Sunita gupta

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दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय गजल दर्द दिल मे छिपाती

दर्द दिल जख्म अपने छिपाती हूं मैं।
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दर्द दिल जख्म अपने छिपाती हूँ मैं।
प्यार के कुछ गजल,गीत गाती हूं मैं। 

हार दुनियां से मैं मान लूं क्यों भला,
हौसला अपने दिल का बढ़ाती हूं मै। 

उसने मुझसे मुहब्बत में वादे किए,
मैं थी नादांन यह सच बताती हूं मैं। 

करूणा में शक्ति है क्रोध बेकार है,
इसलिए कोध्र मन से मिटाती हूं मैं। 

वह परेशान करता  मुझे रात-दिन, 
जिन्दगी भर  उसे ही मनाती हूं मैं। 

वह हकीकत भरोसे के काविल नही,
फिर भी रिस्ता सुनीता,निभाती हूं मैं। 

सुनीता गुप्ता

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8 Comments

Gunjan Kamal

15-Nov-2022 06:15 PM

बहुत ही सुन्दर

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Supriya Pathak

12-Nov-2022 01:10 PM

Khoob

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प्रेम के एहसासों से युक्त कविता

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