माँ से बढ़कर कोई नहीं

तर्ज-  सदा ना रहा है सदा ना रहेगा जमाना

जहां में वही है बड़ा भाग्यशाली। 
माता की ममता जिसने है पाली। 
1
जिसके भी सिर पर, मां की दुआ है । 
जमाने में उसका ,बुरा कब हुआ है । 
गंगा और गीता है , माँ शेरावाली
2
ईश्वर से बड़कर है, माता की मूरत। 
जिसकी है माँ फिर,उसे क्या जरूरत। 
माता है सीता और, माता है काली। 
3
माता के सुत पर, अगनित से ऋण हैं।
माता के ऋण से ना, देवता उऋण हैं।
कृपा कोर करती है, सदा ही कृपाली। 
4
करती सुतों पै ,सभी कुछ समर्पण। 
माता का मन है, मानों कोई दर्पण। 
माता की ममता है, जग में निराली । 
5
माता की गोद में, मानवता पलती। 
माता के कारण ही, सृष्टि है चलती। 
मां की दुआ कभी, जाती ना खाली। 
6
भूलो सभी को ना, माँ को भुलाना। 
माता के दूध का भी, करजा चुकाना। 
विनोदी विमल माँ के, दर का सवाली।

विनोदी महाराजपुर

   16
5 Comments

Suryansh

20-Oct-2022 11:40 PM

बहुत ही उम्दा और सशक्त रचना

Reply

Sachin dev

15-Oct-2022 07:07 PM

Amazing

Reply

Ayshu

15-Oct-2022 05:41 PM

Shaandar

Reply