30 days festival - ritual competition 16 -Nov-2022 (39) माह - ए - रमजान
शीर्षक = माह - ए - रमजान
वेसो तो सारे महीने और सारे त्यौहार जो भी खुदा की तरफ से मुसलमानों को इनायत किये गए है, उन सब में मुसलमानों के लिए कोई न कोई खेर छिपी हुयी है, हर धर्म के त्यौहार अनुसार हमारे त्योहारों का तातपर्य भी एक दुसरे से मिलना झूलना , अपनी खुशियाँ अपने दोस्तों, रिश्तेदारों के साथ बाटना है , आपसी लड़ाई झगड़ो को भूल कर आपस में प्रेम से रहने का और त्यौहार को मनाने का उद्देश्य देता है
आइये, खुदा की तरफ से मुसलमानों के लिए इनायत किये गए इस बा बरकत महीने के बारे में तफसील से जानते है ।
माह - ए - रमजान कोई एक या दो दिन तक चलने वाला नही बल्कि 29/ 30 दिन तक चलने वाला, एक बेहद ही खूबसूरत महीना है जिसे हर मुसलमान बच्चा हो या बूढा बहुत ही ज़ोश के साथ मनाता है , पूरे महीने अपने रब की इबादत करके और आखिर में उसे खुदा की तरफ से ईद उल फ़ित्र जैसा तोहफा उसे इनायत किया जाता है , जिसमे वो अच्छे कपडे पहनकर, अपने घरवालों के साथ अपने दोस्त और रिश्तेदारों के साथ घर पर बने पाकवानो का आंनद ले सके , और खुदा का शुक्र अदा कर सके , की उसने उसे इतनी हिम्मत और ताकत दी की वो रमजान के रोज़े रखने के बाद अपने परिवार वालों और दोस्तों के साथ ईद की खुशियाँ मना पा रहा है
रमजान पूरे महीने चलने वाला वो खूबसूरत पर्व है, जो की मुझे बहुत ही प्यारा लगता है , ये एक महीना कब गुज़र जाता है पता ही नही चलता
जितनी इसके आने की ख़ुशी होती है, उतना ही इसके जाने का दुख भी होता है
बाज़ारो में हफ्तों पहले से ही रौनक दिखने लगती है , रमजान की तैयारी हर मुस्लिम परिवार में इस तरह की जाती है जिस तरह किसी मेहमान के आने की खबर सुन कर सब लोग उसके आने की तैयारी करने लग जाते है
घरों में साफ सफाई शुरू हो जाती है , क्यूंकि माह - ए - रमजान एक इबादत का महीना है और हर मुस्लमान की यही ख्वाहिश रहती है की वो ज्यादा से ज्यादा समय अपने गुनाहो की बक्शीस ( माफ़ी ) मांगने और अपने रब की इबादत करने में लगा दे।
माह - ए - रमजान , एक ऐसा बरकत वाला महीना जिसमे अमीर हो या गरीब शाम को हर किसी का दस्तर ख्वान खुदा की पेश करदा नेमतों से भरा होता है
जो कुछ साल भर में भी खाने पीने की चीज़े खरीदने को एक आम आदमी डरता है, क्यूंकि उसका बजट बिगाड़ने का खतरा रहता है, वो भी रमजान के इस बा बरकत महीने में अपने परिवार वालों के साथ उन सब चीज़ो का लुत्फ़ उठाता है
माह - ए - रमजान मुस्लिम महीनों में 9 वा महीना होता है , मुस्लिम त्योहारों का कोई फिक्स महीना नही होता, इस बात से तात्पर्य ये है की जिस तरह दिवाली अक्टूबर या नवंबर में आती है , होली मार्च में मनाई जाती है लेकिन मुस्लिम महीने मोहर्रम से शुरू होकर ईद - उल - अज़हा पर ख़त्म होते है, और ये सब चाँद के निकलने पर निर्भर होता है, इसलिए ही मुस्लिम त्यौहार अंग्रेजी महीनों पर निर्भर नही होते है
ज़ब मैं छोटा था तब माह - ए - रमजान कड़ कड़ाती ठण्ड में आते थे किन्तु अब गर्मी को पार करते हुए दोबारा ठण्ड के दिनों में आ रहे है
वैसे तो हर मुस्लमान मर्द हो या औरत उसके द्वारा कमाई गयी दौलत और उसे कहा कहा खर्च किया गया है, उन सब का हिसाब रोज़ - ए - मेहशर ( the day of judgement ) उसके सामने किया जाएगा
किन्तु माह - ए - रमजान में जो कुछ भी उसने खर्च किया, अपने ऊपर या अपने परिवार वालों के ऊपर दोस्तों के ऊपर नेक नियती ( सच्चे मन से ) से उन सब का हिसाब उससे नही किया जाएगा
माह - ए - रमजान का हर एक पल बहुत ही हसीन होता है , वो भूख और प्यास की शिद्दत , वो नमाज पढ़ने के लिए वुजु के दौरान मुँह में पानी डालना कुल्ली करने के लिए , लेकिन उसे हलक के नीचे नही उतारना की कही रोज़ा न टूट जाए
चाहे कितना ही दिल क्यू न तड़ख रहा हो उस एक घूँट पानी के लिए , हर दम यही डर रहता है की कोई देखे या न देखे खुदा देख रहा है, वो झूठ बोलने से पहले, वो किसी के साथ रोज़े में लड़ाई झगड़ा करने से पहले, वो किसी को रोज़े की हालत में ख़राब समान देने से पहले यही सोचना पड़ता है की खुदा देख रहा
कितना अच्छा हो की सिर्फ माह - ए - रमजान के अलावा भी हर इंसान यही सोचे कुछ भी गलत करने से पहले की खुदा देख रहा है तो धरती पर ही फरिश्तों के साथ रहने का अवसर प्राप्त हो जाएगा
इसी के साथ साथ वो शाम का इंतज़ार , वो रोजे की हालत और इबादत और फिर आस पड़ोस से आने वाली खाने की खुशबू, जो हर दम भूख और प्यास को बढ़ाती है लेकिन फिर भी बस यही आस होती है की अभी नही, ज़ब तक मस्जिद में शाम की अजान नही लग जाती ज़ब तक कोई भी लुकमा ( निवाला ) हलक से नीचे नही उतरेगा
कोई बीमार भी हो जाए तो उसकी यही तमन्ना रहती है, की उसका रोज़ा पूरा हो जाए, लेकिन कभी कभी ऐसा करना सेहत के लिए अच्छा नही होता इसलिए बेहतरी इसी में है की रोज़ा तोड़ लिया जाए और बाद में या तो उसे पूरा किया जाए नही तो किसी भूखे को खाना खिला दिया जाए, क्यूंकि खुदा दिलो के हाल जानने वाला है , वो जानता है की कौन पूरी नेक नियती ( पूर्ण श्रद्धा ) से उसके द्वारा इनायत किये गए इस माह में रोज़े रख रहा है और साथ ही साथ उसकी इबादत भी कर रहा है ,और जो बीमार है और रोज़े नही रख पा रहे है वो उनके भी दिलो को बखूबी जानने वाला है ।
हर वो सेहत मंद शख्स मर्द हो या औरत या फिर वो बच्चा जिसके ऊपर रोज़ा रखना फर्ज़ हो चूका है और वो इतनी हिम्मत रखता है की पूरे न सही कम से कम कुछ रोज़े रख सकता है, तो उन्हें चाहिए की माह - ए - रमजान का तेह दिल से इस्तक़बाल करें और इस पाक महीने में जहाँ तक हो सके अपने गुनाहो की माफ़ी मांगे,
माह - ए - रमजान मुसलमानों के लिए एक बेहतरीन तोहफ़े से कम नही, रमजान का आख़री अशरा ( यानी की 20 रोजो के बाद बचे हुए रोज़े ) जिन्हे ताक रातें कहा जाता है , इन रातो में रात भर इबादत करके, कुरान की तिलावत ( पढ़ )करके, रब के सामने अपने दोनों हाथ फेला कर उससे अपने और अपने परिवार वालों, दोस्तों रिश्तेदारों की सेहत तंदुरसती की दुआ की जाती है और साथ ही साथ गुनाहो की माफ़ी मांगी जाती है।
रमजान के महीने में पड़ने वाले आख़री जुमे को " जुमा तुल विदा या फिर अलविदा के नाम से जाता है " इस दिन हज़ारो की संख्या में मुस्लिम मर्द अपने घरो के पास बनी मस्जिद में नमाज़ अदा करने जाते है , महिलाएं घर पर ही अदा करती है
इस दिन भी सब लोग नया कुरता पायजामा पहन कर नमाज़ अदा करते है , महिलाएं भी ईद के जोड़े के साथ साथ अलविदा के लिए भी नये कपडे बनवाती है ताकि जिसे पहन कर वो नमाज़ अदा कर सके , ऐसा जरूरी नही है की नया कपड़ा होना जरूरी है ये अपनी ख़ुशी पर निर्भर करता है ।
रमजान का महीना एक तरह से अपने नफ़्स अपनी ख्वाहिशों अपने आप पर अंकुश लगा कर , शैतानी कामों से दूर रहकर भूखे प्यासे अपने रब की इबादत करने का महीना है क्यूंकि हमें एक दिन उसी के सामने हाजिर होना है, आज नही तो कल,
30 days festival / रिचुअल कम्पटीशन हेतु
Gunjan Kamal
18-Nov-2022 08:46 AM
शानदार प्रस्तुति 👌
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Prbhat kumar
17-Nov-2022 07:02 PM
👏👌🙏🏻
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