Sunita gupta

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एक पुरानी कहावत

18.11.2022
       एक पुरानी कहावत है, "शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्" अर्थात कोई भी धर्म का आचरण करना हो, तो उसके लिए सबसे पहला साधन शरीर है। अर्थात यदि आपका शरीर स्वस्थ है, तो आप कुछ भी काम कर सकते हैं।
           चाहे अच्छा कर्म हो, चाहे बुरा हो, किसी भी कार्य को करने के लिए सबसे पहले शरीर स्वस्थ होना चाहिए। स्वस्थ शरीर के बिना आप कोई भी कार्य ठीक प्रकार से नहीं कर सकते। "वेदादि शास्त्रों में बुरा कर्म करने का तो निषेध है। बुरा कर्म तो करना ही नहीं चाहिए, सदा अच्छा कर्म ही करना चाहिए। अच्छा कर्म करने के लिए भी शरीर तो स्वस्थ होना आवश्यक ही है। स्मरण रहे, "आपका स्वास्थ्य ही आप का सर्वोत्तम मित्र है।"
          शरीर को स्वस्थ रखने के लिए क्या करना चाहिए? कुछ सरल उपाय --- "यदि आप अपनी दिनचर्या ठीक रखें, तो आप स्वस्थ रह सकते हैं। जैसे कि रात को जल्दी सोना, अर्थात लगभग 10:00 / 10.30 बजे तक रात्रि को सो जाना चाहिए। सुबह जल्दी उठना, अर्थात सुबह 4 / 5 बजे तक उठ जाना चाहिए। शौच दातुन मंजन आदि करके प्रतिदिन अपनी क्षमता आयु बल के अनुसार थोड़ा बहुत व्यायाम अवश्य करना चाहिए। खानपान में संयम रखना चाहिए। शुद्ध सात्विक शाकाहारी भोजन खाना चाहिए। अंडे मांस नहीं खाने चाहिएं। गुटका मसाला पान तंबाकू शराब आदि नशीली वस्तुओं से दूर रहना चाहिए। माता पिता की सेवा करनी चाहिए। बड़ों का आदर सम्मान करना चाहिए। अनुशासन में रहना चाहिए। सच्चाई और ईमानदारी से जीवन जीना चाहिए। किसी पर अन्याय नहीं करना चाहिए। झूठ छल कपट आदि दोषों से दूर रहना चाहिए। प्रतिदिन घर में यज्ञ करना चाहिए। ईश्वर का ध्यान प्रतिदिन सुबह शाम दोनों समय करना चाहिए। पशु पक्षी रोगी विकलांग आदि की सहायता करनी चाहिए इत्यादि।"
           "यदि आप को सुख से जीवन जीना हो, तो ऊपर बताए शुभ कर्म करने होंगे। इसके लिए शरीर का स्वस्थ रहना बहुत आवश्यक है। यदि शरीर स्वस्थ होगा, तो आप ऊपर बताए कर्म कर सकेंगे। इस प्रकार से ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।"
        यदि आपका शरीर स्वस्थ रहेगा, तो आप प्रसन्न रहेंगे। "तब दूसरे लोग भी आपसे मित्रता रखेंगे। आप से बातचीत करना चाहेंगे। आपको सहयोग देंगे। तब आपको यह संसार अच्छा लगेगा। जीने योग्य लगेगा।"
         "यदि आप रोगी हो गए, तो न आपको यह संसार अच्छा लगेगा। और न ही दूसरे लोग आपको पसंद करेंगे। रोगी व्यक्ति को कोई भी पसंद नहीं करता। उससे प्रायः लोग दूर भागते हैं,  वे उस रोगी की सेवा करना नहीं चाहते।"
         "इसलिए सदा सावधान रहें। रोगी न हों। शरीर को स्वस्थ बनाएं रखें। सदा चुस्त मस्त और प्रसन्न रहें।"
---- स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।
सुनीता गुप्ता सरिता कानपुर 

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4 Comments

Mahendra Bhatt

19-Nov-2022 06:19 PM

बहुत ही सुन्दर

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अदिति झा

18-Nov-2022 04:40 PM

Nice 👍🏼

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Ayshu

18-Nov-2022 04:24 PM

Bahut khub

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