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30 days festival - ritual competition 16 -Nov-2022 (41) ईद - उल - फ़ित्र




शीर्षक = ईद - उल - फ़ित्र



ईद - उल - फ़ित्र जिसे भिन्न भिन्न नामों से जाना जाता है, छोटी ईद, मीठी ईद , इत्यादि। ईद - उल - फ़ित्र  मोमीनों ( मुसलमानों ) के लिए रमजान भर की गयी इबादत में मिला एक तोहफा है ,


ईद की ख़ुशी बूढ़े, बच्चे, आदमी, औरत सब ही को एक बराबर होती है, और सब ही इसके आने का इंतज़ार बेसब्री से करते है


खास कर बच्चों को तो बहुत ख़ुशी होती है, क्यूंकि इस दिन उन्हें नये कपड़ो के साथ इदी के रूप में पैसे भी मिलते है, जिन्हे वो अपनी मर्ज़ी से खर्च कर सकते है 


लेकिन ऐसा होता नही है , वो पैसे उनकी माओ द्वारा उनसे हासिल कर लिए जाते है, उन्हें बेहला फुसला कर और बाद में देने का वायदा करके, बाद में सिर्फ जूती , चप्पलो और बेलन के कुछ नही मिलता अपने पैसे मांगने पर, तो इसलिए अपने पैसे भूल कर भी न दे


ये तो एक मज़ाक किया बात रही आइये चलते है ईद की तरफ, ईद का इंतज़ार तो रमजान का पहला रोज़ा रखने के बाद से ही शुरू हो जाता है , बाज़ारों में खास कर कपडे की दुकानों पर मुस्लिम महिलाओं का अच्छा खासा जमावड़ा देखने को मिलता है 


त्यौहार एक तरह से कमाई का जरया भी कहलाये जा सकते है, क्यूंकि त्योहारों के माध्यम से हर घर का चूल्हा जलता रहता है, और लोगो की आमदनी होती रहती है फिर चाहे वो ईद हो, दिवाली हो, होली हो या कोई और त्यौहार हो


इसी के साथ साथ  दर्जी का काम करने वालों की भी चांदी हो जाती है, रेडीमेड कपड़ो के इस दौर में त्यौहार के माध्यम से दर्जी का काम भी विलुप्त होने से बच जाता है , ज्यादा तर लोग हाथ से सिले हुए कुर्ते पायजामा पहनना पसंद करते है, उसी के साथ साथ महिलाएं भी  ईद के जोड़े सिलवा कर पहनना पसंद करती है,


रमजान के सारे रोज़े रखने के बाद ज़ब चाँद रात आती है, उस रात जैसी चहल पहल  देखने का लुत्फ़ ही निराला है, बाजार मर्द हो औरत या फिर बच्चों से भरे रहते है, और साथ ही साथ ब्यूटी पार्लर पर भी पैर रखने की जगह नही होती है, महिलाएं  घरो का काम जल्दी से निबटा कर ब्यूटी पार्लर की और दौड़ लगाती है, ताकि वो ईद पर खूबसूरत लग सके 


सिर्फ महिलाएं ही नही मर्द हज़रात भी  नाई की दुकान पर बैठे  अपना श्रृंगार पटम कराते है, ताकि वो भी ईद पर अच्छे लग सके 


उसी के साथ घर के जो छोटे होते है, उन्हें परचा हाथ में थमा कर बाजार भेज दिया जाता है सौदा लाने के लिए , बेचारे छोटे होने की वजह से मना भी नही कर सकते 


इसी के साथ  अगला दिन ईद का आता है ,  सब लोग भागा दौड़ी में होते है , महिलाएं रसोई में खाने की तैयारी कर रही होती है और साथ ही साथ  उनकी एक टांग बाप, भाई और शोहर के लिए तैयार करने वाले कपड़ो पर भी होती है, कही वो कपड़ो पर स्त्री कर रही होती है तो कही पायजामों में नाड़े डाल रही होती है,

वही रसोई में कुकर में बज रही सी टी भी उन्हें अपनी याद दिला रही होती है,

बच्चे बूढ़े सब ही ईदगाह की और दौड़ लगाने की जद्दोजहद में होते है, ईद की नमाज़ के बाद सब लोग एक दुसरे को बधाई देते है


उसके बाद सब लोग कब्रिस्तान जाते है, ताकि अपने पूर्वजो अपने मृत रिश्तेदारों की कब्रों पर फूल और अगरबत्ती जलाकर  उनकी मगफिरत की दुआ करते है 


घर आकर  बच्चों को इदी देते है,और अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के घर जाकर थोड़ा बहुत खाना खाते है और उन्हें ईद की बधाई देते है, इसी के साथ साथ शादी शुदा लड़कियां दोपहर होने का इंतज़ार करती है ताकि वो भी तैयार होकर अपने मायके जा सके ।


ये सब तो वो संस्मरण है जो हर साल ईद पर हर घर में होता है, आइये आपको अब थोड़ा गहरायी से ईद के बारे में बताते चले  



ईद उल-फ़ित्र या ईद उल-फितर  मुस्लमान रमज़ान उल-मुबारक के एक महीने के बाद एक मज़हबी ख़ुशी का त्यौहार मनाते हैं। जिसे ईद उल-फ़ित्र कहा जाता है। ये यक्म शवाल अल-मुकर्रम्म को मनाया जाता है। ईद उल-फ़ित्र इस्लामी कैलेण्डर के दसवें महीने शव्वाल के पहले दिन मनाया जाता है। इसलामी कैलंडर के सभी महीनों की तरह यह भी नए चाँद के दिखने पर शुरू होता है। मुसलमानों का त्योहार ईद मूल रूप से भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्योहार है। इस त्योहार को सभी आपस में मिल के मनाते है और खुदा से सुख-शांति और बरक्कत के लिए दुआएं मांगते हैं। पूरे विश्व में ईद की खुशी पूरे हर्षोल्लास से मनाई जत
(
इतिहास

मुसलमानों का त्यौहार ईद रमज़ान का चांद डूबने और ईद का चांद नज़र आने पर उसके अगले दिन चांद की पहली तारीख़ को मनाया जाता है। इस्लाम में दो ईदों में से यह एक है (दुसरी ईद उल जुहा या बकरीद कहलाती है)। पहली ईद उल-फ़ितर पैगम्बर मुहम्मद ने सन 624 ईसवी में जंग-ए-बदर के बाद मनायी थी। ईद उल फित्र के अवसर पर पूरे महीने अल्लाह के मोमिन बंदे अल्लाह की इबादत करते हैं रोज़ा रखते हैं और क़ुआन करीम कुरान की तिलावत करके अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं जिसका अज्र या मजदूरी मिलने का दिन ही ईद का दिन कहलाता है जिसे उत्सव के रूप में पूरी दुनिया के मुसलमान बडे हर्ष उल्लास से मनाते हैं[3]

ईद उल-फितर का सबसे अहम मक्सद एक और है कि इसमें ग़रीबों को फितरा देना वाजिब है जिससे वो लोग जो ग़रीब हैं मजबूर हैं अपनी ईद मना सकें नये कपडे पहन सकें और समाज में एक दूसरे के साथ खुशियां बांट सकें फित्रा वाजिब है उनके ऊपर जो 52.50 तोला चाँदी या 7.50 तोला सोने का मालिक हो अपने और अपनी नाबालिग़ औलाद का सद्कये फित्र अदा करे जो कि ईद उल फितर की नमाज़ से पहले करना होता है।

ईद भाई चारे व आपसी मेल का तयौहार है ईद के दिन लोग एक दूसरे के दिल में प्यार बढाने और नफरत को मिटाने के लिए एक दूसरे से गले मिलते हैं[5]


ईद के दौरान चारमीनार

उपवास की समाप्ति की खुशी के अलावा इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि अल्लाह ने उन्हें महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी। हालांकि उपवास से कभी भी मोक्ष संभव नहीं क्योंकि इसका वर्णन पवित्र धर्म ग्रन्थो में नही है। पवित्र कुरान शरीफ भी बख्बर संत से इबादत का सही तरीका लेकर पूर्ण मोक्ष प्राप्त करने के लिए सर्वशक्तिमान अल्लाह की पूजा करने का निर्देश देता है।[6] ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है। सिवैया इस त्योहार का सबसे मत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ है जिसे सभी बड़े चाव से खाते हैं।[7]

ईद के दिन मस्जिदों में सुबह की प्रार्थना से पहले हर मुसलमान का फ़र्ज़ होता है कि वो दान या भिक्षा दे। इस दान को ज़कात उल-फ़ितर कहते हैं। यह दान दो किलोग्राम कोई भी प्रतिदिन खाने की चीज़ का हो सकता है, मिसाल के तौर पे, आटा, या फिर उन दो किलोग्रामों का मूल्य भी। से पहले यह ज़कात ग़रीबों में बाँटा जाता है। उपवास की समाप्ति की खुशी के अलावा इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि अल्लाह ने उन्हें पूरे महीने के उपवास रखने की शक्ति दी। ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है। सिवैया इस त्योहार की सबसे जरूरी खाद्य पदार्थ है जिसे सभी बड़े चाव से खाते हैं।



महत्व

ईद का पर्व खुशियों का त्योहार है, वैसे तो यह मुख्य रूप से इस्लाम धर्म का त्योहार है परंतु आज इस त्योहार को लगभग सभी धर्मों के लोग मिल जुल कर मनाते हैं। दरअसल इस पर्व से पहले शुरू होने वाले रमजान के पाक महीने में इस्लाम मजहब को मानने वाले लोग पूरे एक माह रोजा (व्रत) रखते हैं। रमजान महीने में मुसलमानों को रोजा रखना अनिवार्य है, क्योंकि उनका ऐसा मानना है कि इससे अल्लाह प्रसन्न होते है। यह पर्व त्याग और अपने मजहब के प्रति समर्पण को दर्शाता है। यह बताता है कि एक इंसान को अपनी इंसानियत के लिए इच्छाओं का त्याग करना चाहिए, जिससे कि एक बेहतर समाज का निर्माण हो सके।

ईद उल फितर का निर्धारण एक दिन पहले चाँद देखकर होता है। चाँद दिखने के बाद उससे अगले दिन ईद मनाई जाती है। सऊदी अरब में चाँद एक दिन पहले और भारत मे चाँद एक दिन बाद दिखने के कारण दो दिनों तक ईद का पर्व मनाया जाता है। ईद एक महत्वपूर्ण त्यौहार है इसलिए इस दिन छुट्टी होती है। ईद के दिन सुबह से ही इसकी तैयारियां शुरू हो जाती हैं। लोग इस दिन तरह तरह के व्यंजन, पकवान बनाते है तथा नए नए वस्त्र पहनते हैं।





उम्मीद करता हूँ आप सब ही को इस प्रतियोगिता में मेरे द्वारा लिखें लेख पसंद आये होंगे, ये प्रतियोगिता अब तक लेखनी द्वारा आयोजित की गयी प्रतियोगिताओं में सबसे प्यारी प्रतियोगिता है, इस प्रतियोगिता के माध्यम से घर बैठे ही अन्य लेखकों द्वारा भिन्न भिन्न त्यौहार और उनसे जुड़े रीति रिवाज़ के बारे में पता चल गया


और साथ ही साथ मुझे भी इस प्रतियोगिता में हर एक राज्य के बारे में लिख कर बहुत अच्छा लगा, साथ ही साथ मुझे भी वहाँ के तीज त्यौहार और रीति रिवाज़ के बारे में पता चला 


सच में भारत जैसा कोई दूसरा देश नही, जहाँ जितने धर्म उतने ही तीज त्यौहार और सब को अपने त्यौहार आजादी के साथ मनाने की आजादी, शायद कोई दूसरा देश नही दे सकता 


सच में मेरा भारत  महान  है, महान था  और महान रहेगा  भले ही लोग आपसी भाईचारे को तोड़ने की, नफरतो को फैलाने की कितनी ही कोशिश क्यू न करले लेकिन सब नाकाम रहेंगी ।


इसी के साथ इस प्रतियोगिता का समापन होता है , आप सब का धन्यवाद मेरे साथ जुड़े रहने के लिए और मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए 


30 days फेस्टिवल / रिचुअल कम्पटीशन हेतु लिखा अंतिम लेख 

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4 Comments

अदिति झा

18-Nov-2022 04:51 PM

Nice 👍🏼

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Gunjan Kamal

18-Nov-2022 08:45 AM

शानदार लेखन

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शानदार

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