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दुख की बात

दुख की बात

  आज मेरा मन कुछ अधिक खिन्न है। इस खिन्नता का कारण और कुछ नहीं अपितु खुद पर विश्वास ही है। लेखनी टीम द्वारा इस बार उपन्यास प्रतियोगिता के लिये मेरे उपन्यास वैशालिनी को एकदम नजरंदाज किया है। यह बड़ी दुख की बात लगी। मात्र दस लेखकों ने उपन्यास लेखन में भाग लिया था। उसमें वैशालिनी एक अलग ही तरह का उपन्यास लिखा गया है। प्रेम की कहानियों में कहीं इस तरह की कहीं इस तरह की भी कहानी हो सकती है, ऐसा कल्पना करना भी किसी के लिये आसान नहीं है। वैशालिनी बहुत हद तक यथार्थवादी कहानी है। किसी के गुण बहुत समय बाद में ही समझ में आते हैं। प्रथम प्रेम तो रूप से ही होता है। पर रूप पर आधारित प्रेम बहुत अधिक टिकता नहीं है। जबकि गुणों पर आधारित प्रेम बहुत अधिक परिष्कृत होता है। इसलिये वह एक बार जन्म लेकर कभी मरता नहीं है।

  मुझे दुख हुआ है कि ऐसे अनोखे उपन्यास की निर्णायक मंडल ने अवहेलना की है। शायद निर्णायक मंडल इस उपन्यास की गहराई को समझ ही नहीं पाया है। अथवा संभव यह भी है कि निर्णायक मंडल ने इस उपन्यास को पूरा पढा ही नहीं है।

  अहंकार और आत्मविश्वास के मध्य बहुत कम अंतर होता है। संभव है कि निर्णायक मंडल मेरी बात को मेरा अहंकार माने। पर ऐसा बिल्कुल नहीं है। लेखनी मंच पर मेरी रचनाओं की हमेशा तारीफ होती रही है। तथा इस प्रतियोगिता के लिये मैंने अपना स्तर बढाया ही है। उसके बाद भी मेरी रचना को कहीं भी स्थान न मिलना मन को विचलित तो कर ही रहा है। 

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5 Comments

Bahut khoob 🙏🌺

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Khan

21-Oct-2022 10:37 PM

🙏

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shweta soni

21-Oct-2022 08:30 PM

महोदय, निर्णायक मंडल के सदस्यों ने कुछ सोच कर ही फैसला किया होगा। आप निराश ना हो आपकी रचनाएं हमेशा से ही विजेताओं की लिस्ट में रहीं हैं।‌‌🙏

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