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लेखनी कहानी -29-Nov-2022

काला टीका

नजर लगती नहीं थी मुझको, जब माँ काला टीका लगाती थी!
बलाएँ दूर कर मेरी, बुरी नजर से बचाती थी!
कहाँ चली गयी तू, माँ बहुत याद आती है!
ऊँगली भरी काजल के टीके से ममता लुटाती थी।

नहीं सफर ये मुझको कभी मुश्किल लगता था!
तेरी दुआओं के पहरे से,मैं हरदम घिरा रहता था!
वो काला टीका तेरा बन आशिर्वाद संग संग रहकर मेरे!
जीवनपथ पर मुझे निडर बन चलने की शिक्षा देता था।

तेरा साया, तेरी परछाई बना काला टीका था!
तू नहीं थी, पर वो तो संग संग चलता था!
थक गया हूँ माँ, मैं ठोकरें खाकर के जग की!
नहीं लौट सकती क्या, तू बनकर काले टीके की शक्ति।

लौट आ माँ तेरा बेटा बुलाता है!
हुई जो भूल कोई भी माफ करने को कहता है!
नहीं रही छत्र छाया तेरी, मैं अकेला हो गया हूँ माँ!
तेरे काले टीके की अहमियत आज समझ गया हूँ माँ।

श्वेता दूहन देशवाल मुरादाबाद उत्तर प्रदेश #२०२२
#यादों का झरोखा

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