कृष्ण सुदामा
कृष्ण सुदामा मित्र थे बचपन
के थे यार।
मित्रता ऐसी रही जाने सब संसार।
गुरू कुल में साथ पढ़े थे दोनों लंगोटिया यार
दोनों मित्रो में था आपस में
भाई जैसा प्यार।
पत्नी के कहने पर गरीब सुदामा पहूंचे मित्र के द्वार।
देख कर बुरा हाल सुदामा का
द्वार पाल ने दिया फटकार।
मैं मित्र हूं कान्हा का कान्हा है मेरे बचपन का यार।
जाकर कह दो मेरे कान्हा से
वह करता है मुझको प्यार।
मोहन ने जब सुना द्वारे खड़ा
है सुदामा बचपन का यार।
दौड़ पड़े मोहन मित्र से मिलने अंक में भर कर किया प्यार।
सिंहासन पर बैठा कर पांव
धोए गिराये अश्रु धार।
पिताम्बर से पोंछ कर पांव को मित्र का किए सत्कार।
भाभी के भेजे उपहार चावल
प्रेम से खाने लगे द्वारिकाधीश ।
सुदामा रोकने लगे मोहन बोले मत रोको मित्र भेजा है भाभी ने आशीश।
सुदामा ने कुछ नहीं कहा मित्र से तंतुल देख मोहन सब समझ गये
मित्र को एक मित्र ने मान दिया बिना कुछ दिये बिदा कर दिये।
भाभी को धन दौलत भर भर झोली दिये जगदीश ने।
महल देख परेशान सुदामा को आवाज लगाई पत्नी ने।
ऐसी मित्रता का उदाहरण
दिए मोहन ।
सारा संसार में दोस्ती महुर
है।
सुनीता गुप्ता सरिता कानपुर
Khan
04-Nov-2022 05:02 PM
Shandar 🌸🙏
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Haaya meer
03-Nov-2022 09:47 PM
Amazing
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Palak chopra
03-Nov-2022 08:46 PM
Shandar 🌸
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