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प्रतिस्पर्धा

जैसा जैसा कि आपने पढ़ा —-अरुण और यामिनी दोनों ने एक दूसरे से कहा या चलो देखते हैं कि चार दिन बाद कौन प्रथम आता है और सभी बच्चे तैयारी में जुट गए थे, तो अब आगे—---




प्रतिस्पर्धा अर्थात प्रतियोगिता जिसे हम आम भाषा में एक दूसरे से आगे बढ़ने की जोश अथवा इच्छा कहते हैं‌। प्रतिस्पर्धा बहुत ही आवश्यक चीज होती है, जिसके द्वारा मनुष्य जितना चाहे स्वयं को उतना योग्य बना सकता है। क्योंकि हम उतना परिश्रम तब ही नहीं कर सकते जब हमें स्वयं एक आसान काम करना हो, बल्कि हम अपने सीमाओं को तब पार कर जाते हैं, जब हम किसी और से उसी काम में जीतने की इच्छा रखते हैं।
 किंतु प्रतिस्पर्धा को हमें सदैव प्रतिस्पर्धा ही समझनी चाहिए यदि हम कभी किसी से मात खा जाएं तो इस मात को हमें अपने मन मस्तिष्क पर हावी नहीं होने देना चाहिए ।
यदि यह मात हमारे मन मस्तिष्क पर हावी हो गया तो यह हमारे लिए हानि का विषय बन कर रह जाएगा ।
निरंतर प्रतिस्पर्धा जीतने वाले व्यक्ति को चाहिए कि वह इससे अपने अभिमान को पोषित ना करें, यदि भ्रम वश इस विजय से वह अपने अभिमान को पोषित करता है तो यह उसके पराजय का कारण बनेगा ही बनेगा साथ में वह अपना आत्मविश्वास खो बैठेगा और वह सदा के लिए ऐसे भ्रष्ट मार्ग पर चला जाएगा जिससे सदा स्वयं को ही कष्ट पहुंचाएगा ही पहुंचाएगा साथ में वह अपनों को भी दुखी करता रहेगा ।
जैसे जब रामायण के युद्ध में रावण ने मंत्रियों से पूछा कि – वानर सेना के लिए हमें क्या करना चाहिए तो निरंतर जीतने के कारण अभिमान से पोषित उसके मंत्रियों ने उससे कहा महाराज! आप चिंता क्यों करते हैं ? उन साधारण वानरों को हमारी राक्षस सेना ही खा जाएगी, उसके बारे में चिंता करने की क्या आवश्यकता है।
 रावण भी त्रिलोक विजय के अहंकार के कारण ठाट से सोता रहा, किंतु वानर सेना निरंतर मेहनत करती रही आगे बढ़ती रही और शत्रुओं के रण कौशल को जानकर उसके अनुसार स्वयं को तैयार करती रही, फलस्वरूप रावण के अभिमान के कारण उसकी पराजय तो हुई ही साथ में उसके सारे सगे संबंधी भी मारे गए ।
अतः हमें कभी भी अपने जीत से अपने अभिमान को पुष्ट नहीं करना है हमें प्रतिस्पर्धा के द्वारा विनाश नहीं बल्कि मानव कल्याण करना है।
 इसके कई उदाहरण है— जैसे भारवी ने अपने पिता से प्रतिस्पर्धा के कारण मानव कल्याण के लिए भारवी रामायण और किरातार्जुनीयम् लिखी जो कर्म के द्वारा सब कुछ प्राप्त करना सिखलाती है ।
वही जब पाणिनि ने पाणिनीय अष्टाध्यायी की रचना की तो कात्यायन को लगा कोई मूर्ख व्याकरण शास्त्र लिखेगा तो जगत में अशुद्धियां भी फैलाएगा और द्वंद्व के कारण उन्होंने उन अशुद्धियों को दूर करने के लिए अष्टाध्याई पर सूत्रों की वर्तिका लिख डाली जो मानव के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध हुई ।
किंतु द्वंद्व वस कठिन शब्दों के लिखे जाने पर योग शास्त्र के रचनाकार प्रकांड विद्वान ने इस प्रतिस्पर्धा को समाप्त करते हुए उन दोनों ग्रंथों पर एक सरल स्पष्ट एवं सुंदर भाष्य लिखा जिससे साधारण विद्वान भी व्याकरण शास्त्र के कठिन से कठिन सूत्रों को समझ कर उनका अर्थ लगा सके
 इसी कारण प्रतिस्पर्धा के सच्चे और उत्तम उदाहरणों में इन्हीं तीन ऋषियों का नाम लिया जाता है ।
प्रतिस्पर्धा इसीलिए होती है ताकि बालक युवा वयस्क चाहे जो भी हो वह अपने कार्य को
जल्दी और उत्तम ढंग से कर सकें हमारे अंदर के प्रतिभा को ठीक तरह से निखारने के लिए हमें वही प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए जिसमें हमारा और सभी का कल्याण निहित हो।

खैर संस्कृत की कविताएं सुनाने में अभी 4 दिन बाकी थे और बच्चों में तैयारी का जोश बढ़-चढ़कर था स्कूल में प्रार्थना के बाद जब पहली घंटी लगी तो गणित वाले नए गुरुजी अर्थात शुक्ला गुरुजी आए और बोले — तो कहो बच्चों याद हो रहा है या नहीं ? 
सभी बच्चों ने कहा– थोड़ा बाकी है कुछ ने कहा अभी याद कर रहे हैं उसके बाद गुरु जी ने यामिनी से पूछा याद हो रहा है कि नहीं ?
जिस पर यामिनी अरुण की ओर देखते हुए बोली गुरुजी पांच और याद करने हैं।
 गुरुजी बोले – वाह बहुत अच्छे मेहनत करती रहो ।
यामिनी- जी गुरु जी।
 तुम्हें भी याद हो रहा है ना अरुण की ओर देखते हुए गुरुजी ने पूछा ।
जी गुरू जी एक आध तो याद हो ही गए हैं अरुण अपने मन में सोचता है कि मुझे तो पहले से ही याद हो चुके हैं, पर कहना ठीक नहीं क्योंकि और बच्चे तो याद ही कर रहे हैं ।
गुरुजी ने पूछा– क्या सोच रहे हो?
 अरुण चौककर कुछ नहीं गुरु जी आप एक बार और पढ़ा देते तो अच्छा रहता ।
गुरुजी– चलो ठीक है एक बार तुम लोगों को एक बार और पढ़ा देता हूं, किंतु याद रखना कि अगर उस दिन नहीं सुना पाए तो तुम लोगों की खैर नहीं।
 सभी बच्चों ने सर हिलाकर हामी भर दी।
 गुरु जी ने पहले संस्कृत की कविताओं को पढ़ाया और फिर गणित पढ़ाने लगे और जब घंटी लगी तो चले गए।
 दूसरी घंटी में ओझा गुरु जी आए तो सभी बच्चे खड़े हो गए तो गुरु जी ने उन्हें बिठाया और पढ़ाने लगे और बोले– 
 अभी तक जो पढ़ाया है आज के तीसरे दिन उसकी तुम लोगों से परीक्षा ली जाएगी अब बच्चों को काटो तो खून नहीं,
सभी बच्चों पर मानो आसमान टूट पड़ा हो सभी ने पूछा –सच में ?
गुरुजी गुरुजी ने कहा– हां
 और अच्छे से तैयारी करो वरना बहुत पीटेंगे बच्चों की हालत खराब हो चुकी थी और तीसरी घंटी लगी तो हिंदी वाली अध्यापिका आई और हिंदी पढ़ाने लगी बच्चे पढ़ ही रहे थे तभी अचानक अध्यापिका बोली– तुम लोगों से एक बात कहानी है।
 बच्चे बोले– क्या आपने शुक्ला गुरुजी को हमें उस दिन ना पीटने से मना लिया है ?
जिस पर अध्यापिका हंसते हुए बोली ऐसा कुछ नहीं है।
 दरअसल बात यह है की मैं भी तुम लोगों की आज से तीसरे दिन परीक्षा लेने वाली हूं ।
क्योंकि हेड मास्टर जीने उस दिन सभी अध्यापकों को मासिक परीक्षा लेने को कहां है ,
अब तो बच्चे घबरा गए और यामिनी के चेहरे पर भी गंभीरता के भाव आ चुके थे, पर अरुण मन ही मन प्रसन्न और अपने मित्रों के लिए चिंतित भी था।
 सभी ने कहा – मैम आप परीक्षा किसी और दिन भी तो ले सकती हो ?
अध्यापिका – नहीं हेड मास्टर जी का साफ-साफ निर्देश है की परीक्षा उसी दिन होगी और केवल मैं ही नहीं सभी लेंगे।
केवल गणित वाले गुरुजी गणित की परीक्षा नहीं लेंगे बस तो अब तैयारी शुरू कर दो ठीक है ना?
 ना चाहते हुए भी सभी बच्चों को हामी भरनी पड़ी किंतु अब भी अरुण को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था ,क्योंकि उसे तो अब तक पढ़ाये गए सारे विषय याद हो चुके थे।
 फिर विज्ञान वाले गुरु जी ने भी यही कहा और नैतिक शिक्षा वाले गुरु जी ने भी सभी ने बारी-बारी से तीसरे दिन परीक्षा लेने की बात कही और कहां अगले 2 दिन तुम लोगों को कोई नया पाठ नहीं पढ़ना है बल्कि परीक्षा होने की वजह से तुम लोगों को घर के साथ स्कूल में भी अपने विषयों को याद करने का मौका दिया जाएगा फिर क्या सभी बच्चे लग गए तैयारी में और स्कूल में छुट्टी की घंटी लगने तक पढ़ाई करने लगे ।
अगले दिन भी प्रार्थना के बाद सभी बच्चे अपनी पढ़ाई में जुट गए और पढ़ते रहे, यहां तक कि कोई बच्चा अपने कक्षा के बच्चों से बात तक नहीं कर रहा था और सभी बस याद करने में व्यस्त थे।
 दूसरे दिन जब दोपहर में अरुण बाहर मैदान में बैठकर याद कर रहा था तो अनमोल ने पूछा– क्या अरुण तुम्हें याद हो गया है या नहीं?
 जिस पर अरुण ने कहा मुझे कई दिन पहले ही यह सब याद थे पर मैं किसी को बताना नहीं चाहता।
 अनमोल ने पूछा– ऐसा क्यों?
 अरुण– क्योंकि मैं नहीं चाहता मेरे मित्रों को बुरा लगे ।
अनमोल– अब तो तुम बच गए पर उस यामिनी का क्या होगा ?
अरुण– हंसते हुए गुरु जी के हाथों पिटाई ।
अनमोल– फिर तो मजा आएगा क्योंकि जब मुझे मार पड़ी थी तो बड़ा हस रही थी ।
अरुण– वह तो ठीक है पर तुम्हें याद हो गया है ना वरना कहीं ऐसा ना हो कि फिर से तुम्हारी पिटाई हो जाए।
 अनमोल– नहीं ऐसी बात नहीं है इस बार मुझे सब याद है मेरी कक्षा में केवल संस्कृत की कविता ही पूछी जाएगी और कुछ नहीं और तुम्हारे में तो बाकी चीजों की भी परीक्षा होनी है ।
अरुण –उससे कोई परेशानी नहीं है दरअसल वह सारे विषय मुझे पहले से ही याद है बस उन सबको 4 दिन से दोहरा रहा हूं ,इसलिए उन चीजों का मुझे कोई भय नहीं है।
 अनमोल– अच्छा तुम पढ़ाई करो तुम्हें मुझसे ज्यादा विषय तैयार करने इसलिए मैं चलता हूं ठीक और वह अपनी कक्षा में चला गया ।
तभी यामिनी और उसकी एक सहेली जिसका नाम रागिनी है जो अरुण की काफी अच्छी दोस्त है दोनो आ गई ।
 यामिनी बोली अरे अरुण!
 तुझे याद हो गया या अभी से मार खाने के लिए हाथ सहला रहे हो ?
अरुण– यह तो कल पता चलेगा कि कौन अपने हाथ सहलाएगा और कौन रोएगा है ना रागिनी ।
यामिनी– रागिनी की ओर देखते हुए बोली वह तो कल देखेंगे कि कौन रोता है क्यों रागिनी।
 रागिनी– तुम दोनों मेरा नाम क्यों ले रहे हो ?
बात करनी है तो एक दूसरे से करो मेरा नाम ले लेकर क्यों बात करते हो मैं जा रही हूं मुझे भी पढ़ाई करनी है और शर्त तुम दोनों के बीच में है मेरे नहीं और हां मुझे सारी कविताएं याद है और यामिनी तुमने तो अभी तक पूरी कविता भी याद नहीं की ।
यह सुनकर है अरुण हंसने लगा और बोला–
 ओहो कल परीक्षा है और साहिबा को कविताएं भी याद नहीं है वाह क्या बात है बहुत सुंदर ।
यामिनी– तुम्हें क्या मतलब मुझे याद हो या ना हो तुम्हें क्या फर्क पड़ता है और जिसे याद है याद नहीं है वह तो कल पता चलेगा ना कि आज और ऐसा कह कर वह दोनों चली गई ।

रास्ते में रागिनी यामिनी से बोली – तुमने मुझसे ऐसा कहने के लिए क्यों बोला ?
यामिनी –ताकि उस गधे को लगे कि मुझे अभी नहीं याद है और वह याद करने में ज्यादा मन न लगाएं ।
रागिनी– पर यह तो छल है और वैसे भी वह मेरा मित्र है तो उसके साथ तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था।
 यामिनी – ओहो 4 दिन में ही तुम्हारा मित्र बन गया और मैं कुछ नहीं?
 रागिनी– पर ।
यामिनी– पर वर कुछ नहीं सोचो जब वह गुरु जी के हाथों पीटा जाएगा तो कितना मजा आएगा ।
रागिनी– यह गलत है तुम्हें तो पता है कि गुरुजी कितना तेज मारते हैं और वह ऊपर से इस विद्यालय में अभी नया नया आया है।
 यामिनी– तो जब नया था तो उसे मुझसे यानी समझदार यामिनी से पंगा लेने की क्या जरूरत थी।
 रागिनी– पर तुम्हें मुझसे झूठ नहीं बुलवाना चाहिए था वह मुझ पर भरोसा करता है ।
यामिनी– अच्छा तो तुम मेरे लिए इतना भी नहीं करोगी यामिनी ने रुठते हुए कहा।
 रागिनी– पर यह गलत है।
 यामिनी – कुछ गलत नहीं प्रतिस्पर्धा में सब चलता है और मजा तो तब आएगा जब कल उसे मार पड़ेगी और वह मार खाएगा और उसके परीक्षा में कम नंबर भी आ जाए तब तो पूछो ही मत आनंद आ जाएगा।
 पर यह किसी से मत कहना की मुझे सिर्फ एक ही कविता नहीं याद है बस‌।
 तभी पीछे से अरुण ने पूछा– क्या नहीं याद है?
 कुछ नहीं यामिनी ने जवाब दिया और चली गई ।
जब रागिनी कक्षा में जाने लगी तो अरुण ने रोक कर कहा–मैम मुझे गधा बनाने चली थी क्या आप ?
रागिनी- थोड़ा घबराते हुए क्यों मैं तुम्हें गधा क्यों बनाऊंगी आखिर तुम दोस्त हो मेरे।
 अरुण– अच्छा तभी मेरे सामने नाटक कर रही थी की यामिनी को एक भी कविता नहीं याद है ताकि यह सुनकर मैं भी याद करने में ज्यादा ध्यान ना दूं और वह जीत जाए।
 रागिनी– नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है।
 अरुण– अरे अब सच बोल भी दो क्योंकि मैंने तुम दोनों की बातें सुन ली है।
 रागिनी– मुंह लटका कर बोली हां उसने ही मुझे ऐसा करने को कहा था कि उसे एक भी याद नहीं है ताकि तुम भी याद करने में ज्यादा ध्यान ना दो और वह जीत जाए पर मुझे पूरा सच में याद है ।
अरुण ने पूछा सच में याद है ना या झूठ बोल रही हो रागिनी नहीं मैं सच बोल रही हूं आज ही पूरा याद हुआ है बड़ी मेहनत से।
 अरुण– अरे तुम तो बड़ी भोली हो और और तुम्हारी सहेली सच में चुड़ैल के साथ गधी भी है।
 रागिनी– मेरी सहेली को ऐसा मत बोलो वरना बता दूंगी उसे।
 अरुण– यह सभी लोग कहते हैं सच में और एक बात कहूं?
 रागिनी– हां बोलो ।
अरुण– मुझे सारी कविताएं याद है और साथ में सारे विषय भी कई दिन पहले से ही याद है सो मैं तो बच गया पर तुम्हारे सहेली का क्या होगा?
 रागिनी– हे भगवान !अब तो यामिनी पक्का हारेगी।
 अरुण– तो जाइए महोदया और अपने सहेली पर छड़ी बरसने का इंतजार कीजिए इतना कह कर अरुण अपनी कक्षा में चला गया 
साथ में पीछे पीछे रागिनी भी कक्षा में चली गई।
 प्रार्थना के बाद सभी बच्चे कक्षा में थे कोई किसी से बात नहीं कर रहा था सब अपनी कविता आदि याद करने में व्यस्त थे और उधर जब रागिनी यामिनी को बताने की कोशिश करती की अरुण को सारी कविताएं याद है, तो यामिनी यह कह कर उसे चुप करा देती की अभी कुछ मत बोलो अभी बस मुझे याद करने दो और धीरे-धीरे करके पहली घंटी बीत गई।
  सभी बच्चे अब तैयार थे अपनी परीक्षा के लिए उसी वक्त ओझा गुरुजी कक्षा में आए और बोले– तो बच्चों तैयार हो परीक्षा देने के लिए?
 सभी बच्चों ने एक साथ कहा– जी गुरु जी।
 ओझा गुरुजी– तो सब अपनी अपनी पुस्तिका से दो पन्ने निकालो और श्यामपट्ट पर मैं जो प्रश्न लिखूं उसका सही-सही उत्तर अपने उसी पन्ने पर लिखना।
 गुरुजी प्रश्न लिखकर इंतजार करने लगे और बच्चे भी प्रश्न का उत्तर लिखने में जुट गए घंटी बीती तो उन पन्नों को जमा करा कर गुरुजी अपने साथ ले गए।
 उसके बाद हिंदी की अध्यापिका आई प्रश्न लिखे और बच्चे उसका उत्तर लिखने में जुट गए जब वह बच्चों से पन्ने लेने लगी तो पन्ने लेते वक्त बोली– 
 पिछली बार तो और रागिनी और यामिनी दोनों का बराबर अंक था और दोनों कक्षा में प्रथम थी ।
इस बार देखो कौन प्रथम आता है?
 यामिनी बोली – मैम मैं ही इस बार फिर से प्रथम आऊंगी, अरुण ने कहा– वह तो कल देखा जाएगा मैम कौन आता है प्रथम ।
अध्यापिका पन्ने लेकर चली गई और इधर रागिनी परेशान थी की वह कैसे बताएं कि अरुण को सब कुछ याद है धीरे-धीरे करके सारे पाली बीतते गये और बच्चे तन्मयता के साथ सारी परीक्षा देते गए किंतु कहते हैं ना बचपन की कक्षाओं में तब तक आनंद नहीं आता जब तक किसी बच्चे की छड़ी से पिटाई ना हो जाए और पिटने वाला छात्र यदि अपना मित्र हो तो अलग ही आनंद है।
 खैर जिस घड़ी की प्रतीक्षा थी वह घड़ी आ गई क्योंकि आज अरुण को स्वयं को सबके सामने सिद्ध करना था कि वह भी योग्य है ‌।
कुछ बच्चे परेशान थे तो कुछ खुश कुछ बच्चे अरुण की तरह शांत बैठे थे और रागिनी अभी भी द्वंद में फंसी थी कि वह अपने सहेली को कैसे बताएं अरुण को कविताएं याद है,
 तभी अचानक शुक्ला गुरुजी एक मोटी शीशम की छड़ी के साथ कक्षा में आ गए तो सभी बच्चे खड़े हो गए।
 गुरुजी ने कहा बैठ जाओ बच्चों बच्चे बैठ गए,
 तो गुरु जी ने पूछा– तैयार हो सुनाने के लिए?
 सभी बच्चों ने हामी भर दी ।
शुक्ला गुरु जी बोले – तुम लोगों के पास तीन विकल्प है:-
 पहला जिसे लगता है उसको पूरा ठीक से याद नहीं है वह खड़ा हो जाए तो उसे केवल पार्क छड़ी पड़ेगी ।
दूसरा जिसे लगता है कि उसे आधा याद है वह खड़ा हो जाए तो उसे भी केवल 5 ही पड़ेगी।
 तीसरा और जिन्हें लगता है कि उन्हें पूरा याद है वह बैठे रहे पर उनके प्रति गलती पर उन्हें दो चढ़ी मारी जाएगी।
 तो पहले वाले एक किनारे पर हो जाएं गुरु जी के कहने पर कुछ बच्चे किनारे हो गए दूसरे वाले भी किनारे हो जाएं वह भी किनारे हो गए बाकी बच्चे बैठे रहे।
 जो बच्चे खड़े हुए थे उन बच्चों को गुरुजी ने बारी-बारी से 5 5 छड़ी मारी और बैठा दिया बाकी जो बच्चे बैठे थे उनमें से एक एक बच्चे को खड़ा करके उससे सुनने लगे दुर्गेश, श्यामू ,कमल कांत, कमलेश, मासूम, श्यामलाल इन बच्चों ने पूरी कविता सुनाई और जब अरुण की बारी आई तो उसने भी धाराप्रवाह कविता सुनानी आरंभ कर दी बिना किसी गलती के, अब यामिनी को काटो तो खून नहीं उसकी हालत खराब हो गई थी 
तब रागिनी ने कहा– यही मैं तुमको बताना चाह रही थी कि उसे सब याद है लड़कियों में काफी लड़कियों के एक से दो गलती गए थे वही रागिनी ने पूरा सुना दिया ममता, गुड़िया पूजा ने भी पूरी कविता सुनाई और यामिनी तो अब भी कहीं और खोई थी जिसके कारण उसकी एक गलती हो गई अब तो मानो उसके पैर के नीचे से जमीन खिसक गई हो।
 उधर गुरु जी ने जिसकी जैसी गलती थी उसको वैसे ही पीटना शुरू कर दिया पूरी कक्षा में बस छड़ी बरस रही थी और जब यामिनी की बारी आई तो उसने कहा गुरुजी इस बार छोड़ दीजिए अगली बार गलती नहीं होगी तो गुरु जी ने कहा- हाथ फैलाओ उसने हाथ फैलाया और गुरु जी छड़ी मारते हुए बोले कि इसलिए तो आज दंडित कर रहा हूं ताकि दोबारा गलती ना हो ।
छड़ी से मार खाने के बाद यामिनी रुआंसी होकर अपनी सीट पर बैठ गई और इधर अरुण मन ही मन मुस्कुरा रहा था।
 शुक्ला गुरु जी बोले – देखो मैंने तुम लोगों को 10 दिन का समय दिया था पर अगर तुम प्रत्येक दिन शांत मन से एक एक कविता याद करते तो सारी कविताएं याद हो जाती पर तुम लोगों ने याद करने की बजाय इसे एक लक्ष्य ना समझ कर इसे परेशानी समझ बैठे जिस कारण इतना सरल कार्य भी कठिन हो गया अतः तुम लोग परिणाम स्वरूप इसे याद करने में असक्षम हो गए इसलिए आज से हर कार्य को शांतिपूर्वक लगन से करना फिर देखो यह कैसे याद होता है ।
तो बताओ आप लोग कितने दिन में यह कविता सुना दोगे ? सभी बच्चों ने कहा जल्द ही।
 गुरुजी बोले ठीक है और इतना कह कर जाते हुए बोले कि तुम लोगों के साप्ताहिक परीक्षा का अंक जल्द ही घोषित कर दिया जाएगा कल कोई अनुपस्थित नहीं होगा क्योंकि कल ही आज जो परीक्षा हुई है उसका परिणाम तुम लोगों को बताया जाएगा कि किसके कितने अंक आए हैं ।
बच्चे बोले जी गुरु जी इतना कह कर गुरु जी चले गए ।
यामिनी को काफी ज्यादा गुस्सा आ रहा था और वह अरुण के तरफ गुस्से से देख रही थी तो अरुण ने कहा ऐसे क्यों देख रही हो?
 मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है मैं तो पहले से ही कह रहा था अपना-अपना याद करो शर्त लगाने की क्या जरूरत है।
 इतना सुनते ही यामिनी जोर से हंस पड़ी और बोली तुम कितने बुद्धू हो जो इतना जल्दी डर जाते हो वह तो मैं तुमसे परिहास करके अपने पिटाई का बदला ले रही थी ऐसा कह कर दोनों हंसने लगे।
 यामिनी– वैसे तुम काफी समझदार हो।
 अरुण– हां वह तो मैं हूं आखिरकार जो रागिनी के गांव से हूं ।
यामिनी- हां वह तो है तो फिर आज से हम दोस्त ?
अरुण– क्यों नहीं।
 यामिनी- आज तो तुम जीत गए अब देखो कल कौन प्रथम आता है ?
रागिनी– मुझे लगता है अरुण ही प्रथम आएगा।
 अरुण– हां चलो कल देखा जाएगा और उसके बाद स्कूल की घंटी बजी सभी बच्चे अपने अपने घर चले गए।

 अगले दिन सभी बच्चे उत्सुक थे कि सबसे ज्यादा अंक किसके आएंगे और कुछ तो यह सोच रहे थे कि उत्तीर्ण होंगे भी या नहीं।
 जैसे ही कक्षा की पहली घंटी लगी तो आज शुक्ला गुरु जी के स्थान पर हिंदी की अध्यापिका अर्थात गोल्डी मैम आ गई और बोली– तुम लोगों के परिणाम की घोषणा मैं करूंगी।
 सभी बच्चों ने कहा – ठीक है ।
अध्यापिका सभी के अंक बताने लगी किसी के हिंदी में 50 में 25 थे तो किसी के 35 किसी के 40 ऐसे सभी विषय में सब के नंबर आए थे उसके बाद अध्यापिका ने कहा कि अब प्रथम और द्वितीय तृतीय की घोषणा करनी है ।
जिसमें द्वितीय स्थान पर दो लोग हैं यामिनी और रागिनी तृतीय पर दुर्गेश और कमलेश है और प्रथम पर अरुण है यह सुनकर सभी बच्चे ताली बजाने लगे ।
यामिनी भी खुश थी और ताली बजा रही थी क्योंकि उसकी सारी ईर्ष्या तो कल ही समाप्त हो गई।
 धीरे धीरे दिन बीतते गए सभी पढ़ने आते रहे कभी अरुण तो कभी यामिनी कभी रागिनी कभी दुर्गेश प्रथम आते रहे ।
इनमें अच्छी खासी मित्रता थी कभी-कभी अरुण को भी गृह कार्य न करने के लिए दंड मिलता क्योंकि इसमें उसका मन नहीं लगता था।
 खास करके हिंदी के घंटे में तो कदापि नहीं उसको हिंदी के गृह कार्य करने में ज्यादा रुचि नहीं थी।
 उसे पत्रिकाएं और कहानियों का शौक था इसलिए वह उसे ही पढ़ने में ज्यादा समय बिताता था ।
धीरे धीरे वार्षिक परीक्षा भी हो गयी और स्कूल के समाप्ति का दिन आया ।
 सभी बच्चे अपने घर जाने को उत्सुक थे उस दिन के बाद दोबारा मिलने वाले नहीं थे गुरुजी कक्षा में आए बच्चे उन्हें प्यार से तिवारी गुरु जी कहते थे, तिवारी गुरु जी ने कहा– देखो आज इस कक्षा का अंतिम दिन है कुछ लोग इसमें से 2 सालों से पढ़ रहे हैं जैसे अरुण कक्षा चार में भी था और अभी पांच में है यामिनी रागिनी यह सभी लोग पिछले 2 सालों से पढ़ रहे हैं ।
कई बच्चे इसमें नए भी हैं कई पुराने हैं पर आशा करते हैं कि हम लोगों का एक बार फिर इसी स्कूल में आना होगा और ऐसा कह कर गुरुजी चले जाते हैं ।
अरुण भी कहता है यामिनी! हम लोग नये कक्षा में आएंगे तो फिर मिलेंगे और और ऐसा कह कर वह एक दूसरे को विदा करते हैं पर अरुण को क्या पता की यह यामिनी से उसकी अंतिम मुलाकात है दिन बीतते गए किंतु जब नामांकन की बारी आई तो इस बार अरुण के घर वालों ने उसे पढ़ने के लिए बाहर भेज दिया ।
अरुण दोस्तों से बहुत दूर चला गया उधर यामिनी भी अपने घर वालों के साथ पढ़ने के लिए किसी और शहर में चली गई थी,
 सभी लोग एक दूसरे से अलग हो चुके थे अब अरुण अपने दोस्तों को याद करता है और सोचता है काश उनसे फिर एक बार मुलाकात हो पाए पर अब यह संभव नहीं है।
 जब भी अरुण अपने पुराने स्कूल पर आता है तो वह नए बच्चों में अपने दोस्तों को ढूंढने की कोशिश करता है पर अब विद्यालय में जहां पहले वह बैठा करता था वहां कोई और बैठता है और अब उस कक्षा में उसके मित्र नहीं है विद्यालय की याद अरुण को हमेशा आती है पर क्या कर सकते हैं उम्र का पड़ाव और महत्वकांक्षा तथा घरवालों का सपना पूरा करना भी जरूरी है अब अरुण बाहर पढता है पर उसे हमेशा ही स्कूल की याद आती रहती है।।

लेखक– अरुण कुमार शुक्ल


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3 Comments

Gunjan Kamal

06-Dec-2022 03:00 PM

शानदार

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बहुत खूब

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Abhinav ji

27-Nov-2022 08:19 AM

Very nice

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