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3)पहली हवाई यात्रा



शीर्षक = पहली हवाई यात्रा




आइये  चलते  है, अपनी यादों के संदूक से एक और याद गार लम्हा आप सब के साथ साँझा करने,

आइये चलते है  2019 के पहले महीने में, यानी की जनवरी का महीना , जब कड़ाके की ठण्ड  पडती है , सब के दाँत किट किट करते है , चारों और बादल ही बादल तो पहाड़ो पर बर्फ बारी होती,


कोई जाड़े का लुत्फ़ उठाता है  तो कोई सडक किनारे एक पुराने कम्बल में ही थिथुरता हुआ अपनी सर्दी गुज़ार देता है , हर बदलता मौसम किसी के लिए ख़ुशी तो किसी के लिए आजमाइश लेकर आता है 


आइये चलते है, अपने हवाई जहाज के सफऱ को आप लोगो के साथ साँझा करने के लिए

हवाई जहाज , मीलों की दूरी कुछ ही घंटो में पूरी कर देने वाला यातायात का एक साधन , जो बादलों को चीरता हुआ सात समंदर पार हो आता है 


ये बात है  2019 की जब हम पहली बार हवाई जहाज में बैठे , हमारे घर से एयरपोर्ट का सफऱ  करीब  6 घंटे का है , और 6 घंटे का सफऱ पूरा कर हमें दिल्ली एयरपोर्ट जाना था 



हवाई जहाज में बैठने की जितनी ख़ुशी थी उससे ज्यादा दुख अपने घर, दोस्तों, मोहल्ले को छोड़ने का भी था , मन में डर सा था की नया मुल्क केसा होगा, किस तरह के लोग मिलेंगे, अंदर से मन डरा हुआ था, आँखे नम थी  लेकिन फिर भी ऊपर से मुस्कुरा रहे थे , ताकि अंदर चल रहे सवालों से भयभीत होकर खुद को कमज़ोर ना महसूस होने दे


सारी पैकिंग हो चुकी थी, कपडे जूती , मिठाईया सब रख ली थी और सबसे ज्यादा जरूरी पासपोर्ट और वीसा जिसके बिना तो एयरपोर्ट में दाखिल भी नही होने देते


सुबह का समय था, एक एक चीज को अपनी आँखों में बसा कर, सबकी दुआएं, लेकर सबकी आँखों में आंसू देकर अपने घर से निकले, जल्द मिलने की आस देकर हम गाड़ी में बैठ गए 


उसके बाद जैसे जैसे गाड़ी आगे बड़ती गयी  उसी के साथ , घरवाले, घर , दोस्त, मोहल्ला सब पीछे छूटते गए  और करीब 6 घंटे का सफऱ पूरा कर एयरपोर्ट पहुचे ,जिसे बाहर से तो कई बार देख चुके थे  लेकिन अब अंदर से भी देखने जा रहे थे 


एयरपोर्ट के मुख्य द्वार पर खड़े सुरक्षा कर्मी ने हमारा पासपोर्ट और वीसा देखी और सिर्फ हमें ही अंदर जाने दिया, बाकी जो हमें छोड़ने आये थे  वो बाहर ही खड़े हमें हाथ हिला कर आख़री अलविदा दे रहे थे 


उनसे बिछड़ते ही दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था , क्यूंकि जिंदगी का नया सफर शुरू होने जा रहा था, वो भी एक अनजान देश में

दिल को समझाते हुए , अपने चेहरे पर मुस्कान सजाये हुए , धीरे धीरे हम अंदर गए  और फिर एयरपोर्ट कर्मचारी द्वारा हमारे समान को अपने कब्जे में लिया जिसे बोर्डिंग होना कहते है 


जिसके बाद आपका तेह करदा समान  जो की 30 kg के आसापस होता है , आपकी जिम्मेदारी से हट कर उस एयरलाइन्स की ज़िम्मेदारी बन जाता है जिससे आप जा रहे है


उसके बाद दो और तीन स्टेप्स और होते है , जिसमे आपकी चैकिंग और भी अन्य जरूरी कार्यवाही शामिल होती है


मैं बताता चलू हमारी एयरलाइन्स एयर इंडिया थी , उनके कर्मचारियों द्वारा  सारी जरूरी तहकीकात के बाद हमें आखिर कार gate number 21 की और भेज दिया गया जहाँ से हमें अब हवाई जहाज में बैठना था


लेकिन एक परेशानी का सामना हमें करना पड़ा , gate number 21 बहुत ही ज्यादा दूर था, जिसके चलते  हमारी टांगे दर्द से टूट सी गयी थी, लेकिन इसी बहाने  हमें दिल्ली एयरपोर्ट को देखने का मौका मिल गया, क्यूंकि हमारी फ्लाइट में अभी बहुत समय था, और ज्यादातर एयर इंडिया डिले हो जाती है


जिसके चलते  हमने बहुत गहरायी से वहाँ बनी कलकृतियों को गहरायी से देखा , वाकई बहुत ख़ूबसूरती से बनाया गया है ,


काफ़ी देर कुर्सी पर बैठ कर इंतज़ार करने के बाद आखिर कार वो घड़ी आ ही गयी , जिसका मुझे बेहद इंतज़ार था, और वो घड़ी थी हवाई जहाज को अंदर से देखने की


क्यूंकि जब भी कभी हवाई जहाज  हमारी छत से गुज़रता तो मन में यही सवाल आता की आखिर  ये अंदर से केसा दिखता होगा , आखिर कैसे ये लोगो को इतनी ऊँचाई तक ले जाता है 


आज इन सब सवालों के जवाब जानने का अवसर मिल गया था, लोगो की भीड़ के साथ हम भी बाहर खड़े हवाई जहाज की और बढ़ने लगे


अंदर खिड़की से जब हमारी नज़र हवाई जहाज पर पड़ी तो आँखे  चौक सी गयी क्यूंकि जो हमारी छत से इतना छोटा सा दिखता था  वो तो इतना बड़ा  सा है  और तो और जब हम  उसके अंदर घुसे  तो देखा  वो तो एक रेल के डिब्बे जैसा है जिसमे ढेर सारी सीट लगी है और उनपर लोग बैठे है


हमें भी हमारी  निर्धारित जगह पर बैठा दिया गया, और थोड़ी देर बाद एयरहोस्टेस ने आकर सब को कुछ जरूरी जानकारी दी और फिर सबको अपने अपने मोबाइल बंद करने को कहा, क्यूंकि थोड़ी देर बाद हवाई जहाज उड़ान भरने को था


मेरी दिल की धड़कने बहुत तेज हो गयी थी , जब हवाई जहाज ने अपने पथ पर चलना शुरू किया, सबने सीट बेल्ड बांध ली थी और देखते ही देखते पेट में हलकी सी गुद गुदी सी महसूस हुयी और जब नीचे देखा तो हवाई जहाज उड़ चूका था, ये वो लम्हा था जब दिल्ली शहर को हमने ऊँचाई से देखा  सब कुछ बहुत छोटा दिख रहा था, उसी के साथ  घर, मोहल्ला, दोस्त के साथ साथ अब देश भी पीछे छूट रहा था 


थोड़ी देर बाद हम आसमान की ऊँचाई में थे ,  और कानो में एक अजीब सा महसूस हो रहा था , आस पास कुछ नज़र नही आ रहा था , जितना आंनद ट्रैन के सफऱ में आता है , बाहर का सब कुछ दिखता है  उतना मज़ा हवाई जहाज की यात्रा में नही आता , मेरा अपना तजुर्बा है


आखिर कार करीब साढ़े तीन घंटे एक जगह बैठने के बाद हवाई जहाज दुबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर जाकर रुक गया , जिसके बाद पायलट जो की एक महिला थी उसने सब का धन्यवाद किया और हम सब एक एक करके  हवाई जहाज से बाहर  आ गए  और फिर आगे का सफऱ शुरू होगया



मिलते है ऐसी है  अगली किसी पुरानी याद के साथ  जब तक के लिए  अलविदा, खुश रहिये ,मुस्कुराते रहिये 


यादों के झरोके से 








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4 Comments

Gunjan Kamal

03-Dec-2022 11:30 PM

यथार्थ चित्रण

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Arina saif

03-Dec-2022 06:18 PM

Shaandar

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Sachin dev

03-Dec-2022 04:43 PM

Nice

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