दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय प्रभू का संकीर्तन
आज का प्रभु संकीर्तन। हमें भगवान को सर्वश्रेष्ठ अर्पित करना चाहिए,भले ही वह थोड़ा हो।पढ़िए।
.एक नगर मे एक महात्मा जी रहते थे और नगर के बीच मे भगवान् का मन्दिर था..
.वहाँ रोज कई व्यक्ति दर्शन को आते थे और ईश्वर को चढाने को कुछ न कुछ लेकर आते थे।
.एक दिन महात्मा जी अपने कुछ शिष्यों के साथ नगर भ्रमण को गये तो बीच रास्ते मे उन्हे एक फल वाले के वहाँ एक आदमी कह रहा था की कुछ सस्ते फल दे दो भगवान् के मन्दिर चढ़ाने है। थोड़ा आगे बढे तो एक दुकान पर एक आदमी कह रहा था की दीपक का घी देना और वो घी ऐसा की उससे अच्छा तो तेल है।
.आगे बढ़े तो एक आदमी कह रहा था की दो सबसे हल्की धोती देना एक पण्डित जी को और एक किसी और को देनी है।
.फिर जब वो मन्दिर गये तो जो नजारा वहाँ देखा तो वो दंग रह गये...उस राज्य की राजकुमारी भगवान् के आगे अपना मुंडन करवा रही थी...
.वहाँ पर एक किसान जिसके स्वयं के वस्त्र फटे हुये थे पर वो कुछ लोगों को नये नये वस्त्र दान कर रहा था।
.जब महात्मा जी ने उनसे पूछा तो किसान ने कहा, हे महात्मन चाहे हम ज्यादा न कर पाये पर हम अपने ईश्वर को वो समर्पित करने की ईच्छा रखते है जो हमें भी नसीब न हो...
.जब मैं इन वस्त्रहीन लोगों को देखता हूँ तो मेरा बड़ा मन करता है की इन्हे उतम वस्त्र पहनावे।
.जब राजकुमारी से पूछा तो उस राजकुमारी ने कहा, हे देव एक नारी के लिये उसके सिर के बाल अति महत्वपुर्ण है और वो उसकी बड़ी शोभा बढ़ाते है..
.मैंने सोचा की मैं अपने इष्टदेव को वो समर्पित करूँ जो मेरे लिये बहुत महत्वपुर्ण है इसलिये मैं अपने ईष्ट को वही समर्पित कर रही हूँ।
.जब उन दोनो से पूछा की आप अपने ईष्ट को सर्वश्रेष्ठ समर्पित कर रहे हो तो फिर आपकी माँग भी सर्वश्रेष्ठ होगी तो उन दोनो ने ही बड़ा सुन्दर उत्तर दिया।
.हे देव, हमें व्यापारी नही बनना है और जहाँ तक हमारी चाहत का प्रश्न है तो हमें उनकी निष्काम भक्ति और निष्काम सेवा के अतिरिक्त कुछ भी नही चाहिये।
.जब महात्मा जी मन्दिर के अन्दर गये तो वहाँ उन्होने देखा वो तीनों व्यक्ति जो सबसे हल्का घी, धोती और फल लेकर आये... साथ मे अपनी मांगो की एक बड़ी सूची भी साथ लेकर आये और भगवान् के सामने उन मांगो को रख रहे है।
.तब महात्मा जी ने अपने शिष्यों से कहा, हे मेरे अतिप्रिय शिष्यों जो तुम्हारे लिये सबसे अहम हो जो शायद तुम्हे भी नसीब न हो जो सर्वश्रेष्ठ हो वही ईश्वर को समर्पित करना...
.और बदले मे कुछ माँगना मत और माँगना ही है तो बस निष्काम-भक्ति और निष्काम-सेवा इन दो के सिवा अपने मन मे कुछ भी चाह न रखना।
इसीलिये हमेशा याद रखना की भले ही थोड़ा ही समर्पित हो पर जो सर्वश्रेष्ठ हो बस वही समर्पित हो।
जय जय श्री राधे कृष्णा जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।
Mahendra Bhatt
29-Oct-2022 01:03 PM
बहुत खूब
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Khan
28-Oct-2022 12:03 PM
Very nice 👍
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Raziya bano
27-Oct-2022 09:06 PM
Bahut khub
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