Prbhat kumar

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जिंदगी

शीर्षक:- जिन्दगी 
टेढ़ी मेढ़ी सड़क है जिन्दगी।
खूद बस में कहाँ है जिन्दगी। 
चाहकर रूकती नहीं जिन्दगी। 
वक्त जैसे गुजरती है जिन्दगी।

मुट्ठी भर रेत सी है जिन्दगी।
धीरे-धीरे फिसलती जिन्दगी। 
मोम जैसी पिघलती जिन्दगी। 
दीप जैसे जलती है जिन्दगी।

शून्य से शुरू होती है जिन्दगी। 
क्रमशः घटती जाती है जिन्दगी। 
पुष्प जैसी कभी थी ये जिन्दगी। 
सूखे पत्तो से अब हुई जिन्दगी। 

धूप में जैसे तपती है जिन्दगी। 
सरिता जैसी बहती है जिन्दगी। 
एक दिन सहस रूकती जिन्दगी। 
फिर कभी ना चलती है जिन्दगी।

स्वरचित एवं मौलिक रचना 
नाम:-प्रभात गौर
पता:- नेवादा जंघई प्रयागराज उत्तर प्रदेश

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5 Comments

Gunjan Kamal

04-Dec-2022 05:30 PM

शानदार प्रस्तुति 👌

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Rajeev kumar jha

04-Dec-2022 10:46 AM

शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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Abhinav ji

04-Dec-2022 09:41 AM

Very nice👍

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