Sunita gupta

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दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय साधना


साधना 
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   साधना करना कठिन है।।   कविता का शीर्षक
  तन- मन जब डूबा पीड़ा में,कैसे रोकूँ आह!कठिन है।
हँस कर सह लूँ दर्द सभी पर,रोक सकूँ न कराह कठिन है।
  मकड़जाल जब हो रिश्तों का,नातों का निर्वाह कठिन है।
अपने देते दर्द हरक़दम, मिले न उचित सलाह ;कठिन है।
मिठबोले झूठों के जग में;बनी रहेगी चाह, कठिन है।
बाधाओं के बियावान में;कैसे पाऊँ राह कठिन है?
रस-लय हीन कवित्त सुने जो,कैसे बोले वाह!कठिन है।
विद्वानों की भरी सभा में, क्योंकर मिले सराह?कठिन है।
सुनीता गुप्ता कानपुर

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6 Comments

बहुत ही सुंदर सृजन

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Supriya Pathak

20-Oct-2022 12:59 AM

Bahut khoob 💐👍

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