Sunita gupta

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दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय अतीत के छुपे राज

*✍️हिंदुओं के लिए एक अत्यंत ही सुंदर आँखें खोलने वाला लेख, सभी हिंदुओं को इसे अवश्य ही पढ़ना और समझना चाहिए* 

 *😒क्या ऊपर वाले ने सृष्टि के सारे के सारे दुख हिंदुओं के हिस्से में ही लिखे हैं उधर देखे तो अब्दुल चाचा बिल्कुल मस्तमौला है-आंख खोलने वाला लेख*

सुबह सुबह बुजुर्ग अब्दुल चच्चा अपने घोड़े को जीन पहना रहे थे मैने पूछा कैसे हो? वो बड़े खुश मिजाजी से बोले *अल्लाह का करम है, सब इत्मीनान से हैं।*
 मैने कहा कि चच्चा,, अब तो आपकी उम्र हो गई, वो तपाक से बोले, *बेटा घोड़ा और आदमी तब तक जवान रहते हैं जब तक बैठ कर न रह जाएं।*

उनसे दुआ सलाम के बाद मैं आगे बढ़ा तो *सलीम अपनी मेकेनिक की गुमठी* खोल कर सामान जमा रहा था। मैने वही सवाल उससे पूछा,, और सलीम भाई कैसे हो? 
*वो बोला भाईजान मजे में हैं ऊपर वाले का करम है, दुकानदारी की तैयारी कर रहा हूं, दरोगा जी की ये मोटरसाइकिल आज सही करके देना है।* 

मैं और आगे बढ़ा तो *पंचर वाले कुर्रेशी ब्रदर्स अपनी दुकान पर चाय पीते मिल गए।* एक भाई ट्रक के टायर में हथौड़ा बजा कर उसे रिम पर ढीला कर रहा था। 
मैने वही सवाल उनसे भी पूछ धरा,, और मियां कैसे हो?*
 वो बोले कि *आ जाओ भैया चाय पी लो, अल्लाह के कर्म से सब बढ़िया हैं।* फिर चाय देते हुए बोले कि *सकीना की शादी भी अल्लाह के करम से चंदेरी पक्की हो गई है। दूल्हा भाई भी खाते कमाते घर के हैं।* उनसे थोड़ी गपशप के बाद मैं आगे बढ़ा।

*इसके बाद मैं अपने दोस्त शर्मा जी की दुकान पर पहुंचा,,* उनसे भी वही सवाल दागा,, पंडित जी कैसे हो? 

*ये सवाल जैसे उनके फोड़े पर चीरा लगा गया, सड़े मुंह से गहरी सांस लेकर बोले,, कुछ मत पूछो भाई,, गिन गिन कर दिन काट रहे हैं। GST ने मार दिया, शहर में CRIME बढ़ गया है ,महंगाई कमर तोड़ रही है, नोटबंदी ने मार दिया है, विदेश नीति ठीक नहीं है, सड़कों पर खड्डे बहुत हो गये हैं,बिट्टू को इंदौर एमबीए करने भेजा है बेरोजगारी इतनी है कि समझ में नहीं आ रहा उसे कौन सी लाइन में भेजूं।*

मैने कहा यार आपको से क्या मतलब *आप तो सारा व्यापार कच्चे बिल पर करते हो, दुकान भी पहले से बढ़िया जमा ली है। बिट्टू को दुकान ही सम्हलवा देते,, एक ही तो लड़का है आपका।*

 लेकिन पंडित जी मानो दुनिया के सबसे दुखी इंसान लगे वो बोले,, अरे नही यार व्यापार में वो दम नहीं है बिट्टू तो नौकरी करने की कह रहा है।

पंडित जी के दुख से मैं भी मायूस होकर आगे बढ़ा, *सब्जी मंडी में ठाकुर अंकल मिल गए।*
 उनसे राम राम के बाद बात हुई। वही सवाल मैने उन पर दाग दिया। *अंकल कैसे हो?*
 *वो बोले बेटा बुढ़ापा है, शुगर से परेशान हूँ,समय काट रहा हूं। तुम्हारी चाची भी बीमार है। उमा बेटी ससुराल में परेशान हैं, शिवेंद्र की शादी कर दी थी, प्राइवेट नौकरी में था, उसने नौकरी छोड़ दी, बोला काम ज्यादा था, अब पेंशन के भरोसे हैं।* 

मैने कहा शिवेंद्र कोई और काम क्यों नहीं कर लेता?
 *वो बोले ग्रेजुएट है उसके लायक काम मिल नही रहा।* फिर इधर उधर की बातों के साथ मैं आगे बढ़ गया।

*घर लौटते में गर्ग साहब मिल गए, वो ऑफिस जा रहे थे।*

 मैने गुड मॉर्निंग की और वही सवाल उनसे किया। *सर कैसे हैं?*
 *वो बोले क्या बताऊं आजकल नौकरी बड़ी कठिन हो गई है, अफसर कुछ समझते नहीं हैं और नेता हर काम में हस्तक्षेप करते हैं। तीन साल बचे हैं जैसे तैसे काट रहा हूं।* इतना कहते हुए वो कार से आगे बढ़ गए।

तभी आकाश आ गया। *मुझसे नजर मिलते ही उसने सिगरेट इस तरह फेंक दी थी जैसे पी ही नही रहा था।* 
मैने आवाज देकर बुला लिया। पूछा,, भाई कहां है आजकल,, कैसा है तू? 
*वो बोला यहीं हूं चाचा, बड़ी दिक्कत है,, जॉब ढूंढ रहा हूं,, आपकी नजर में कोई जॉब हो तो बताना।*

 इतने में उसने मेरी नजर बचा कर दो तीन बार पाउच की पीक भी सड़क पर पिच्च कर दी थी। 

*अब मैं सोच रहा हूं कि क्या ये कौम की परवरिश और सीख का अंतर है या कोई और वजह कि घोड़े की जीन कस रहे, बुजुर्ग अब्दुल से लेकर मैकेनिक सलीम और पंचर वाले कुर्रेशी ब्रदर्स मजे में हैं।*

 *उन्हें अपनी मेहनत और ऊपर वाले पर भरोसा है।*

 जो कुछ भी उन पर है वो उसी में खुश हैं। *मैने कभी इस कौम के लोगों को जीएसटी, महंगाई, बेरोजगारी की बातें करते नहीं देखा। अलबत्ता कौम और धर्म के लिए लड़ते जरूर देखा है।*

*जबकि दूसरी ओर हिंदुओं को हमेशा ही सरकारों को कोसते, रोते ही देखा है।*

 *सुबह घर में नाश्ते की लड़ाई से शुरू होने वाली ये लड़ाई दिन भर सोशल मीडिया पर सरकारों को भला बुरा कहते हुए रात को पसंद की तरकारी न बनने से होने वाली तकरार पर जाकर खत्म होती है।*
 अधिकांश हिंदुओं के चिंतन में सबसे पहले "मैं", फिर "मेरा परिवार" आता है। 

*कौम की बात पर तो सब जाति के अनुसार पहले ही अलग अलग बंटे हुए हैं।*

 फिर जाति में भी पंथ के आधार पर अलग अलग फिरके आपस में बंटे हुए हैं जैसे जैन को ही लें,, तो मैं श्वेतांबर, मैं दिगंबर।

 ब्राह्मणों को लें तो ये कान्यकुब्ज, मैं सरयूपारीण, मैं सारस्वत, मैं मैथिल, मैं गौड़। *मजे की बात ये है कि कोई किसी को श्रेष्ठ मानने तैयार नहीं।* 

*देश या धर्म की बात करने वालों को ऐसे ही लोग अंधभक्त, भाजपाई या आरएसएसई घोषित कर देते हैं। यदि मेरा ये अनुभव गलत हो तो सुधिजन खुद ही परीक्षण कर लें। हकीकत के इस लेख में बस नाम ही काल्पनिक हैं।*

*👉एक बार विचार जरूर करें  कि सबसे समृद्ध सनातन संस्कृति के लोगों  दिमागी रूप से इतने कमजोर क्यों हो गए हैं की उनकी जिंदगी NEGATIVITY से भर चुकी गई है- या यूं कहें कि वो अपनी ज़िंदगी ढो रहे हैं*

सुनीता गुप्ता सरिता कानपुर 

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2 Comments

Palak chopra

07-Nov-2022 03:34 PM

Shandar 🌸🙏

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Rajeev kumar jha

07-Nov-2022 01:53 PM

👏👌🙏🏻

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