माटी का कर्ज-28-Oct-2022
प्रतियोगिता हेतु
विषय:-माटी का कर्ज
गीत
माटी का माँ टीका कर दे,
फर्ज निभाऊँ माटी का।
माटी के तन पर माटी का,
कर्ज चुकाऊँ माटी का।
1
माटी के ही खेल खिलौने,
खेले खेल हैं माटी में।
माटी का तन इक दिन यारो,
मिल जायेगा माटी में।
माटी मोल बिकेगा मानव,
मोल न पाऊँ माटी का।
2
माटी से उपजे हैं सारे,
हीरा रतन हैं माटी के।
माटी को पाने की खातिर,
सारे जतन हैं माटी के।
माटी तन माटी में जाये,
क्या ले जाऊँ माटी का।
3
जैसा कर्म करेगा बंदे,
वैसा ही फल पायेगा।
माटी का तन इक दिन प्यारे,
माटी में मिल जायेगा।
आलोकित हों अवनि अंबर,
दिया जलाऊँ माटी का।
4
क्या लाया था क्या ले जाये,
मन में सोच जरा बंदे।
किसके लिये कुकर्म करे तू,
छोड़छाड़ धंधे मंदे।
फिर अनमोल रतन है जग में,
कहाँ से पाऊँ माटी का।
विनोदी महाराजपुर
Suryansh
29-Oct-2022 07:29 PM
बेहतरीन सृजन
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Mahendra Bhatt
29-Oct-2022 01:12 PM
शानदार
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Swati chourasia
29-Oct-2022 11:22 AM
वाह बहुत ही बेहतरीन रचना 👌👌
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