Add To collaction

दर्पण





**विषय  स्वैच्छिक***

खड़ी हूं  दर्पण के सामने!!
  टकट की लगाए¡!
खुद को निहारू!! 
इंतजार उस पल का **
********
 पलकों मैं ढूंढ रही हूं!!
पलकें पलकाैं सें कह रही हैं!! 
दाे की जगह चार  हो रही है!
आमने सामने एक दूजे काे देख 
रही हैं !!!
*******
 निश्चल मन उड़ान भर रहा है!!
 कुछ पल का साथ तेरा मेरा दर्पण!!
  झांक रहा है याैंवन!!!
कब तक यू  निहारु  मैं तुम्हें!!!
 सीने से  सिसक रही हूं!!
    छल छली आंखाैं से  तुम्हें ढूंढ रही हूं!!!
कब आआेगेे मेरे बलम!! 
या (साजन) 
कब बनाआेगें मुझे अपना !!!
    शैक्षिक  स्वैच्छिक  स्वेच्छा से खड़ी हूं दर्पण के सामने!! 
तुम्हें अर्पण  तुम्हें अर्पण कर!!! साेच रही एक नई दुनिया बनाये 
तुम संग मिल हम गाये एक नई मंजिल पाये 


***
************
अनुराधा सांडले खंडवा 
🌹🙏🙏🌹ा


   21
4 Comments

बहुत ही सुंदर सृजन और अभिव्यक्ति एकदम उत्कृष्ठ

Reply

Haaya meer

24-Nov-2022 08:38 PM

Sundar

Reply

Gunjan Kamal

24-Nov-2022 10:31 AM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 🙏🏻🙏🏻

Reply