Sunita gupta

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दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय 15 अगस्तदीवाली,होली,दशहरा,ईद बाल दिवस,ओडमरक्षा बंधन

15 अगस्त या राष्ट्रीय पर्व
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फिल्म उठी कली कली नया विकास आ गया,
स्वतंत्रता दिवस लिए नया प्रभात आ गया,
द्वार द्वारा सज गए खुशी के दीप जल गए,
गीत गांव के सभी तार तार बज गए,
एकता की राह पर शांतिदीप जल गया
स्वतंत्रता दिवस लिए नया प्रभात आ गया।।
प्रत्येक देश का इतिहास उत्थान पतन से परिपूर्ण होता है। जो आज दूसरे है वह कल पुष्प उसे सुभाषित है जिसने शिशिर की बर्फीली आंधियों को सहन किया वही बसंत की बहार भी देख सकता है जिसने दुख का अनुभव किया है वही सुख की कल्पना कर सकता है जिसने मरना सीखा है वही जीने का अधिकार भी प्राप्त कर सकता है समय चक्र परिवर्तनशील है और पृथ्वी गतिशील जिस प्रकार दिन के बाद रात्रि के बाद दिन आता है ठीक उसी प्रकार सूर्यास्त के पश्चात सूर्य उदय होता है समय चक्र निर्झर की जलधारा के समान आगे बढ़ता रहता है राष्ट्र के इतिहास में परतंत्रता सूर्यास्त के समान है और स्वतंत्रता सूर्य देव के समान है।
स्वतंत्रता का महत्व पक्षी से पूछिए जो पिंजरे में बंद है खाने के लिए प्रचार भोजन उपलब्ध है परंतु उसे मुक्त पंखों के उड़ान की अमर लालसा है उस कैरी से पूछिए जो बंदी ग्रह की प्राची रो से घिरा हुआ है जहां उसके अन्य साथी गण भी है कोई कार्य भी नहीं करना पड़ता है परंतु वह स्वतंत्र वातावरण में घूमने की हार्दिक अभिलाषा पूर्ण नहीं कर सकता पराधीनता का जीवन नारकीय जीवन है। चंद्रशेखर आजाद रामप्रसाद बिस्मिल और भगत सिंह ने अपने खून से इसको शीशा गांधी गोखले और तिलक ने अपने बल्कि इसमें खाद्य दी सुभाष ने माली बनकर इसके कुसुमित कुसुमो को संग्रहित किया और नेहरू ने कांटों का ताज धारण करके अपनी आंखों से लगाया।
चिरकाल तक अंधेरे में रहने के पश्चात प्रकाश किसको नहीं भाता लगातार बरसते हुए पानी की घड़ी के उपरांत निर्मल आकाश किसे नहीं सुहाता सदियों के प्रयत्नों और शहीदों की अमर अभिलाषा स्वतंत्रता जब 15 अगस्त 1947 को आई तो समस्त देश में हर्ष की लहर दौड़ गई लाल किला तिरंगा ध्वज से सुशोभित हुआ घर-घर राष्ट्रीय ध्वज मुरझाए हुए चेहरों पर मुस्कान झांकने लगी सूखे बाग में फिर बाहर आ गई यह सुब्रमण्य थी यह कितनी आनंद आनंद दायक घड़ी थी गली-गली में तिरंगे झंडे लहराए जा रहे थे बच्चों के खेलों के आयोजन के लिए जा रहे थे फौज और पुलिस तिरंगे को सलामी दे रहे थे राष्ट्र के प्रमुख पद आसीन व्यक्ति सलामी ले रहे थे और राष्ट्र के नाम संदेश दे रहे थे सब तरफ चहल पहल का साम्राज्य था स्वतंत्रता प्राप्ति के उपलक्ष में दीप को की दीपावली मनाने का आयोजन किया गया था संसद भवन राष्ट्रीय भवन और लाल किले की छटा ही निराली थी सैकड़ों विद्युत रात्रि को भी दिन बना रहे थे सत्य बात है और घायल का कार्यक्रम चल रहा था सभी स्वतंत्रता के प्रभाव में बह रहे थे इससे अधिक पर कौन सा होगा जिसमें हिंदू मुस्लिम सिख इसाई जैन पारसी आदि सभी भाग ले रहे थे।
साम्राज्यवाद की जड़ समूल नष्ट हो गई थी और इसी दिन से प्रजातंत्र का राज्य स्थापित हुआ देश के कर्णधार न्याय मानवता धार्मिक स्वतंत्रता से भारत का भव्य भवन निर्मित करने लगे हम अपने भाग्य के स्वयं निर्माता बने भारत माता बंधन से मुक्त हो गई इसके हाथ की हथकड़ियां और पैरों में बेड़ियां तलाक से टूट गई गांधी जी के अमोघ अस्त्र अहिंसा ने 2 टैंक बालों पर विजय पाई संगठन की हुंकार बलवती हुई प्रतिवर्ष 15 अगस्त नीतियों को लेकर आता है और हमें अपना दिव्य संदेश प्रदान करता है तथा हमें सदैव जागरूक रहने की प्रेरणा देता है।
हर्ष के अतिरिक्त से आंखों में अश्रु भी झलक आते हैं। स्वतंत्रता के साथ-साथ देश खंडित भी हुआ जिस का गांव पर आज भी विद्यमान हैं देश के बंटवारे में लाखों लोगों का रक्त पास हुआ। स्वतंत्रता का दीपक तो प्रकाशित हुआ परंतु उसके परवाने नष्ट हो गए। उनकी स्मृति आज भी हमें विहल कर देती है ।
सुनीता गुप्ता सरिता कानपुर।

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8 Comments

Supriya Pathak

21-Oct-2022 05:47 PM

Bahut khoob 💐🙏🌺

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Shnaya

21-Oct-2022 03:49 PM

बिल्कुल सही

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Bahut khoob 💐👍

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