त्योहारों रीति रिवाजों वाली डायरी# लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता -07-Nov-2022
रक्षाबंधन ( एक कहानी दो अंत)
राधिका इस बार भी पिछले साल की तरह राखी नहीं भेज पाई अपने भाई को। जब से कोरोना महामारी के कारण लोकडाऊन हुआ वो घर से निकल ही नहीं पाती। शादी के बाद हर रक्षाबंधन में भाई का इंतजार करती पर जब वो अपनी मजबूरी बता कहता इस बार नहीं आ पाऐगा, बड़ी बहन से ही राखी बँधवा लेगा।
राधिका हर साल राखी पोस्ट करती और मन को तसल्ली देती, अगले साल भाई जरूर आऐगा। उसकी सास और ससुराल वाले कभी उसे किसी भी त्यौहार में मायके जाने की अनुमति ना देते। देखते देखते बीस साल बीत गए भाई कभी ना आया राखी बँधवाने अब उसका मन भी टूट रहा था। दीदी कहती,
"मैं खरीद लाई तेरे हिस्से की भी राखी। "
अब राखी पोस्ट करने का मन ही नहीं करता था राधिका का। सुबह से भाई के फोन का इंतजार करती, हार कर खुद ही फोन कर पूछती भाई राखी बँधवा ली। रिस्तों में दूरी मन में दूरी से बढ़ती गई ना कि एक राज्य से दूसरे राज्य के बीच की दूरी।
रक्षाबंधन के दिन उदास राधिका मन मार कर बिना अपनी उदासी जाहिर किए घर के कामों में जुट गई। आज घर में देवरानी जेठानी के भाई, दोनों नन्दें और भाँजी पूरा परिवार जुटा हुआ था।
वो सोच रही थी इन दो साल से तो करोना के कारण बहाना अच्छा है पर इससे पहले भी तो कभी ना आऐ भाई, उनके पास तो फोन पर भी बात करने का समय नहीं है, साल में एक बार रक्षाबंधन के दिन ही तो फोन उठाता है, कहीं बहन पापा की संपत्ति में हिस्सा ना माँग ले डरता है, सोच आँसू गिर रहे थे। (कहानी का पहला अंत)
राधिका के जीवन में नया बदलाव आया जब एक दिन अचानक गूगल पर लेखनी वेवसाईट देखा, और फिर लेखनी में अपना प्रोफाइल बना लिया ,धीरे धीरे लिखना सीख लिया। कई लेखकों को भाई ही कह कर संबोधित करती, भईया की कमी ना खलती। ऐप पर या अपने लेखन सफर में कहीं कोई परेशानी आती तो लेखक भाई उसकी सहायता करते। रक्षाबंधन की शाम को जब सभी रिस्तेदारों के जाने के बाद राधिका ने अपना फोन उठाया, ढ़ेरों वाट्स अप और लेखनी के मैसेज बॉक्स में और उसकी रचनाओं की समीक्षा में रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं देख चेहरे पर मुस्कान आ गई, एक नहीं कई भाईयों की शुभकामनाऐं और आशीर्वाद है उसके साथ। भले ही वो उन भाईयों से ना मिली हो, पर इंटरनेट और लेखन की इस दुनिया में इन भाईयों ने हमेशा उसकी सहायता की। भगवान से सभी भाईयों की लंबी उम्र की कामना करती राधिका की आँखों में अब खुशी के आँसू थे। ( कहानी का दूसरा अंत)
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कविता झा'काव्या
स्वरचित मौलिक
#लेखनी
#लेखनी त्योहारों का सीजन प्रतियोगिता
Radhika
09-Mar-2023 01:03 PM
Nice
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shweta soni
04-Mar-2023 09:22 PM
बहुत सुंदर
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अदिति झा
03-Mar-2023 02:42 PM
Nice 👍🏼
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