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लेखनी प्रतियोगिता -20-Oct-2022

                            आत्म बंधु 

हे परम शक्ति!
फिर से जीवन सता रहा है।
कर्कश ध्वनियां सुना रहा है।
मैं नहीं डिग सकता,
यह नियति जानती है।
किंतु मेरे अपने प्रहार कैसे सहें।

टूट जाता है एक योद्धा
जब बात अपने की नहीं अपनों के कष्ट की हो।
चाहे तुझसे दूर या तुझसे पास
हम नादान तो क्या हुआ
संतान तेरे ही तो हैं।

वर्ष पंद्रह असहनीय पाचन रोगों के साथ
मैंने बिताए हैं।
पराजय पर पराजय सही
अपमान पर अपमान पाए हैं।
जटिलता और दुर्बलता में भी मैंने कीर्तिमान बनाएं हैं।
संघर्षों की मेरे थाह कौन नाप पाएगा?
दुरबुद्धि है वह, जो मुझपे उंगली उठाएगा।
तुम्हारा कौन भक्त है? जो इतना टिक पाएगा।
एक लक्ष्य, एक उद्देश्य
सिर्फ मोक्ष इसके सिवा क्या?
नास्तिकता ने आक्रमण किया मुझपर कई बार।
पर कम ना कर सकी तुम्हारे प्रति मेरा प्यार।
हे प्रभु अब करो संभाल।


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4 Comments

Muskan khan

21-Oct-2022 08:28 PM

Nice

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बह नहीं वह होगा जी

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बहुत ही सुंदर सृजन

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