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आत्माएं

आत्माएं


बहुत से ऐसे किस्से हैं जो अलग-अलग दिखने वाले और भिन्न-भिन्न तरीके से लोगों को डराने वाले भूतों और आत्माओं का उल्लेख करते हैं. ऐसा ही एक किस्सा जापान से भी जुड़ा हुआ है. वैसे तो यहां कई प्रकार की आत्माएं होती हैं लेकिन आजकल जो सबसे ज्यादा प्रचलित है वह है ओकिकू.

इससे पहले कि आप ओकिकू को किसी व्यक्ति विशेष की आत्मा के संदर्भ में लें हम आपको बता दें कि ओकिकू किसी व्यक्ति की आत्मा नहीं बल्कि वह आत्माएं होती हैं जो कुएं में रहती हैं. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जापान में कुएं से निकलने वाली आत्माओं से जुड़े बहुत से किस्से मशहूर हैं जिनमें एक महिला हर रात कुएं में से निकलकर पानी भरने आती है. इन कहानियों पर कई फिल्में और नाटक भी बन चुके हैं.

जापानी भूतों में ओकिकू सबसे पुराने किस्म के भूत हैं. निश्चित तौर पर तो कुछ नहीं कहा जा सकता कि इनका उद्भव कब हुआ लेकिन इनके होने का सबसे पहला प्रमाण सोलहवीं शताब्दी में प्राप्त हुआ था.

okikoo wellआपकी जानकारी के लिए बता दें कि जापान में तीन प्रकार के भूत होते हैं, ओबाके, यूकई, यूरेई. हत्या, आत्महत्या या फिर युद्ध में मारे गए लोगों की आत्माएं, जो बदला लेने के लिए भटकती हैं, उन्हें यूरेई कहा जाता है. जापानी लोगों का मानना है कि यह ओकिकू के रूप में भटकती हैं. यह रात को कुएं से बाहर आती हैं और अपने शत्रु से बदला लेकर वापस कुएं में चली जाती हैं. जापान में ओकिकू पर आधारित कई नाटक भी प्रदर्शित किए गए हैं.

ओकिकू से जुड़ी अधिकांश कहानियां टोक्यो गार्डन में स्थित कनाडियन एंबेसी परिसर में स्थित कुएं से जुड़ी हैं. यहां तक कि अब इस कुएं को ओकिकू वेल ही कहा जाने लगा है. इस कुएं का पानी कोई नहीं पीता. हालांकि यह बात कोई नहीं जानता कि इन कहानियों के पीछे कितनी सच्चाई है.
ओकिकू की पहली कहानी बन्चो सारायाशिकी जुलाई 1741 में टोयोटाकेका थिएटर में प्रदर्शित की गई थी. इस कहानी में बंचो नामक महिला एक समुराई के घर नौकरानी थी. समुराई उसपर प्रेम संबंध बनाने का दबाव डाल रहा था लेकिन बंचो हर बार इंकार कर देती. समुराई ने क्रोधित होकर उस पर चोरी का इल्जाम लगा दिया और उसके सामने शर्त रखी या तो उसकी बात मान ले या फिर उसे सब के सामने चोर बना दिया जाएगा.निराश बंचो ने कुएं में कूदकर अपनी जान गंवा दी और वह ओकिकू बन गई. तब से हर रात ओकिकू कुएं से बाहर निकलती है और पूरी रात भटकती रहती है. सुबह की पहली किरण के साथ ही वह वापस कुएं में चली जाती है. यह सिलसिला हर रात चलता है.

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