तिल का ताड़
तिल का ताड़
"दादाजी, दादाजी.... आपको मालूम है फूफा जी, सोनल बुआ की पिटाई करते हैं", रजत ने अपनी साइकिल को लगभग फेंकते हुए हांफते हांफते ये बात कही।
"क्या कह रहे हो बेटा, रोहन तो तुम्हारी बुआ को बहुत प्यार करते हैं, ऐसा किसने कह दिया तुमसे" कृष्णकांत जी ने अखबार से मुंह उठा कर अपने पोते को जवाब दिया।
"अरे..... नहीं दादाजी.... किसी ने कहा नहीं.... मैने खुद अपनी आंखों से देखा है" नन्हा रजत अपनी बात को दोहराते हुए बोला।
इस बार कृष्णकांत जी ने अपना अखबार नीचे रखते हुए संयत स्वर में उसको अपने पास बुलाया और अपनी गोद में बिठाते हुए पूछा, "क्या देखा तुमने, और कब?"
रजत ने पूरी मासूमियत से जवाब दिया, " मैं और मेरे दोस्त, बुआ के घर के पीछे वाले पार्क में साइकिल चला रहे थे, आपको तो पता है पार्क से बुआ के घर की खिड़की दिखाई देती है, मैने सोचा बुआ को नमस्ते कर दूं, बस मैं उनके घर की खिड़की तक पहुंचा ही था, कि मैंने देखा फूफा जी ने बुआ का हाथ पकड़ कर खींचा, बुआ ने छुड़ाने की कोशिश भी की, पर उन्होंने जोर से अपनी तरफ खींचा और बुआ के गाल पर एक चपत लगा दिया, फिर बुआ हाथ छुड़ा कर भाग गई। मैं तो डर के मारे कुछ नहीं बोला, सीधा साइकिल भगाते हुए घर आ गया, आपको बताने के लिए" रजत ने पूरी घटना एक सांस में दोहरा दी, और फिर बोला "दादाजी....दादाजी....फूफा जी बुआ को क्यों मार रहे थे, वो मुझे भी मारेंगे क्या..... बोलो दादा जी"......
उसकी बात खतम होते होते लक्ष्मी जी चाय लेकर कमरे में प्रवेश कर गई। चाय टेबल पर रख कर वहीं फर्श पर बैठ कर फूट फूट कर रोने लगी..... "मैने तो पहले ही कहा था अपने से बड़ी हैसियत के लोगों से रिश्ता करना ठीक नहीं....पर मेरी सुनता कौन है..... अब भुगतो..…. हे राम, मेरी फूल सी कोमल बच्ची.... ना जाने कैसे कैसे दुख झेल रही है..... किन कसाइयों के हाथों सौंप दिया तुमने मेरी नाजुक बेटी को..... मुझे तो पहले ही शक था....6 महीने में ही रंग दिखा दिए....जरूर गाड़ी या पैसों के लिए परेशान कर रहा होगा.... शक्ल से इतना सीधा और भोला दिखता था....माताजी मैं आपकी बेटी को हमेशा खुश रखूंगा....ऐसे रख रहा है खुश.... और उसके सास ससुर भी तो... बहनजी हमें कुछ नहीं चाहिए.... आपकी बेटी इतनी सुघड़ सुंदर है.... बस चार कपड़ों में ही विदा कर दीजिए...हमारा घर भर जाएगा.....सब दिखावे की बातें हैं....हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और....." लक्ष्मी जी रोते रोते बड़बड़ाती जा रही थी।
कृष्णकांत जी को कुछ सूझ नहीं रहा था, उनकी नजर में तो रोहन और उसका परिवार बहुत सभ्य संभ्रांत था, पर रजत की बात को भी तो नजर अंदाज नहीं किया जा सकता था, उसने तो अपनी आंखों से सब देखा है, माना अभी केवल 8 बरस का ही है, पर ऐसे ही मनघड़ंत किस्सा थोड़ी बोलेगा... और उसकी घबराहट...सोनल में उसकी जान बसती है।
नहीं कुछ न कुछ तो बात जरूर है, कुछ ठोस कदम उठाना ही होगा।
"अरे भाई....घर में कोई है भी या नहीं..." अचानक छुट्टन की आवाज से कृष्णकांत जी चौंक गए।
"आओ आओ छुट्टन.... बहुत दिन बाद इधर आए" कृष्णकांत जी ने बुझे मन से छुट्टन का स्वागत किया।
छुट्टन की अनुभवी नजर ताड़ गई मामला कुछ सीरियस है, "क्या हुआ भाई साहब.... घर में बहुत खामोशी है....भाभी की आवाज भी नहीं आ रही.... सब कुशल तो है ना"।
अपने छुट्टन भैया, पूरा मोहल्ला उन्हें मौसा जी के नाम से जानता है। हर घर में उनका जाना आना है। हर घर का मसला उनका निजी मसला होता है। सेवा निवृत्ति के बाद उन्होंने सामाजिक उत्थान का बीड़ा उठा लिया है, इसके पीछे कहीं न कहीं राजनीति में घुसपैठ की उनकी मंशा काम करती है।
इसीलिए वो हर छोटे बड़े मुद्दे को राजनीतिक रंग देकर अपना पॉलिटिकल करियर चमकाने में व्यस्त रहते हैं।
कृष्णकांत जी के घर से उन्हें खास लगाव है, हो भी क्यों ना, इतने सालों साथ साथ काम जो किया है।
कृष्णकांत जी ने कुछ नहीं ऐसे ही मामूली बात है, कह कर मौसा जी को टालने की कोशिश भी की पर ऐन मौके पर लक्ष्मी जी ने सारा किस्सा बढ़ा चढ़ा कर छुट्टन को सुना दिया.... लक्ष्मी भाभी के बहते आंसुओं ने आग में घी डालने का काम किया।
मौसा जी को तुरत फुरत में अपनी राजनीति चमकाने और मोहल्ले के समाज सुधार का अचूक मौका हाथ लग गया।
आनन फानन में उन्होंने मोहल्ले के कुछ वरिष्ठ और कुछ निट्ठल्लों को इकट्ठा कर लिया, कुछ उनकी तथाकथित पार्टी के कार्यकर्ता भी जमा हो गए, और मौसा जी ने सबको नारी उत्पीड़न, दहेज प्रथा और घरेलू हिंसा का भाषण देते हुए रोहन द्वारा सोनल पर अत्याचार का किस्सा खूब नमक मिर्च लगा कर सुना डाला और कृष्णकांत जी के ना ना कहते भी जबरदस्ती दल बल सहित सोनल की ससुराल की ओर कूच कर दिया।
बेचारे कृष्णकांत को भी साथ होना पड़ा। ऐसा प्रतीत होता था मानो सोनल कृष्णकांत जी की नहीं मौसा जी की ही बेटी है।
सोनल की ससुराल कुछ ब्लॉक छोड़ कर पार्क के पास ही थी। सोनल के ससुर एक वरिष्ठ अधिकारी पद से रिटायर और सास पास के ही स्कूल में प्रिंसिपल रह चुकी थी। उनका इकलौता बेटा रोहन अमरीका से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करके आया था और शहर में ही उसका अपना कारखाना था।
पूरा परिवार बहुत धार्मिक और सामाजिक रहा था, इसलिए रह रह कर सभी को आश्चर्य हो रहा था कि रोहन जैसा पढ़ा लिखा समझदार युवक ऐसा कैसे कर सकता है। रजत क्योंकि सारी घटना का चश्मदीद गवाह था, तो उसे भी साथ ले लिया गया था, ताकि रोहन किसी बात से मुकर ना सके।
कुछ ही देर में सारा काफिला रोहन के घर के आगे पहुंच गया। मौसा जी ने घंटी को नजरंदाज करते हुए जोर से दरवाजा थपथपाया और रोहन को ललकारते हुए आवाज लगाई।
कुछ ही देर में रोहन ने दरवाजा खोला और इतनी बड़ी भीड़ देख कर सकपका गया।
मौसा जी ने कुटिलता से मुस्कुराते हुए कहा, "अब हम सब को देख कर घबरा क्यों गए बरखुरदार, सोनल बिटिया हम सब की बिटिया है, और हम उसका बाल भी बांका नहीं होने देंगे"।
"जी....जी....आप सब एक साथ.... क्या बात है.....अंदर तशरीफ लाइए", रोहन खुद को संयत करते हुए बोला, और दरवाजा छोड़ कर हट गया।
शोर सुन कर, रोहन के माता पिता और सोनल भी बाहर आंगन में आ गए।
लक्ष्मी जी भागती हुई सोनल के पास पहुंची और उसे गले लगा कर बोली,"तू ठीक है ना मेरी बच्ची, कहीं कुछ लगी तो नहीं"
"मैं, बिलकुल ठीक हूं मां, सुबह थोड़ा सरदर्द था, इसलिए ऑफिस नहीं गई, पर आप सब लोग...अचानक, इस तरह...बात क्या है"सोनल ने पूछा।
मौसा जी दहाड़ते हुए बोले, "वही तो हमें रोहन से जानना है कि बात क्या है, क्यों इसने तुम पर हाथ उठाने की जुर्रत की। दहेज मांगना कितना बड़ा अपराध है मालूम है ना और साथ ही जीवन संगिनी को प्रताड़ित करना, ये कोई शरीफ लोगों को शोभा देता है, तू घबरा मत बेटा, खुल के बता.... क्या किया इसने तेरे साथ।"
"ये क्या बात कह रहे हैं आप लोग, मौसा जी, किसने आपको कह दिया कि रोहन ने दहेज मांगा, मुझे मारा" सोनल हैरान होकर पूछने लगी।
"देखो बेटा, इन लोगों से डरने की कोई जरूरत नहीं, एक फोन घुमाते ही पुलिस यहां आ जायेगी, इसलिए तू खुल के बता तेरे साथ जो भी हुआ अब तक..…" मौसा जी फिर एक एक शब्द पर जोर देते हुए बोले।
"पर आपको कहा किसने कि मैंने सोनल पर हाथ उठाया" रोहन बोला।
"तो क्या ये मासूम रजत झूठ कह रहा है", मौसा जी ने थोड़ा नरम पड़ते हुए कहा, "बेटा रजत, तुमने जो भी देखा, एक बार फिर से बता दो"
रजत की बात खतम होने से पहले ही सोनल मुस्कुरा कर शरमा के घर के अंदर भाग गई।
इधर रोहन भी होठों पर हंसी दबा कर सर झुकाए मुस्कुरा रहा था।
मौसा जी बेचारे, खिसिया कर बगलें झांक रहे थे और कृष्णकांत जी हाथ जोड़ कर माफी मांग रहे थे।
रोहन के माता पिता जो अब तक हतप्रभ पूरा माजरा समझने की कोशिश कर रहे थे उनके चेहरे पर भी एक मुस्कान तैर गई थी।
रोहन के पिता ने उसकी माता जी को कहा, "सुनो समधी जी आए हैं, चाय ठंडा नहीं पूछोगी", फिर रोहन की तरफ देख कर हंसते हुए बोले," रोहन, जा बाजार से गर्म समोसे और जलेबी ले आ, और सुन आते आते दर्जी को बोल कर खिड़की के लिए नए परदे का नाप लेने के लिए भी कहते आना"।
"भाई साहब, सारी गलती मेरी है, पिछले हफ्ते ही खिड़की का परदा फट गया था, मैं ही आजकल आजकल करके टालता रहा।
खामखा तिल का ताड़ बन गया, चलिए अब गुस्सा थूकिए और बहु के हाथ की चाय का आनंद लीजिए।
समाप्त
आभार – नवीन पहल – १६.११.२०२२😋😋
# प्रतियोगिता हेतु
Gunjan Kamal
24-Nov-2022 06:55 PM
👏👌
Reply
पृथ्वी सिंह बेनीवाल
19-Nov-2022 05:08 PM
बहुत खूब
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Rafael Swann
17-Nov-2022 01:06 PM
Shandar prastuti 👏🌸
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