........
भक्ति कथाओं की समरसता,
जिनको 'सुमन' नि भाती है।
सरस सहज सद्भाव न जिन में,
पावनता घट जाती है।
पर दुख में जो दुखी न होते,
देवत्व कहाँ से पाएँगे।
परहित रंग........
ऋषियों के संदेश न सुनते,
नित्य रूढ़ि में पलते हैं।
दुर्गुण नित सम्मोहित करते,
पर सुख से नित जलते हैं।
क्रूर भावना हृदय भरी है।
दोजख निश्चित जाएँगे।
परहित रंग चढ़ा नहि जिनके,
वे राम भजन क्या गाएँगे।
मीत बने हों काँटे जिनके,
फूल उन्हें क्या भाएँगे।।
सुनीता गुप्ता कानपुर
Suryansh
16-Oct-2022 07:10 PM
बहुत ही उम्दा और सशक्त रचना
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Khan
14-Oct-2022 04:09 PM
Bahut khoob 💐👍
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आँचल सोनी 'हिया'
13-Oct-2022 10:45 PM
Very nice 👌🌺💐
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