खास था बो
212 212 212 212
ख़ास था वो बहुत जो खफ़ा हो गया।
छोड़ कर वो मुझे क्यों ज़ुदा हो गया।।
मुद्दतों बाद जब भी मुझे वो दिखी,
संदली इश्क़ हर मर्तबा हो गया।
जान लो किस क़दर थी मुहब्बत मुझे,
अजनबी शख़्स था पर ख़ुदा हो गया।
दूर जबसे गई है मेरी ज़िदगी,
जिस्म से जान का फ़ासला हो गया।
देखने को मिला इक असर इश्क़ का,
हर बुरा आदमी बस भला हो गया।
आँख से आँख का जाम जो पी लिया,
रोज़ से कुछ अधिक ही नशा हो गया।
था जनाज़ा सजा और वो आ गई,
हादसे पर तभी हादसा हो गया।
*✒️ आलोक मिश्र "मुकुंद"*
ये रचना अच्छी लगी ,सुनीता गुप्ता सरिता कानपुर
Mahendra Bhatt
04-Nov-2022 02:45 PM
शानदार
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Pratikhya Priyadarshini
03-Nov-2022 11:56 PM
Behatrin kavita likha hai 💐👍🌹
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Renu
03-Nov-2022 11:35 AM
👍👍🌺
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