दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय ऋतु वर्णम्म
ऋतु वर्णनम
ग्रीष्मऋतु
गर्मी में तवा सी तपै धरती,झुकि आयो मनौ जग पे दिनकर।
तन स्वेद भरौ,मन खेद भरौ,बस बिजना डोलावत हैं दोउ कर।
नदियाँ, सर,कूप,तड़ाग डरे,सिकुड़े से रहे लखि भय दिनकर।
कहूँ छांव भी ठाँव न पावे सखी,जा लुकाय रही घर के भीतर।
वर्षा विरहिन की
कहते न बने,सहते न बने,मन ही मन पीर पिराइबो करै।
पिय जाय बसे परदेश सखी,बरखा ऋतु आग लगइबो करै।
झरें पातन से बुँदियाँ ऐसे ,जैसे विरही नयन बरसाइबो करै।
नहिं काटे कटे ई निगोड़ी रैनि, तन-मन छन-छन तरसैबो करै।
शीत ऋतु
यहु पूस की रात न बीतै सखी,नहीं नयन नींद समाय रही।
तारा सों तरनि चमकै री सखी,रवि ज्योति शशि सी दिखाय रही।
विरही तन ताप वियोग जरैं,यहु शीतल आग लगाय रही।
जरि जाइ ई सौत सुनो री सखी,पिय आजहु जौ न बुलाय रही।
नवीन पहल भटनागर
25-Nov-2022 12:24 PM
बहुत खूब
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Mohammed urooj khan
25-Nov-2022 12:18 PM
👌👌👌👌
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Gunjan Kamal
24-Nov-2022 08:57 PM
👏👌
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