एक ऐसा एहसास-03-Dec-2022
कविता -एक ऐसा एहसास
कविता नही ,कुछ खास लिख रहा हूं
तेरे लिए एक ऐसा, एहसास लिख रहा हूं।
मिल कर न बिछड़ने का
बिछड़कर फिर मिलने का
तेरे लिए मन का, विश्वास लिख रहा हूं।
कविता नही कुछ खास लिख रहा हूं
तेरे लिए एक ऐसा, एहसास लिख रहा हूं।
हाथों में कलम लेकर
कागज पे जब भी लिखता
मानों बैठकर, तेरे पास लिख रहा हूं।
कविता नही, कुछ खास लिख रहा हूं
तेरे लिए एक ऐसा, एहसास लिख रहा हूं।
कागज सा तेरी मुखड़ा
स्याही को बना कुमकुम
चुन चुन के हरेक अक्षर से, प्यास लिख रहा हूं।
कविता नही, कुछ खास लिख रहा हूं
तेरे लिए एक ऐसा, एहसास लिख रहा हूं।
सोंच सोंच लिखता हूं
शून्य से शिखर तक
मानों तेरे मन का, मिठास लिख रहा हूं।
कविता नही, कुछ खास लिख रहा हूं
तेरे लिए एक ऐसा, एहसास लिख रहा हूं।
पन्नों को जब पलटता
अंगुलियों के बीच रखकर
तन मन को तेरे छूने की, आस लिख रहा हूं।
कविता नही, कुछ खास लिख रहा हूं
तेरे लिए एक ऐसा, एहसास लिख रहा हूं।
कविता की कल्पनाओं में
तू भावों की परी हो,
होता है मन में बैठी हो, आभास लिख रहा हूं।
कविता नही, कुछ खास लिख रहा हूं
तेरे लिए एक ऐसा, एहसास लिख रहा हूं।
लिख कर बना लूं अपना
जन्मों जनम तक तुझको
दो जिस्मों में एक प्राण का, प्रयास लिख रहा हूं।
कविता नही, कुछ खास लिख रहा हूं
तेरे लिए एक ऐसा एहसास लिख रहा हूं।
रचनाकार -रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर यू
Pratikhya Priyadarshini
04-Dec-2022 09:40 PM
वाह 🙏 आदरणीय बहुत ही खूबसूरत कविता लिखे हैं आप..🌸🌺👍🙏
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Gunjan Kamal
04-Dec-2022 05:05 PM
शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻
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Sachin dev
04-Dec-2022 10:55 AM
Well done
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