Sunita gupta

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दीपावली

त्यौहार---दीपावली 
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ढूंढि के  लाइ  औ  रौदत  माटी को,रौदत  रौदत   लोई रचाई।
चाक सहारे घुमाइ  घुमाइ, दियाली  औ  कोसा औ मटकी  बनाई।।
गणेश  औ लक्ष्मी  कै रूप निखारि,निखारि कलानु  ते आवा पै जाई।।
पेट के खातिनु  रूप  विभिन्न,
माटी  ते आकृति भिन्न रचाई।।
कुम्हार कै रूप निहारत लागत,
दूजो  ई रूप विधाता कै पाई।।
लख चौरासी विधाता रचावत,
भिन्ननु भिन्न  कुम्हार  रचाई।।
निशिदिन  काटत पेट के खातिनु, 
हाट बजार  घरैघर  जाई।।
बालक खेलत  जौन  जतोला, 
तराजुन  रूप  कुम्हार रचाई।।
ऑखिनु  राजत  मात जो लाल,
कसोरन  रूप कुम्हार  बनाई।।
काजल  ऑजतु  मातु  बतावतु,
नयन निगाह  उमर  नहि जाई।।
नयन अमावस  काजल  ऑजतु,
राजत  चंचल  नयन  जु पाई।।
तिऊ  तिउहार  अंहय  जितने  सब,
कौंनो  न कौननु  लाभहु  आई।।
संस्कृति  हिन्द रही है पुरानी, 
दादी औ नानी जु किस्सा सुनाई।।
रिषि  मुनि कै यहु धरनी  हमार,
वेद पुराण  सबै  असु  गाई।।
सुनीता गुप्ता कानपुर

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6 Comments

Bahut khoob 🙏🌺💐

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Renu

18-Oct-2022 11:54 PM

👍🌺🙏

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Palak chopra

18-Oct-2022 10:45 PM

Bahut khoob 💐🙏

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