Sunita gupta

Add To collaction

दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय कविता

*अजी ! चुपचाप रहिए*

लिख रही है आज कविता, 
लिपि,
अजी ! चुपचाप रहिए |

छंद के उजले शहर में
भाव आते हैं,
सो रही अनुभूतियों को
आ जगाते हैं, 
सज रही है अक्षरों से, 
कृति, 
अजी ! चुपचाप रहिए |

वर्ण के संसाधनों से
शब्द छंदित हैं,
वास्तविकता के अलंकृत
अब्द रंजित हैं,
नाचता है व्यंजना का,
शिखि,
अजी ! चुपचाप रहिए |

गुनगुनाहट की गली से
लय निकलती है,
साँझ-वन से साधना की
जय निकलती है,
क्षितिज पर लेटी हुई है,
क्षिति,
अजी ! चुपचाप रहिए |

अभी उपसंहार के हर  
लघु कहन के पल,
ढूँढ़ते हर समस्या का
भव्य सक्षम हल,
बंद अंतिम रच रही है,
इति,
अजी ! चुपचाप रहिए

         सुनीता गुप्ता कानपुर 

   18
6 Comments

Nice 🌺 🙏

Reply

Renu

18-Oct-2022 11:46 PM

👍🌺

Reply

Palak chopra

18-Oct-2022 11:04 PM

Nice 🌺🙏

Reply