लेखनी कविता - क्षमादान
मेरे घर का एक कोना मेरे बगैर
सदैव प्रसन्न रहा हैं...
ख़ुद की याद में मैंने कभी
किसी के चेहरे पर उदासी की रेखा
नहीं पाई...
मेरे ना होने का दुःख नहीं पाया
मैंने कभी उन लोगों में...
मैंने देखा है तो सिर्फ़ मेरे बगैर
लोगों को ख़ुश होते..
मेरे होने ना होने से मैंने किसी की
जिंदगी में कोई बदलाव नहीं पाया...
मैंने मेरे बगैर लोगों को ख़ुश होते देखा हैं
मेरे छूटने का दुःख कभी कभी किसी के
भाव में मुझे मिला नहीं...
परन्तु अब मैं किसी से पूछना नहीं चाहती
की क्यों...
ऐसा व्यवहार क्यों..
क्यों मेरे ना होने की खलिश उन चेहरों पर
मुझे दिखती नहीं..
अब मैं इस प्रेम और घृणा के वृत से बाहर
आ चुकी हूँ...
अब सिर्फ़ मैंने दिया लोगों को क्षमादान
और मुक्त हो गई प्रेम और घृणा के बंधन से...
अपूर्वा शुक्ला🍁✍
# प्रतियोगिता क्षमादान
Haaya meer
17-Nov-2022 04:08 PM
Superb 👌👌🌺
Reply
Sachin dev
17-Nov-2022 11:45 AM
Lajavab
Reply
Apoorva Shukla
17-Nov-2022 12:32 PM
Shukriya
Reply
Gunjan Kamal
16-Nov-2022 10:20 PM
शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻
Reply
Apoorva Shukla
17-Nov-2022 12:32 PM
Dhanyavaad
Reply