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लेखनी प्रतियोगिता -03-Dec-2022

  ख्वाहिशें

मैं ख्वाहिशों का अंबार लगाता गया
वो हर ख्वाहिश पूरी करती गई
मैं सपनो को सजाता गया
वो बन के फरिश्ता पूरा करती गई
मैं भूल गया कि वो चाहत थी मेरी
बन के अरमान मेरा वो सजती गई
और मैं उसे सजाता गया 
जानता था वो सच नहीं है छलावा है
फिर भी उसके पीछे भागता गया
आज भी ख्वाहिशें अधूरी थी मेरी
सपने भी टूटे हुए थे मेरे
पर आरजू थी उसे पाने की
वक्त के साथ में उसके पीछे भागता गया
न वो मिली न सपने पूरे हुए 
बस ख्वाहिशें ही थी जो मेरी अधूरी रही 
पूरी हो के भी वो पूरी न हुई

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5 Comments

Pratikhya Priyadarshini

04-Dec-2022 10:39 PM

बेहतरीन 💐👌

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Sachin dev

04-Dec-2022 10:36 AM

Well done

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Abhinav ji

04-Dec-2022 09:32 AM

Very nice👍

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