Gunjan Kamal

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शिवरात्रि

शिव का अर्थ होता है कल्याण अर्थात जो समस्त प्राणियों के लिए  कल्याणकारी है वही तो शिव हैं l
शिवरात्रि का अर्थ होता है भगवान शिव की रात्रि ( रात )   प्रत्येक  मास ( महीना )  के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी ‘शिवरात्रि’ कहलाती है  लेकिन फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी  को हम “महाशिवरात्रि” के नाम से जानते हैं  और यह  रात्रि ( रात ) भगवान शिव की अति प्रिय रात्रि  ( रात ) होती है।हम आज  शिवरात्रि से जुड़ी कथाओं के जानेंगे , शिवरात्रि क्यों मनाई जाती है इसके पीछे छुपे कारणों को भी जानेंगे और साथ ही महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा - अर्चना कैसे करें यह भी जानेंगे । तों आइए दोस्तों ! शिवरात्रि ‌ क्यों मनाई जाती है इसके पीछे के कारणों से शुरूआत करते हैं :-

हमारे पुराणों में महाशिवरात्रि मनाने के दो प्रमुख कारण कारण बताएं गए  हैं–
पहला कारण यह बताया गया है कि भगवान शिव के जन्मदिवस को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है ।  पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान शिव,  शिवलिंग के  रूप में प्रकट हुए थे l इस दिन पहली बार शिवलिंग की पूजा भगवान विष्णु और ब्रह्माजी द्वारा की गयी थी यही कारण है की इस दिन शिवलिंग की पूजा की जाती है l पौराणिक कथाओं में यह भी कहा जाता  हैं कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण  हुआ था।

    दूसरे कारण के अनुसार  यह भी माना जाता है कि इसी दिन भगवान शिव का  माता पार्वती जी के साथ विवाह संपन्न हुआ  था l भगवान शिव और माता  पार्वती जी के विवाह की कथा बड़ी ही दिव्य है जो इस कथा को कहता,सुनता और पढता है उस पर भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और उसे अपने  जीवन में  सुखों  की  प्राप्ति  होती हैं । तो आइए दोस्तों ! अब शिवरात्रि व्रत  की कथा को जानते हैं :-

पौराणिक कथाओं के अनुसार , एक बार माता  पार्वती जी ने भगवान भोलेनाथ से पूछा :- ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ, सरल व्रत-पूजन है  जिससे मृत्युलोक के प्राणी को आपकी कृपा सहज ही प्राप्त हो जाती हैं ??
भगवान शिव जी ने माता पार्वती जी  से कहा :- देवी ! मैं आपको एक ऐसे व्रत की कथा सुनाने जा रहा हूॅं जिससे मृत्यु लोक के समस्त प्राणियों इसके श्रवण मात्र से ही मेरी कृपा दृष्टि प्राप्त हो जाती हैं । इतना कहने के  पश्चात  भगवान शिव ने माता पार्वती को  ‘शिवरात्रि’  व्रत की  कथा सुनाई जो इस प्रकार हैं :-

चित्रभानु नाम का एक शिकारी था ।  वह  वन के पशु - पक्षियों  की  हत्या करके अपना और अपने परिवार को पालता था l उसने एक साहूकार से कुछ ऋण भी ले रखा था  लेकिन समय पर  ऋण नहीं  चुका  सका  इसलिए साहूकार ने क्रोधित होकर उस शिकारी को एक  बंदीगृह में डाल दिया  । बंदीगृह के निकट ही एक शिवमठ भी था और  संयोग से उस दिन शिवरात्रि भी थी जहाॅं पर भगवान शिव से संबंधित बहुत सी धार्मिक और प्रेरक प्रसंग का  वाचन हो रहा था । शिकारी को पहले तो कुछ समझ में नहीं आया परन्तु जब उसने ध्यान से सुनी तो  शिकारी  शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता ही चला गया । चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी ।  शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के बारे में पुनः  पूछा । शिकारी ने कहा कि अगले दिन  वह उनका सारा ऋण लौटा  देगा।साहूकार ने शिकारी पर विश्वास करके उसे छोड़ दिया l
शिकारी  जंगल में शिकार के लिए चल पड़ा लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल हो उठा ।  शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर बैठ गया ।  बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो विल्वपत्रों से ढका हुआ था । नीचे शिवलिंग है शिकारी को यह  पता ही  नहीं  चला l
पड़ाव (जगह )बनाते समय उसने जो विल्व पत्र की टहनियां तोड़ी वह  शिवलिंग पर जाकर  गिर गई । शिकारी भूखा-प्यासा था और इस स्थिति में उसने शिवलिंग पर विल्व पत्र चढ़ाएं थे तो उसका शिवरात्रि का  व्रत भी  हो गया और शिवलिंग पर विल्वपत्र भी चढ़ गए l
एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भवती हिरनी तालाब पर पानी पीने के लिए पहुॅंची l शिकारी ने उस हिरनी का शिकार करने के लिए धनुष पर तीर चढ़ाकर जैसे ही प्रत्यंचा खींची । हिरनी  ने कहा :- मैं   गर्भिणी  ( गर्भ से ) हूॅं । शीघ्र ही मैं अपने शिशु को जन्म देने वाली हूॅं ।  यदि तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे जो उचित  नहीं है।  मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही  तुम्हारे पास आ जाऊंगी तब तुम मुझे मार लेना । शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरनी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई l

थोड़ी देर बाद एक और हिरनी वहाॅं  से गुजरी । हिरनी को देखकर शिकारी  खुश हो गया ।  हिरनी के निकट  आने पर उसने जैसे ही  धनुष पर बाण चढ़ाया   हिरनी ने शिकारी से  निवेदन किया :- मैं थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूॅं । मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र  ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी। शिकारी ने उसे भी जाने दिया l

दो बार शिकार को खोकर शिकारी चिंता में पड़ गया  अब रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था।तभी एक अन्य हिरनी अपने बच्चों के साथ वहाॅं  से गुजरी ।  शिकारी ने अच्छा मौका पाकर तुरंत धनुष पर तीर चढ़ाया । वह तीर छोड़ने ही वाला था कि हिरणी ने कहा :-  मैं इन बच्चों को इनके पिता के पास छोड़ कर शीघ्र ही  लौट आऊंगी इसके पश्चात तुम मेरी हत्या कर देना परन्तु  मेरे  बच्चों  को  छोड़ दो ।
शिकारी  यह सब बातें सुनकर हॅंसकर बोला:-  तुम्हीं बताओ ? मैं सामने आए शिकार को कैसे छोड़ दूं? मैं ऐसा मूर्ख नहीं हूॅं ।  मैं इसके पूर्व भी दो बार अपना शिकार खो चुका हूँ  । मुझे भी भूख लगी है और मेरे बच्चे भी  भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे l
हिरनी ने पुनः  कहा :- जैसे तुम्हें अपने बच्चों के लिए चिंतित हो  ठीक उसी प्रकार मैं भी अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर तुमसे निवेदन कर रही हूॅं । मैं थोड़ी देर के लिए ही तुमसे अपना  जीवनदान माॅंग रही हूँ  । मेरा विश्वास करो!  मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर वापिस लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ l

शिकारी को उस पर दया आ गई उसने उस हिरनी को भी जाने दिया ।  शिकार के अभाव में विल्व वृक्ष के  नीचे बैठा शिकारी विल्वपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। इस तरह सूर्योदय हो गया । सूर्योदय के पश्चात एक हृष्ट-पुष्ट हिरन उसी रास्ते से गुजरा ।
शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार तो मैं अवश्य करूॅंगा ।  शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर हिरन बड़े प्यार से विनीत स्वर में बोला: - भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन हिरनियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी शीघ्र ही मार डालो  ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े । मैं उन हिरणियों  का पति हूँ l

यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो  मैं उनसे मिलकर शीघ्र ही  तुम्हारे सामने आ जाऊॅंगा l
हिरन की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया। उसने सारी कथा हिरन को सुना दी l
तब हिरन ने कहा :- मेरी तीनों पत्नियाॅं  जिस तरह प्रतिज्ञा में बंधकर गई हैं यदि मेरी मृत्यु हो गई तो वे अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी इसलिए जैसे तुमने उन पर विश्वास करके छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने जल्दी ही उपस्थित हो जाऊॅंगा ।

भूखे पेट(उपवास),पूरी रात जागने के बाद और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था । उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था । धनुष तथा बाण उसके हाथ से स्वत: ( अपने आप )  ही छूट गया। भगवान शिव की कृपा से उसका हिंसक हृदय करुणा से भर गया था ।  वह अपने पूर्व में किए गए  बुरे कर्मों को याद करके पश्चाताप की आग में जलने लगा। थोड़ी ही देर बाद वह हिरन अपने  पूरे परिवार के साथ शिकारी के समक्ष उपस्थित था  ताकि वह शिकारी  उनका शिकार कर सके । जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता,सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को अपने आप  पर  बड़ी ग्लानि  महसूस होने लगी  l शिकारी के  नेत्रों से ऑंसुओं की झड़ी लग गई। शिकारी ने उन सभी की हत्या नहीं की और उन्हें मुक्त कर दिया ।  शिकारी के ह्रदय में कोमल भावनाओं का संचार होने लगा था । उसने पशुओं और पक्षियों की निर्मम हत्या को छोड़ने का संकल्प लें लिया था ।  देवता भी इस घटना को देखकर आश्चर्यचकित  रह गए थे। आकाश से  देवी-देवताओं ने पुष्प-वर्षा की । भगवान शिव की कृपा से  शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए l
जो भी इस शिवरात्रि को सच्चे मन से व्रत करता है और भगवान को स्मरण करता है l कोई गलत काम नहीं करता है भगवान शिव उसे मोक्ष अवश्य  प्रदान करते है l

हम सभी जानते हैं कि  भगवान शिव बहुत ही भोले हैं उनके शिवलिंग पर केवल और केवल एक लोटा जल चढाने मात्र से ही वे प्रसन्न हो जाते हैं l
हमें प्रात: उठकर स्नान आदि करके भगवान शिव के मंदिर जाकर शिवलिंग पर गंगा जल मिलाकर दूध या जल चढ़ाना चाहिए क्योंकि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव को जल चढ़ाने से विशेष पुण्य की प्राप्ति  होती  है।
हमें  शिवलिंग को पंचामृत से स्नान करवाना चाहिए और साथ-साथ पंचाक्षर मंत्र “ ॐ_नमः_शिवाय ” ..मन्त्र का जाप करते रहना चाहिए ।  इस दिन भगवान शिव को बिल्व पत्र अवश्य  अर्पित करना चाहिए क्योंकि भगवान शिव को बिल्व पत्र अत्यंत प्रिय हैं l
शिवपुराण में कहा गया है कि भगवान शिव को रुद्राक्ष, बिल्व पत्र,भांग,शिवलिंग और काशी अति प्रिय हैं।
पंचाक्षर मन्त्र का पूरे दिन जप करना चाहिए lहमें  इस दिन अधिकांश समक्ष मौन रहकर  भगवान शिव का  ध्यान् करना  चाहिए l रात्रि के चारों प्रहरों में भगवान शंकर की पूजा अर्चना करनी चाहिए।हम भक्तगण को  महामृत्युजंय मन्त्र का भी  जाप करना चाहिए  जो इस प्रकार है :—

"ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्!
उर्वारुकमिव बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात् ll

इस विधि से किए गए व्रत से जागरण,पूजा, उपवास तीनों पुण्य कर्मों का एक साथ पालन हो जाता है और भगवान शिव की विशेष अनुकंपा प्राप्त होती है l रात्रि में भी  जितना हो सके भगवान शिव का भजन, मन्त्र जाप,चिंतन और मनन करना चाहिए ।  इस व्रत को श्रद्धाऔर विश्वास के साथ  करने से  भगवान शिव की कृपा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है l हमारे शास्त्रों में यह कहा गया है कि मन से  इस व्रत को करने पर कुॅंवारी  कन्याओं के विवाह की बाधा दूर होती है और उन्हें भगवान शिव के सामान श्रेष्ठ वर प्राप्त होता  है।


हम सभी जानते हैं कि विल्व पत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय हैं इसलिए विल्व पत्र के तीनों पत्ते पूरे होने चाहिए । पत्ते फटे हुए बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए ।  इसका चिकना भाग शिवलिंग से स्पर्श करना चाहिए l यह विल्व पत्र  नील कमल भगवान शिव जी का प्रिय पुष्प माना जाता है l अन्य फूलों मे कनेर, आक, धतूरा, अपराजिता, चमेली, नाग केसर, गूलर आदि के फूल
भी हम भक्तगण चढ़ा  सकते हैं l  इस दिन भक्तगणों को  काले वस्त्र नहीं  पहनने चाहिए । भगवान शिव जी के पूजन में  तिल का तेल प्रयोग नही करना चाहिए । पूजा में साबुत अक्षत ( चावल )  ही चढाना चाहिए । टूटे  अक्षत ( चावल ) नहीं  चढ़ाना चाहिए ।

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                     " ऊॅं नमः शिवाय "

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                                        धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻

  " गुॅंजन कमल " 💗💞💓

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5 Comments

Pranali shrivastava

10-Dec-2022 09:29 PM

हर हर महादेव 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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Prbhat kumar

07-Dec-2022 11:24 AM

हर हर महादेव 🙏🏻

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Anuradha sandley

29-Nov-2022 10:16 AM

Nice 👍🏼

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