शशिकांता जी की मूल लेखनी से
💥*।। ओ३म् ।।*💥
✍️ शशि कांता जी की मूल लेखनी से
दोस्तो, बढ़ती उम्र के साथ साथ कभी कभी नारियां सोचने लगती हैं कि मैं पहले ज्यादा सुंदर थी, लेकिन अब मेरी सुंदरता ढल गई है। उनका सोचना अपने स्थान पर सही है क्योंकि जैसे जैसे हम बड़े होते हैं तो हमारी त्वचा में भी परिवर्तन आने लगते हैं। परन्तु दोस्तो इस बारे में मेरा यह मानना है हर उम्र की अपनी सुंदरता होती है, इसलिए यह सोचना बेमानी है कि मैं पहले ज़्यादा सुंदर थी, और अब मेरी सुंदरता कम हो गई है।
तो सुनो मेरी बहनो...
तुम तब भी सुंदर थी, आज भी सुंदर हो और हमेशा सुंदर रहोगी क्योंकि जैसे जैसे समय बीतता है और उम्र ढलने लगती है वैसे वैसे तुम्हारी सुंदरता बाहर से अंदर की ओर बढ़ने लगती है, और सभी जानते हैं कि आंतरिक सुंदरता बाहरी सुंदरता पर हमेशा ही भारी पड़ी है।
सुंदरता का आकलन ढलती आयु से नहीं किया जा सकता। आयु का बढ़ना और शरीर का ढलना तो प्राकृतिक व्यवस्था है। कितने ही प्रयत्न कर लो इसे बदल नहीं सकती तुम।
लेकिन आंतरिक सुंदरता हमारे अपने हाथ में है, इस खूबसूरती को हम जितना चाहें बढ़ा सकते है, यह कभी न ढलने वाली है। इसलिए बढ़ती उम्र के साथ हम अपनी आंतरिक सुंदरता बढाने हेतु ऐसे सुंदर कर्म करें कि कोई हमारी सुंदरता भूल न पाए।
हमारी यह सुंदरता अक्षय है कभी नष्ट नहीं होती और तो और तन की सुंदरता तो माटी में मिल माटी हो जाएगी पर अंदर की सुंदरता सदा हमारे साथ रहेगी। मृत्यु से पहले यह हमें यश, कीर्ति दिलाती है और मृत्यु के पश्चात भी यह हमारे साथ रहती है और शायद हमारे अगले जन्म के निर्धारण में भी सहयोग करती है।
न जाने कितने सुंदर कर्मों के फलस्वरूप हमें यह मानव जीवन मिला है, अतः इसे सफल बनाने के लिए हम सभी अपनी आंतरिक सुंदरता को बढ़ाने और चमकाने का प्रयत्न अवश्य करें, क्योंकि यही वास्तविक सुंदरता है।
***शशिकांता***
सुनीता गुप्ता सरिता कानपुर
Gunjan Kamal
24-Nov-2022 07:00 PM
Nice 👍🏼
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पृथ्वी सिंह बेनीवाल
19-Nov-2022 05:35 PM
शानदार
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Rafael Swann
15-Nov-2022 12:01 AM
Adwitiya 🌹👏😊
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