लेखनी प्रतियोगिता -28-Oct-2022। मिट्टी
मिट्टी
माटी ओढ़न माटी बिछावन ये तन मेरा माटी का,
माटी ही है सत्य शाश्वत इंसान बना है माटी का।
जिस तन पर तू गर्व है करता कहता मेरा मेरा है,
निकल आत्मा गई फुर्र से ले चलने की बेरा है।
माटी के हैं खेल खिलौने बच्चे मिलकर खेल रहे,
गिरा हाथ से टूट गया तो माटी में गिर लोट रहे।
हम सब है माटी के पुतले निराकार के हाथों के,
जैसे चाहे रखें हम सबको सृष्टि के तहखाने में।
माटी मेरी मातृशक्ति औ माटी मेरी भारत माता,
माटी के तन पर माटी का टीका गर्व हमें कराता।
माटी से जन्मे हैं सारे रतन निकलते हैं माटी से,
माटी का कर्ज है मुझपे कर्ज चुकाऊं माटी का।
कर्म करोगे जैसे जैसे फल भी तो वैसे ही पाओगे,
माटी का तन इक दिन प्यारे माटी में मिल जाएगा।
माटी में तन की है शक्ति माटी में मन की शक्ति,
माटी से माता की समता माटी की कर लो भक्ति।
जीवन की शाम होते ही मिलता तन इस माटी में,
कहती'अलका'मृत तन को उठा रखो अब माटी में।
माटी से जन्मा था यह तन मर अब लेटा माटी में,
भस्म हो राख हो जाता फिर मिल जाता माटी में
अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी'
लखनऊ उत्तर प्रदेश।
स्व रचित मौलिक व अप्रकाशित
@सर्वाधिकार सुरक्षित।
Khan
29-Oct-2022 11:59 PM
Bahut sundar kavita 👌🌸🙏
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Suryansh
29-Oct-2022 07:26 PM
उम्दा सृजन और अभिव्यक्ति एकदम उत्कृष्ठ
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Haaya meer
29-Oct-2022 06:12 PM
Amazing
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