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यादों के झरोखे भाग ३

डायरी दिनांक १६/११/२०२२

  सुबह के सात बजकर पचास मिनट हो रहे हैं ।

  कल दिनांक १५/११/२०२२ की मेरी डायरी पढकर मेरे बहुत से सहलेखक मित्रों और बहनों ने चिंता व्यक्त की। सभी को लग रहा था कि मैं बहुत परेशान हूँ। मेरी परेशानी की चिंता करने बाले सभी साथियों का मैं आभारी हूँ।

  कई बार बहुत सी बातें तब तक गुप्त रखी जाती हैं जब तक कि उन्हें गुप्त रखना अति आवश्यक हो। पर जब गुप्त रखने का परिणाम गलत संदेश प्रसारित होना होने लगे, उस समय गुप्त बातों को प्रगट कर देना चाहिये।

  मेरी परेशानियाँ तो मेरे जीवन का हिस्सा हैं। पर सही बात यह है कि लेखनी मंच ने लगातार तीस दिनों तक अलग अलग यादों पर लिखने की चुनौती दी है। स्मृतियों को एकदम सही और निष्पक्ष लिखना एक चुनौती ही है। तथा मैंने इस चुनौती को स्वीकार किया है। इस कारण अब मेरी डायरी कुछ ऐसी हो गयी है जिससे आप सभी को मेरे अधिक दुखी होने का भ्रम सा हो रहा है।

  कल  मैंने अपने इंटरमीडिएट के सहपाठी मित्र के विषय में बताया था। इंटरमीडिएट के बाद मैंने बीएससी में दाखिला लिया। बीएससी की पढाई करने के लिये मैं हर रोज शिकोहाबाद जाता था जो कि मेरे गृहनगर सिरसागंज से करीब चौदह किलोमीटर की दूरी पर है। इस दौरान मेरे कई मित्र बने। जिनमें से एक श्री विपिन अग्निहोत्री जी हैं। क्योंकि श्री विपिन अग्निहोत्री जी भी एक ब्राह्मण परिवार से संबंधित हैं, उनके पिता जी भी मेरे पिता जी की तरह अध्यापक हैं तथा लगभग उसी समय श्री विपिन अग्निहोत्री जी के पिता जी  हमारे पड़ोस में मकान खरीदकर यहीं रहने लगे थे (उससे पूर्व वे सिरसागंज के नजदीक एक गांव जहां के विद्यालय में वह अध्यापक थे, रहते थे।) इस कारण हम दोनों एक दूसरे के काफी निकट आ चुके थे। मैं पहले अपने घर से निकलता, श्री विपिन अग्निहोत्री को उनके घर के बाहर से आवाज देता, फिर हम दोनों साथ साथ शिकोहाबाद के लिये जाते थे। तथा साथ साथ ही वापस आते थे। कक्षा में हम दोनों साथ साथ ही बैठा करते थे।

   मेरा एक अनुभव है कि संसार में लोग दूसरों के प्रेम से अधिक दुखी होते हैं। अथवा प्रत्येक मित्रता में कुछ न कुछ व्यवधान देकर लोग अपने कर्तव्य का पालन करते हैं। हम दोनों की कमजोरियों का फायदा उठाने बाले बहुत लोग थे। तथा उनका लाभ शायद मात्र मनोरंजन होता था।

  " देखो भाई। आप ही उससे मित्रता रखते हों। वह तो आपके बारे में ऐसा बोल रहा था।"

  सच्ची बात है कि अधिक घनिष्टता के बाद मनुष्य मूलभूत व्यवहारों को तिलांजलि देने लगता है। अधिक शुद्ध आचरण तब तक बुरा नहीं लगता जब तक कि उस विषय में कोई तीसरा न टोके। और तीसरे द्वारा उंगली उठाते ही मन खिन्न होने लगता है।

  अच्छी बात यह रही कि हमारी मित्रता लगभग समाप्त होने के उपरांत भी समाप्त नहीं हो पायी। इसमें हम दोनों के पिताओं का ही योगदान रहा है।

  इस घटना से जो मैंने सीखा, वह यही है कि कितना भी स्नेह हो, कितनी भी निजता हो, पर व्यवहार हमेशा ऐसा होना चाहिये कि कभी भी दूसरे के मन को पीड़ा न हो तथा उसका फायदा कोई तीसरा न उठाने लगे। निजता के साथ साथ एक दूरी भी अति आवश्यक है।

  श्री विपिन अग्निहोत्री जी आज भी मेरे मित्र हैं तथा मेरे संपर्क में हैं।

अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम। 

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4 Comments

Reena yadav

23-Nov-2022 09:56 PM

जीवन में घटने वाली घटना हमे हर रोज कुछ ना कुछ सीखा कर ही जाती हैं

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Ayshu

16-Nov-2022 06:10 PM

बहुत खूब

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Shaandar prastuti 🙏🌺💐

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