V.S Awasthi

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मानव जीवन

प्रतियोगिता हेतु रचना
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मानव जीवन
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पंचतत्व मिल बना शरीर इसको एक दिन मिट जाना है।
लोभ,मोह, माया में फंसकर इसको यहीं बिगड़ जाना है।।
फिर हम इस पर गर्व क्यों करते मेरा इसमें क्या रखा है।
इस शरीर की चाभी को ईश्वर ने अपने हाथों में रखा है।।
उसके ही तनिक इशारे पर हम ऊपर उठ जाते हैं।
उसकी नज़र हुई नीची तो हम नीचे गिर जाते हैं।।
फिर भी हम अहम में फूल रहे हैं मैंने ही सब कुछ कर डाला।
अहंकार से भरा है मानव ज्ञान चक्षु में है ताला।।
अहंकार से भरा ये मानव केवल खुद को देख रहा है।
जब अनर्थ कुछ हो जाता है तब किस्मत को कोस रहा है।।
मानव तन मिट्टी का बना है मिट्टी में ही मिल जाना है।
चाहे जितना बचा के रखो एक दिन इसको जल जाना है।।
मानव जीवन एक पथिक सदृश है इसको तो चलते जाना है।
ईश्वर की जिस दिन नज़र झुकेगी उस दिन इसको रुक जाना है।।
विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर में

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4 Comments

Gunjan Kamal

04-Dec-2022 05:29 PM

शानदार

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Abhinav ji

04-Dec-2022 09:42 AM

Very nice👍

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Arina saif

03-Dec-2022 06:28 PM

Shaandar

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