मां.....

मां!

कितनी अब दूरियां.....
मां से दूरियां?
कितने निकल आये दूर-
ए चाहिए वो चाहिए,
अफसोस, अब मां नहीं चाहिए।
मेरी मां!मेरी मां!
हूँ, वो बचपन-
चीखता फिरता था,
मां ही उस वक्त अपनी दुनिया थी,
मां ही उस वक्त सब कुछ,
मां तो जन्नत थी,
मां जीवन का उपनयन,
मां जीवन का उपनिषद,
मां जीवन का उप-आसन,
प्रकृति सारी -मां!
मां सारी दुनिया थी।
आज-
वो मां का भाव,
आज औरत हो गया है,
वो मां का भाव,
आज गर्ल फ्रेंड हो गया है,
मन-दिमाग में बैठी जो औरत-जो गर्ल फ्रेंड,
वह वैसा छांव न दे पाई है,
लेकिन-
अब हालातों ने जीवन उलझन बना दिया है,
वो अपनापन अब भी अंदर अंदर,
किसी कोने में बैठा- रुला जाता है,
ये जीवन उलझन हो गया,
अब ये पत्नी का प्यार भी -
वो रिक्तता न भर पाया है,
मां तो मां होती है,
मां तो सारी दुनिया थी।
दुनिया कितनी सुंदर लगती थी?
दोस्तों की मांएं-
भी अपनी मां सी लगती थीं,
वो मांएं?
और-
अब ये औरत भाव?
अब ये गर्ल फ्रेंड भाव?
धरती - आसमान  का फर्क है,
वो छांव थी,
वो घर थी,
अब ये औरत-अब ये गर्ल फ्रेंड-
धूप है, मकान है,
वो अपनापन मलहम सा,
ममता का सैलाब....
ये पुरुषवाद ने,
इस नारीवाद ने,
इस नारी सशक्तिकरण ने-
हर नर-नारी को कहां पर ला पटखा है?
बालीबुड के नशा ने,
पोर्न जैसी संस्कृति ने,
महानगरों में हाड़मांस शरीरों पर पेंटिंग-डेंटिंग?
उफ़!!हर शाम चमक मारती है,
सुबह- सुबह बुझ सी जाती है,
हर सुबह हमें कुछ सीख तो देती है,
लेकिन-
आदतें स्वयं की उलझन ही दे पाई है,
बचपन की वो सरलता, सहजता -
तब मां सारी दुनिया थी।
आज तो हम मजाक हैं,
हर नारी-नर मजाक है-
कुदरत के दरबार में;
वो सृष्टि के वक्त की दशा -
हूँ!अब सिर्फ याद है,
प्रकृति रूप में मां तो आयी थी,
सबको सजाने-संवारने,
अब वह मां से दूरियां हो गयी हैं,
सारे दुनिया मे मां का वो दिल ख्याल,
प्रशिक्षण देता था-नैसर्गिक सरलता का,
निष्काम का,
शरारतों बीच भी-
अनुशासन के चमक सहजता का,
कोई होगा ईश्वर-
हम उसे क्या जाने?
हमारे लिए सब कुछ मां,
मां सारी दुनिया थी।

#मां
#प्रकृतिमां
#सारीदुनियामां

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1 Comments

Miss Lipsa

30-Aug-2021 04:15 PM

Are waahhh

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