25 से 75 तक!!



 25 से 75 तक!!
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अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु '
अंत:क्रम -

@कुछ यह भी :25 से 75 तक
 @समर्पण 
@संयुक्त राष्ट्र संघ के 25 वर्ष
@श्री रामचन्द्र मिशन के75 वर्ष
@हमारे शिक्षण के 25 वर्ष
@कटरा,हम व श्रीरामचन्द्र मिशन, शाहजहांपुर
@भारत, अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र संघ एवं विश्व शांति की भावी सम्भावनाएं
@शिक्षा...?!
@हम स्वयं अपने भाग्य विधाता
@प्रकृति अभियान/यज्ञ/नियम व प्रबन्धन
@सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर!आत्म विश्वास, प्राण प्रतिष्ठा..?गुरु प्रेरणा-प्राणाहुति
@भेद क्यों?
@क्यों डर?!
@सफाई:अतीत से मुक्ति!आत्मिक वर्तमान से जुड़ाव की तैयारी
@महामानव की ओर:चलते चलते
@अंततः
@सहज मार्ग प्रार्थना!

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(सम्पादकीय)
25वें साल पर 75वां वर्ष!
@आशांक बाबू गुप्ता

 धरती पर मानव एक ऐसा प्राणी है जिसे शिक्षा व विद्यालय शिक्षा के बाद भी निरंतर सीखने की आवश्यकता होती है हमने कुछ बुजुर्ग देखे हैं  उनको देखकर लगता है बे जीवन में क्या हुए उन्होंने जीवन में क्या प्राप्त किया  आदित्य जीवन को हमसे दूर करती हैं सहजजीवन से हमें दूर करती हैं? 12 जून 2017 को गुरुजी अशोक कुमार वर्मा बिन्दु की प्रेरणा से हम प्रशिक्षक श्री कैलाश चंद अग्रवाल पंजाबी कॉलोनी तिलहर शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश से प्रथम प्रणाहूति लेकर श्री राम चंद्र मिशन एवं हार्टफुलनेस से संबंध हुए जिसके बाद हमने महसूस किया आदतें हमारे जीवन के लिए कितनी महत्वपूर्ण हो जाती हैं महापुरुषों के बताए संदेशों गाड़ियों लक्ष्यों पर निरंतर चिंतन मनन अभ्यास नियमित साधना स्वाध्याय सत्संग आज की जीवन में हर पल आवश्यकता होती है इस सब के बावजूद मन वचन व कर्म से हम प्राकृतिक संसार इंद्रियों आंख से प्रभावित होकर कुछ ऐसा करते जाते हैं जो हमारे जीवन में बड़े गहराई तक घुस जाता है जिससे हम अंदर ही अंदर संघर्ष करते रह जाते हैं सिर्फ जो जटिलताओं को उत्पन्न करता है हमको सूर्यास्त के समय बस समय-समय पर मन सफाई के नियंत निर्मली करण प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है जिसके बावजूद अंदर गहराई में कुछ ऐसा होता है जो हमारे व्यक्तित्व में भी हावी होता है हम कोशिश करते ही रह जाते हैं बाबूजी महाराज ने इस लिए हमें अभ्यासी शब्द दिया है शिष्य गुरु तो दो शब्द एक मन होते हैं 75 मा भाग से जीवन का सनातन संस्कृति आधार पर सन्यास में प्रवेश का है संन्यास पर भारतीय ग्रंथों में काफी कुछ कहा गया है निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि सन्यास आश्रम अर्थात 75 वर्ष के साथ हमें मृत्यु के साक्षात्कार से परे निकलकर अनंत यात्रा का साथी हो ही जाना चाहिए साक्षरता से संबंध उतना ही रहना चाहिए जितना संबंध आत्मा बाहर मास्टर इससे है हमने कुछ बुजुर्ग देखे हैं हम तो उनके पास इसलिए जाते हैं ताकि हम उनसे प्रेरणा लें उनके अनुभवों से कुछ सीखे लेकिन हमें मायूसी मिलती है जीवन जीने का मतलब अतीत में ही जीते रहना नहीं है हमारे वर्तमान का आधार अतीत अवश्य है लेकिन हमारा जीवन जीने का लक्ष्य भविष्य है पहला कदम हमारे कदम की तैयारी है हर कदम अगले कदम की तैयारी है सहज मार्ग में अभी हमारी छोटी समझ यही है कि हमें असल को जीना अति आवश्यक है क्रांतिकारी भगत सिंह 23 वर्ष की अवस्था में फांसी पर झूल गए भी आखरी वक्त समाज की आवश्यकता को अस्वीकार कर यथार्थवाद व सहज ज्ञान को स्वीकार कर चले गए फांसी पर चलना है तो चलना है यह स्थूल यथार्थ है सिर्फ यह आत्मा शरीर मरना ही है इससे आगे भी अर्थात है मरना है ही लेकिन इस सोच के साथ भविष्य के साथ या अतीत के साथ या वर्तमान की स्थितियों हालमा शरीर की परेशानियों हार्ड मां शरीर की मृत्यु या फांसी पर चिंता करके अनेक बुजुर्ग मिलते हैं वे अपने हाल में शरीर की परेशानियां हाड मास शरीर की मृत्यु के चिंता में उलझे हैं वे हमें क्या प्रेरणा देंगे गांधी की आत्मकथा क्या कहे गांधी की आत्मकथा और भगत सिंह के पत्रों में से आप किसे महत्व देना चाहेंगे हम किसे महत्व दें हमारे एक सर जी का कहना है जीवन के शुरुआती 25 वर्ष जीवन के क्रीम एज हैं पार्थ सारथी राजगोपालाचारी जी कहते हैं प्रतिनवा प्रयास की अवस्था कहा जाता है शुरुआती 25 वर्ष ब्रह्मचारी जीवन है ब्रह्मचारी आश्रम है सनातन संस्कृति के अनुसार जीवन को चार भागों में बांटा गया है ब्रह्मचर्य आश्रम गृहस्थ आश्रम वानप्रस्थ आश्रम बस सन्यास आश्रम आजकल के दूषित वातावरण में कितना आसान है जीवन के शुरुआती 25 वर्ष  ब्रह्मचारी जीवन है हम सवरने बस समझने की कोशिश करते करते भी क्या हो जाते हैं ऐसे में निरंतर गुरु की शरण महापुरुषों के संदेशों वालियों के चिंतन मनन स्वाध्याय ने में साधना नियमित सत्संग में रहना अति आवश्यक है अनेक बुजुर्गों के पास करीब जाने से कुछ का अंडरग्राउंड अर्थात अचेतन मन बड़ा जटिल महसूस होता है वह अभी नींद में वही सपना देख रहे होते हैं जो किशोरावस्था और युवावस्था में देखते थे कैसा विकास  विकास यही कि जीवन भर रोटी कपड़ा मकान साहब की चापलूसी में लगे रहे अच्छी-अच्छी बातें करते रहे लेकिन अंदर ही अंदर हो क्या रहे थे हमारे वैश्विक आध्यात्मिक मार्गदर्शन श्री कमलेश डी पटेल दास जी ठीक कहते हैं हम हो क्या रहे हैं यह महत्वपूर्ण है उम्र बढ़ते बढ़ते हम खेलने चले ईर्ष्यालु आज होते जाएं फार्मा शरीर की ही चिंता से सिर्फ परेशान रहे तो जीवन में क्या किया।

# ये जो 25 वर्ष #
'
25 वर्ष पर....'  अर्थात विद्यार्थी जीवन पर पूरा जीवन टिका है यह इंसान विद्यार्थी जीवन या 25 वर्ष तक का जीवन कैसा दिया है इस पर शेष जीवन निर्भर है किसी को यह महसूस ना हो तो अलग बात परिवार व समाज के वातावरण का प्रभाव प्रभाव को ग्रहण करने की समझ का असर मानव के व्यक्तित्व पर पड़ता है हमारे सोचने के तरीके का असर जीवन पर पड़ता है हमारी असलियत सिर्फ हमारा हाल मार शरीफ वस्त्र गाड़ी बंगला आज नहीं है बोलचाल का ढंग नहीं है यह हमारा बाहरी व्यक्तित्व है जो उम्र बढ़ने और पदच्युत होने के बाद गरीबी आने पर या अस्वस्थ होने पर अपनी चमक खो सकता है हमारे संस्कार आदतें समझ चेतना का स्तर नजरिया आदि मरने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ते अपने व्यक्तित्व को पहचानना अति आवश्यक है पहचान कर उसे जीना वैसे तो सीखने की प्रक्रिया निरंतर चलती है लेकिन किशोरावस्था और युवावस्था में हमारे प्रयास और प्रथम के स्तर अति महत्वपूर्ण है मन वचन और कर्म में विभिन्नता प्रयास में अंतर निर्भर करता है हमारे भविष्य को । एक बात बचपन की हमें जीवन भर याद रहती है एक भूल जाते हैं इसका कारण क्या है हमारे रुचि रुझान नजरिया समझ आज का स्तर जीवन में महत्वपूर्ण हो जाता है हमारा जज्बा उत्साह आदि कहां पर टिका होता है यह विद्यार्थी जीवन में इन 25 वर्ष तक अति महत्वपूर्ण होता है।
(गुरु जी अशोक कुमार वर्मा'बिंदु' की प्रेरणा से)

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के मृत्यु/लापता होने के रहस्य के 75 वर्ष पूर्ण!!
@सुजाता देवी पटेल


 भारत देश अपना स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को प्रतिवर्ष बनाता है लेकिन अनेक लोग इस आजादी को सिर्फ सत्ता हस्तांतरण मानते हैं एक विचारक का तो मानना है कि अंग्रेजों ने भारत को छोड़ दिया इसका ठीक जवाब अंग्रेज ही जानते हैं कोई तो यहां तक कहता है कि उनका भारत छोड़ने का कारण नेताजी सुभाष चंद्र बोस और उनकी आजाद हिंद सरकार है जिसकी स्थापना 21 अक्टूबर 1947 को हुई और जिसे विश्व के अनेक देशों ने मांगता प्रदान की।

  नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वितीय विश्व युद्ध में दक्षिण पूर्व एशिया के महानायक बन के उभरे। उस समय वह और उनके समर्थक देश जीत पर जीत हासिल करते जा रहे थे जिससे पश्चिम  देश बौखला गए अमेरिका ने बौखला कर परमाणु बम का इस्तेमाल कर दिया जिससे उनको और उनकी सेना को वापस लौटना पड़ा उनकी मजाक भी बनाई गई कि दिल्ली चलो का नारा लगाने वाले वापस लौटे लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कहा कि फरवरी 1946 का इंतजार कीजिए तो किए विश्वयुद्ध की शुरुआत के साथ उन्होंने कहा था दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त होता है इस वक्त आजादी के लिए अच्छा अवसर है ब्रिटिश सरकार में जो भारतीय कर्मचारी सैनिक आज थे उन पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाषणों का बड़ा प्रभाव पड़ा जिससे भारत में ब्रिटिश शासन के स्तंभ कमजोर पड़ गए फरवरी 1946 से नौसेना विद्रोह के साथ-साथ अन्य विभागों के कर्मचारी भी विद्रोह में आ गए जो भारतीय सैनिक ब्रिटिश सरकार के लिए लड़ रहे थे उनका झुकाव नेताजी सुभाष चंद्र बोस की ओर हुआ जापान पर परमाणु बंब आक्रमण के बाद उनके समर्थकों व जापान  आदि देश में उन को सुरक्षित स्थान पर पहुंचने का विचार दिया तब वे रूस पहुंचे लेकिन पश्चिमी देशों को भ्रम में रखने के लिए फर्जी  विमान दुर्घटना की योजना बनाई गई ऐसा सुना जाता है।

10 जनवरी 1975!!पहला विश्व हिंदी सम्मेलन!!


 10 जनवरी 1975 को पहला विश्व हिंदी सम्मेलन नागपुर में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के द्वारा आयोजित किया गया था।
 जो 4 वर्षीय था इसमें 30 देशों के 1 से 22 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था सन 2006 में 10 जनवरी को विश्व हिंदी सम्मेलन बनाने की घोषणा हुई हम सबको प्रसन्नता हुई हमने इसे पहले से ही अर्थात 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस के रूप में स्वीकार कर चुके थे वर्तमान में लगभग 137 देशों में हिंदीभाषी अथवा हिंदी प्रेमी लोग मौजूद हैं सन 2011 -14 से हम सब इस क्षेत्र में काफी तेजी से आगे बढ़े हैं। अनेक देशों के विश्वविद्यालय तक हिंदी पहुंची है अब हिंदी ही नहीं हार्टफुलनेस आयुर्वेद योग की बहू विश्व तक हुई है दुनिया की निगाहें भारत की ओर हैं सिर्फ भारत ही ऐसा देश है जहां धार्मिक अनुष्ठानों में अब भी जयघोष लगते हैं जगत का कल्याण हो भारत ही वह देश है जहां लोग मिल जाते हैं जो वसुधैव कुटुंबकम विश्व बंधुत्व सागर में कुंभ कुंभ में सागर आज की संकल्पना में जीते हैं संभवतः यह सोच हमारी ठीक है।




कुछ यह भी::25 से 75 तक!
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 हमारे शिक्षण कार्य से जुड़े 25 वर्ष हो रहे हैं 1 जुलाई 2021 ईस्वी को 25 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं यह 25 वर्ष और इससे पूर्व का जीवन भी शिक्षा जगत में ही बीता इत्तेफाक है जिस वक्त हम शिक्षा कार से जुड़े उस वर्ष से हम 5 अक्टूबर को विश्व शिक्षक दिवस मना रहे हैं 5 अक्टूबर 1966 में यूनेस्को और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की हुई उस संयुक्त बैठक को याद करने के लिए मनाया जाता है जिसमें अध्यापकों की स्थिति पर चर्चा हुई थी और इसके लिए सुझाव प्रस्तुत किए गए थे ।  सन 2019 में 25 वां विश्व शिक्षक दिवस मनाया गया।


      5 अक्टूबर 1994 ईस्वी को पहला विश्व शिक्षक दिवस मनाया गया उस  भक्त एसएस कॉलेज शाहजहांपुर में साहित्यकार और b.ed विभागाध्यक्ष अतुल जी के मार्गदर्शन में उनके मकान पर थे पिता जी प्रेम राज वर्मा की प्रेरणा भूमि एसएस कॉलेज शाहजहांपुर की फील्ड थी ।

यह सत्य है शिक्षा एक क्रांति है शिक्षित होना एक क्रांति है विद्यार्थी होना एक क्रांति है लेकिन यदि ऐसा संभव है तो इसका मतलब है शिक्षा व्यवस्था में कोई कमी है । यूनेस्को संयुक्त राष्ट्र संघ सन 2002 में ही मूल्य आधारित शिक्षा की वकालत कर चुका है इस आधार पर अनेक देश चल चुके हैं लेकिन अभी भारत देश नहीं हां कुछ राज्यों में इस ओर ध्यान दिया जा रहा है।

 यदि उपदेश आदेश और कर्म महत्वपूर्ण है तो क्या पिछली सरकार और राज्य के ठेकेदारों की नियत में खोट था वर्तमान समाज में अब भी हिंसा अराजकता देश जातिवाद अंधविश्वास आदि देखने को मिलता है नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी को भी निरंतर अभ्यास प्रशिक्षण जागरूकता प्राण आहुति आदि की आवश्यकता होती है अन्यथा फिर तंत्र को जकड़े बैठे लोगों पुलिस जनप्रतिनिधि आदि के चारों ओर दबंग माफिया जाति बल पूंजीवादी ही लाभ में नजर आते रहेंगे ।

अंगुली मान और अंगुली मान की गलियों में सिर्फ बुध और बुध अस्त ही मुस्कुराता नजर आएगा आपका तंत्र और आपके सम्मानीय वरिष्ठ नहीं।


           चिंतन मनन कल्पना स्वप्न हमारे जीवन से काफी घुलमिल गए हैं किशोरावस्था एक तूफानी अवस्था होती है जब हमने किशोरावस्था में प्रवेश किया लिखने में लग गया जब हम हरित क्रांति विद्या मंदिर में कक्षा 8 के विद्यार्थी थे हमारे लिखने का उद्देश्य सिर्फ लिखना था अभिव्यक्ति था इसमें कोई समझौता नहीं वर्तमान में लगभग 50 पुस्तकें तैयार हैं जो प्रकाशन के इंतजार में हैं बचपन से ही आर्थिक समस्या सामाजिक कुरीतियों आज को झेला है ऐसा इसलिए और हुआ क्योंकि हमारा संवेदनशील होना लेखन के क्षेत्र में हमारी समस्या रही कैसे हम छपे हां एक बार और एक बात और हम लिखते तो रहे हैं लेकिन लेखन सामग्री को एक शीर्षक देने उसे एक विधा देने में दुविधा रही है लेखन संवाद घटनाएं हमारी रचनाओं में रही हैं लेकिन उस रचना को किस विधा में माना जाए यह दुविधा रही है हमारा उद्देश्य सिर्फ अभिव्यक्ति रहा है ।
25 से 75 तक? ए क्या है इस पर हम बहस नहीं कर सकते जिस प्रकार हम अपने रचनाओं के शीर्षक और विधा पर बहस नहीं कर सकते जो लिख गया जो लिख दिया वह लिख दिया।

    25 वर्ष शिक्षण कार्य के!
    75 वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ के!
    75वर्ष श्री रामचन्द्र मिशन के!

शांति सुकून की तलाश में हम कहाँ पर आ गये?जातिवाद, मजहबवाद,धर्मस्थलवाद, देशवाद, भीड़ तन्त्र, पूंजीवाद, सत्तावाद आदि हमें चिढ़ाने लगा। ध्यान(मेडिटेशन),मानवता, विश्वबन्धुत्व, बसुधैव कुटुम्बकम, विश्व सरकार हमारे सूक्ष्म जगत अर्थात अन्तर्दशा के हालात हो गये।

ऐ इंसान तू कितना भी कर ले सितम तरक्की के नाम पे,
कुदरत जब करेगीं सन्तुलन,तो तू न होगा इस महि पे ।

तेरे लिए हवा-पानी-सब्जी-अनाज इक दिन मुश्किल में
ऐ इंसान तो तू तरसेगा आबो दाना के लिए इस जहां में;
अपनी तरक्की के नाम पे है तू इंसान इस जहां भ्रम में ।। ऐ इंसान..
#अशोकबिन्दु



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