Sunita gupta

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समर्पण का भाव

*समर्पण का भाव*
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       *एक बार एक ख़ूबसूरत महिला समुद्र के किनारे रेत पर टहल रही थी।समुद्र की लहरों के साथ कोई एक बहुत चमकदार पत्थर छोर पर आ गया।महिला ने वह नायाब सा दिखने वाला पत्थर उठा लिया।वह पत्थर नहीं  असली हीरा था।*
             *महिला ने चुपचाप उसे अपने पर्स में रख लिया।लेकिन उसके हाव-भाव पर बहुत फ़र्क नहीं पड़ा।पास में खड़ा एक बूढ़ा व्यक्ति बडे़ ही कौतूहल से यह सब देख रहा था।*
            *अचानक वह अपनी जगह से उठा और उस महिला की ओर बढ़ने लगा।महिला के पास जाकर उस बूढ़े व्यक्ति ने उसके सामने हाथ फैलाये और बोला :-मैंने पिछले चार दिनों से कुछ भी नहीं खाया है। क्या तुम मेरी मदद कर सकती हो?*
             *उस महिला ने तुरंत अपना पर्स खोला और कुछ खाने की चीज ढूँढ़ने लगी। उसने देखा बूढ़े की नज़र उस पत्थर पर है जिसे कुछ समय पहले उसने समुद्र तट पर रेत में पड़ा हुआ पाया था।*
              *महिला को पूरी कहानी समझ में आ गयी। उसने झट से वह पत्थर निकाला और उस बूढ़े को दे दिया। बूढ़ा सोचने लगा कि कोई ऐसी क़ीमती चीज़ भला इतनी आसानी से कैसे दे सकता है।*
             *बूढ़े ने गौर से उस पत्थर को देखा वह असली हीरा था बूढ़ा सोच में पड़ गया। इतने में औरत पलट कर वापस अपने रास्ते पर आगे बढ़ चुकी थी।*
            *बूढ़े ने उस औरत से पूछा :-क्या तुम जानती हो कि यह एक बेशकीमती हीरा है?*
           *महिला ने जवाब देते हुए कहा :-जी हाँ और मुझे यक़ीन है कि यह हीरा ही है।*
          *लेकिन मेरी खुशी इस हीरे में नहीं है बल्कि मेरे भीतर है।समुद्र की लहरों की तरह ही दौलत और शोहरत आती जाती रहती है।*
             *अगर अपनी खुशी इनसे जोड़ेंगे तो कभी खुश नहीं रह सकते।बूढ़े व्यक्ति ने हीरा उस महिला को वापस कर दिया और कहा कि यह हीरा तुम रखो और मुझे इससे कई गुना ज्यादा क़ीमती वह समर्पण का भाव दे दो जिसकी वजह से तुमने इतनी आसानी से यह हीरा मुझे दे दिया..!!*
           *दोस्तों,सारी उम्र हम अपने अहंकार को नहीं छोड़ पाते। हम व्यवहार में अनुभव करें तो पायेंगे कि दूसरों को बिना लोभ कुछ अर्पण भी नहीं कर पाते। भगवान् को भी कुछ पाने की लालसा से ही प्रसाद चढाते हैं,लालसा पूर्ण नहीं होती तो भगवान् बदल लेते हैं।जबकि भगवान् तो एक ही है।*
           *समर्पण के बगैर परमात्मा की प्राप्ति असम्भव है और समर्पण ही है जो भक्ति को अपने गंतव्य तक ले जाती है।समर्पण से ही आत्मा परमात्मा में लीन होती है।*

      *गोविंद 🙏🏻🙏🏻*सुनीता गुप्ता सरिता कानपुर 

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6 Comments

Gunjan Kamal

07-Nov-2022 10:45 PM

बहुत खूब

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Khan

07-Nov-2022 07:34 PM

Bahut khoob 😊🌸🙏

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Mohammed urooj khan

07-Nov-2022 06:10 PM

Bahut sundar kahani 👌👌

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