लेखनी प्रतियोगिता -03-Nov-2022 बेटी होती घर की शीतलता
चलो मिलकर बालिका दिवस मनाए,
जग जग में यह बात फैलाएं,
बेटियों को न समझो बोझ,
समझाओ यही बोल।
बालिका ही बनती माता,
कितने रुप निभाती,
घर की होती क्षत्राणी,
दो दो कुलों की होती महारानी।
चिड़ियों जैसी होती चहचाहट,
पूरे घर में गूंजती खिलखिलाहट,
परियों जैसा करती चमत्कार,
देवियों का होती अवतार।
जब भी होती आंख से ओझल,
दिन बन जाता बोझ,
बेटी होती तरुवर की छांव,
फूलों जैसी महकती बगिया।
रवि की पहली किरण जैसी बेटी,
शशि की शीतलता जैसी होती बेटी,
सबकी करती देखरेख,
हर घर की बेटी होती नेक।
जिस घर में होती बेटी,
किस्मत वाली होती दहेली,
कन्यादान का मिलता सौभाग्य प्राप्त,
मरणोपरांत मिलता स्वर्ग का द्वार।
लेखिका
प्रियंका भूतड़ा
Suryansh
08-Nov-2022 09:29 AM
बहुत ही उम्दा सृजन बेटी के ऊपर
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Teena yadav
04-Nov-2022 08:11 PM
Superb
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Haaya meer
04-Nov-2022 07:56 PM
Amazing
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