लेखनी प्रतियोगिता -16-Oct-2022
(प्रतियोगिता हेतु रचना)
" करिए दान "
नहीं दिखावा अंतर्मन से,
दान पुण्य करना चहिए।
दान बड़ा न छोटा होता,
दान सभी को करना चहिए।...
दानपात्र हैं कुलीन ब्राम्हण,
और महात्मा ज्ञानवान।
सत्य बोलने वाला, वैष्णव,
शांतचित्त हो बुद्धिमान।।
वृद्ध, अपंग, जिसे जरूरत,
दान उसी को करना चहिए।...
जाना जग से अटल सत्य है,
इससे कौन कहाँ बच पाया?
किंतु 'अमर' हो गए देश में,
जिसने परहित धर्म निभाया।
दान स्वैछिक क्षमता भर,
यथाशक्ति ही करना चहिए।...
कवच कुंडल दिए दान में,
कर्ण बड़े कहलाये दानी।
जन-जान को है जुबानी,
हरिश्चंद्र की सत्य कहानी।
अस्थि दानकर्ता दधीचि का,
नाम याद भी रहना चहिए।...
कुछ जिन्दा में कुछ मरने पर,
कुछ न कुछ तो करिए दान।
रक्तदान कर लो जिन्दा में,
कर मरने पर नेत्र का दान।
मानव जीवन सफल बनाकर,
कुछ करके ही मरना चहिए।...
मौलिक/
अमर सिंह राय
नौगांव, मध्य प्रदेश
Ajay Tiwari
17-Oct-2022 08:21 AM
Nice
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Khan
17-Oct-2022 12:34 AM
Bahut khoob 🙏🌺💐
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
17-Oct-2022 12:27 AM
बहुत ही उत्कृष्ट सृजन
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