Add To collaction

30 days festival - ritual competition -17-Oct-2022 ( 2 ) दीपावली



शीर्षक = दीपावली



दीपावली यानी उजाले का त्यौहार, चारो और दियों की जगमग आसमान में छायी काली अमावस्या की रात को दियों और पटाखों की रौशनी से उजागर करने की रात।चारो और ख़ुशी बाटने का पर्व, एक दूसरे को मिठाई खिला कर दीपावली की खुशियाँ बिखेरने का त्यौहार।


बरसो पहले राम जी और माता सीता के घर वापसी पर अयोध्या वासियों द्वारा मनाई गई ख़ुशी को आज भी पारम्परिक रूप से मनाया जा रहा है, भले ही आज के दौर में और उस दौर में ज़मीन आसमान का फर्क है, पहले घी के दिए जलाये गए थे और अब भी बहुत सी जगहों पर घी के दिए जलाये जाते है अन्यथा ज्यादातर लोग इलेक्ट्रॉनिक लाइट्स लगा कर ही अपने घर और मोहल्लो को उजागर करते है,


ऐसे ही उस रात भी दिवाली में पूरा शहर जगमगा रहा था, सिर्फ धरती ही नही आकाश भी पटाखों की रौशनी से जगमग कर रहा था। उस अमावस्या की रात के काले घने अँधेरे को कम करने के लिए ही उस रात हर घर और हर गली, मोहल्ले और दुकानों को दुल्हन की तरह सजाया गया था, सब घरों से शाम की आरती की आवाज़े आ रही थी। अमीर लोगो के घर दुल्हन की तरह सजे हुए थे और माध्यम वर्ग के लोगो के घर अपने हिसाब से सजे हुए थे।


रात के 10 बज चुके थे, चारो और से पटाखों की आवाज़े आ रही थी। उस चकचोँद रौशनी में एक घर जो की सड़क के दूसरी तरफ बना हुआ था। उस घर में अंधेरा था, बस एक दिया सा जल रहा था वो भी शायद उस झोपडी में बने मंदिर में जल रहा था।


एक औरत जो अपने पास लेटे बच्चें के सर पर हाथ फेर रही थी जो की सौ गया था, वो उस झोपडी की खिड़की से सड़क के उस पार बने घरों को जगमगाता देख और फिर अपनी अंधकार से भरी झोपडी को देख सोच रही थी कि वो कितनी बदकिस्मत है, कि उसके पास इतने पैसे भी नही थे कि वो अपने प्रभु के आने कि ख़ुशी में अपने घर को उजागर ही कर लेती,


लेकिन तब ही वो सोचती है और अपने आप से कहती है, मैने तो पूरी कोशिश की थी, महीनों पहले से ही माटी ला कर दीपक बना रही थी, की दिवाली पर बिक जाएंगे तो मैं भी अपनी इस कुटिया को सजा लूंगी

पर क्या कर सकते है, सड़क किनारे बैठी बूढी अम्मा से दिए कौन खरीदता है आज के ज़माने में, सब घर बैठे ही मंगा लेते है बड़ी बड़ी दुकानों से। उन्हें लगता है तीज त्यौहार पर हम कुछ ज्यादा पैसे कमा कर अपनी झोपडी से महल में आ जाएंगे, हमें कहाँ जाना है बस हमें हमारी मेहनत मिल जाए और क्या चाहिए होता है हमें, इसी बहाने शायद हमारे घर में भी रौशनी हो जाती है दिवाली पर हमें भी उम्मीद लग जाती है की शायद इन चम चमाती गगन चुम्बी ईमारतो के बीच जिनके घरों में सोने चांदी के भगवान की मूर्तीयाँ की पूजा होती है,56 भोग लगाए जाते है, शायद इसी बहाने भगवान हमारे घर भी आ जाए थोड़ी बहुत लक्ष्मी माता का आशीर्वाद हम तक भी पहुंच जाए, लेकिन शायद इस बार तो इस अंधकार भरे घर में कोई भी नही आएगा।जहाँ एक आटे का दिया जिसका तेल भी खत्म होने को है जल रहा है, बेटे को भी कह कर सुला दिया की सोजा सपने में भगवान जी आकर तुझे ढेर सारे पटाखे देकर जाएंगे।


अपने बेटे के सर पर हाथ फेरा कर मन ही मन में सोच रही, राधिका जी के कानो में किसी के लफ्ज़ सुनाई दिए 

क्या मैं अंदर आ सकता हूँ, माँ जी?

"कौन बेटा, किससे मिलना है?" राधिका जी ने पूछा

"माँ जी! मैं राहगीर हूँ कुछ देर यहाँ रुकना चाहता हूँ, आपकी आज्ञा हो तो, क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?" बाहर खड़े एक आदमी ने कहा


"आ जाओ बेटा, पर आराम से आना बहुत अंधेरा है, अंदर " राधिका जी ने कहा

वो आदमी उस झोपडी के अंदर आता और राधिका जी के पास आकर उन्हें प्रणाम करते हुए पूछता है " अम्मा! क्या तुम दिवाली नही मनाती हो? घर में इतना अंधेरा क्यू है?


उसके मुख से ये सुन राधिका जी मुस्कुराई और उसकी तरफ देखने लगी।


"क्या हुआ? माँ जी कुछ गलत कहा मैने " उस आदमी ने पूछा

राधिका जी ने अपनी मुस्कान को अपने चेहरे से गायब किया और थोड़ा ठहर कर बोली " बेटा त्यौहार तो सिर्फ अमीर लोग मनाते है, हम गरीब लोगो को जिस दिन भर पेट खाना मिल जाए उसी दिन हमारा त्यौहार होता है, मन तो मेरा भी बहुत था, अपने घर को भी सजाने का, अपने प्रभु के आने की ख़ुशी का जश्न मनाने का 56 भोग से सजी थाली से उनकी आरती उतारने का, उन्हें अपने घर बुलाने का, लेकिन अब लगता है की वो क्यू ही आएंगे मेरे घर, मैं तो अपनी इस झोपडी को भी नही सजा सकी, मेरा प्यार उनके प्रति सिर्फ एक दिखावा है, "


सामने बैठे सज्जन पुरुष ने ज़ब राधिका जी की बात सुनी तो बोले " आपको ऐसा क्यू लगता है अम्मा, की भगवान आपकी इस झोपडी में नही आएंगे, जबकि ईश्वर तो कण कण में विदमान है "


"ऐसा इसलिए बेटा, क्यूंकि मैं जो की कहने को तो अपने भगवान से बहुत प्रेम करती हूँ, उनकी महिमा का गुणगान करती हूँ, लेकिन आज मेरे पास इतना धन भी नही था की आज दीपावली पर अपने घर को दियों से ही रोशन कर देती, घर में थोड़ा सा आटा और तेल मौजूद था, जिसकी रोटी बना कर अपने बेटे की भूख शांत कर दी और थोड़े से आटे का दिया बना कर उसमे तेल जला कर भगवान जी की मूर्ती के सामने रख दी, घर में इतना भी तेल और आटा मौजूद नही की एक दिया जला कर घर के बाहर ही रख सकूँ ताकि किसी को ऐसा न लगे की यहाँ कोई रहता नही है, अब ऐसे भगवान तो किया इंसान भी नही आएंगे इस घर में, क्यूंकि वो तो वहाँ जाएंगे जहाँ पूरे रीति रिवाज़, के साथ उनकी महिमा का गुण गान हो रहा होगा, जहाँ उनकी मूर्तीयों को भिन्न भिन्न आभूषण और वस्त्र पहनाये गए होंगे उसी के साथ उन्हें भिन्न भिन्न व्यंजनों के भोग लग रहे होंगे, आखिर वो मेरी कुटिया में क्यू आने लगे जहाँ न तो उनकी मूर्ती ने कोई अच्छा वस्त्र और आभूषण पहना है और न ही कोई अच्छा भोग ही लगा है " राधिका जी ने कहा


सामने बैठे सज्जन पुरुष जो की राधिका जी की बातें सुन रहे थे, मुस्कुरा कर उनकी तरफ देख कर बोले " माँ जी आप जानती हो, आज कल त्योहारों पर जो सच्ची आस्था और निष्ठा ईश्वर के प्रति देखी जाती है, वो आप जैसी झोपडी और कच्चे मकानों में रहने वाले लोगो में ही देखी जाती है


ये बड़े बड़े घरों और बिल्डिंग्स में रहने वाले लोग तो सिर्फ और सिर्फ एक दूसरे को दिखाने, एक दूसरे से बराबरी करने, गली मोहल्ले वालो से अपनी और अपने सजे घर और भगवान को चढ़ाये गए आभूषण, वस्त्रो और भोग की तारीफ सुनने, अपनी एक अलग छवि बनाने के लिए ये सब त्योहारों पर इस तरह के ढोंग करते है असल में इनके मन में ईश्वर को लेकर कोई भी गहरी आस्था और निष्ठा नही होती, और जिन लोगो में होती है वो कुछ भी करने से पहले गली मोहल्ले में ढिंढोरा नही पीटते फिरते न ही ईश्वर को चढ़ाये गए वस्त्र, आभूषण और भोग का और न ही दिवाली पर सजाये अपने घर और फोड़े गए पटाखों का।


भले ही वो लोग दुनिया को दिखाने के लिए ये सब ढोंग रचाते फिरते है, लेकिन ऊपर बैठा ईश्वर जो की दिलों के हाल बखूबी जानता है, वो जानता है की कौन मेरा असल भक्त है और कौन सिर्फ दिखावे के लिए मुझे याद कर रहा है, किसके घर मुझे जाना है और किसके घर नही वो बेहतर निर्णय लेने वाला है, आप अपनी दरिदरता पर इस तरह मायूस न हो, और न ही ये सोचे की इस जगमगाती छिलमिलाती बिल्डिंग और घरों के बीच ईश्वर आपके इस अँधेरे भरे घर को देख नही पाएंगे जहाँ सिर्फ एक दिया जल रहा है जो की अब तेल ख़त्म होने की वजह से समाप्ति की और है

जिस तरह इस दिए की रौशनी मुझे आप तक ले आयी उसी तरह आपकी श्रद्धा और आस्था भी ईश्वर को आपके घर ले आएगी।


अब मैं चलता हूँ, फिर कभी आऊंगा आपके घर आपसे मिलकर अच्छा लगा ये कह कर वो सज्जन पुरुष राधिका जी के घर से चले आये।


वो बाहर ही निकले थे कि राधिका जी अँधेरे में खुद को संभालती हुयी उनके पीछे आयी उनसे उनका नाम जानने लेकिन ज़ब तक वो जा चुके थे।


राधिका जी सोच में पड़ जाती है कि आखिर कोई इतनी जल्दी कहा जा सकता है, वो कुछ और सोचती तब ही उनकी नज़र एक रौशनी कि और जाती है वो करीब जाकर देखती है तो एक दिया उनकी झोपडी के दरवाज़े कि चौखट पर जगमगा रहा था।


ये देख राधिका जी हैरान हो गई कि आखिर वो दिया कहा से आया, लेकिन थोड़ी देर बाद उन्हें समझ आ गया था कि वो सज्जन पुरुष कोई और नही साक्षात् भगवान ही थे, जो उसके घर आये थे।
राधिका जी कि ख़ुशी का ठिखाना नही था, ज़ब उन्हें इस बात का आभास हुआ।


30 days festival / ritual competition 








   19
3 Comments

Renu

19-Oct-2022 02:41 PM

👍👍🌺

Reply

Palak chopra

18-Oct-2022 11:08 PM

Nice 👍

Reply

Supriya Pathak

18-Oct-2022 09:08 PM

Achha likha hai 💐

Reply