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यादों के झरोखे भाग १७

डायरी दिनांक ३०/११/२०२२

  शाम के सात बजकर पैंतीस मिनट हो रहे हैं ।

  कुछ दिनों से मैं पुराने संस्मरणों को लिख रहा हूँ। जिस क्रम में मैं अपने अड़ोसी पड़ोसियों की गाथा लिख रहा हूँ। इस क्रम में मैं बेसाब ताऊजी के बारे में लिख रहा था। इसी संदर्भ में मेरी एक साहित्यिक बहन ने सलाह दी कि ऐसी सच्ची कहानियों को इस तरह संस्मरण के रूप में लिखना उचित नहीं है। अपितु बेसाब ताऊजी की गाथा को कुछ कल्पना से सजाकर कहानी रूप में लिखना उचित रहेगा।

  कहानी और संस्मरण विधा में बहुत अंतर होता है। कहानी के लिये भी कहानीकार अपने आसपास की घटनाओं से प्रेरणा ले सकता है। पर कहानी लिखते समय कितने ही कथन, दृश्य, संवाद आदि अपनी कल्पना से लिखता है। जबकि संस्मरण विधा में अपनी पुरानी यादों को अपने मन के विश्वास के आधार पर निष्पक्ष भाव से लिखा जाता है।

  वास्तव में बेसाब ताऊजी की कहानी संस्मरण विधा के रूप में लिखने की तुलना में अधिक व्यापक सामग्री है। इसलिये बेसाब ताऊजी के विषय में जितना लिख दिया, उतना ही पर्याप्त है। भविष्य में काल्पनिक नाम, काल्पनिक स्थान, काल्पनिक परिवेश का आश्रय लेकर तथा अपनी कल्पना से भी कुछ न कुछ जोड़कर इस कथानक पर एक उपन्यास लिखने का प्रयास करूँगा।

  संस्मरणों के फेर में एक अंटी जी की तस्वीर दिखाई दे रही है। उनकी प्रमुख विशेषता अति थी। वह अति की मोटी थीं। अति की बोलने बालीं थी। अति की लड़ाक थीं। अति का स्नेह करने बाली थीं। अति की भ्रमणशील थीं।

  अंटी जी का जिस महिला से झगड़ा हो जाता, दो दिन बाद उसी महिला को खुद मनाने जातीं थीं। उनका पेट संवाद था - अब बहना। रह यहां रहे हैं तो लड़ने कहीं बाहर तो नहीं जायेंगें।

  कमान से निकला तीर कभी वापस नहीं आता। उसी तरह मुख से निकला शव्द भी वापस नहीं आता। पर वह अंटी जी यही समझती थीं कि मुंह से निकला शव्द भी वापस आ जाता है।

  एक बार नगरपालिका के चुनाव में उनके पूरे परिवार ने एक महिला प्रत्याशी का पूरा सपोर्ट किया। उनके परिवार के सभी सदस्यों ने उनके प्रचार प्रसार में ऐड़ी चोटी का जोर लगा दिया। अंटी जी ने तो महिला प्रत्याशी के संकट निवारण के लिये संकटिया नाम से प्रसिद्ध व्रत भी रखा। कुल मिलाकर उन महिला प्रत्याशी को विजय प्राप्त हुई।

  अक्सर जीतने के बाद नेता अपने जीत के कारण को भूल जाते हैं। वह नेती भी इस बात से अपवाद नहीं थीं। जीतने के बाद वह प्रभावशाली लोगों से तो मिलने आयीं पर उनसे मिलने नहीं गयीं। गुस्से में अंटी जी ने बहुत से लोगों के मध्य उन नेती को बहुत सुनाया।

अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम ।

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2 Comments

Gunjan Kamal

06-Dec-2022 01:17 PM

यथार्थ चित्रण

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Pratikhya Priyadarshini

30-Nov-2022 11:19 PM

Bahut khoob 🙏🌺

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