Mamta tiwari

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दहेज


# दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय 

दहेज,

कभी सजाया मोती सोना ,
आँचल में उपहार दिया
बैठा बेदी सप्तपदी की, 
बांधा मंगल हार पिया।
बिटिया मालामाल किया था 
,निर्धन बाबुल शिक्षा से,
यह धन क्यों रास न आया,
जान लिया ससुराल जिया ।

खेल दहेज का शुरू हुआ,
चाहत में सँसार रुपिया।
अरमानों का वह घोट गला , 
समझौता कर प्यार दिया।
गुण ज्ञान की कोइ मोल नही
टिया घुट घुट जीने लगी
फिर मंगलसूत्र बना फंदा 
मिली लटकी द्वार टिया।
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 ममता तिवारी "ममता"(छत्तीसगढ़)

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8 Comments

बहुत ही मार्मिक वर्णन

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Gunjan Kamal

22-Nov-2022 09:03 AM

शानदार

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Punam verma

22-Nov-2022 08:20 AM

Very nice

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