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लेखनी कहानी -06-Dec-2022 उत्सवों का देश

गजब का देश है ये । नित नये उत्सव होते रहते हैं यहां पर । कभी तीज त्यौहार तो कभी व्रत, कथाऐं । जितने तरह के लोग उतने तरह के उत्सव । भाषा, बोली, पहनावा , खानपान, रीति-रिवाज, धर्म, जाति, पंथों में विभक्त है देश फिर भी सांस्कृतिक रूप से एक है । यह एकता आज से नहीं है, यह तो आदिकाल से ही चली आ रही है । कुछ बुद्धूजीवी यह मान बैठे हैं कि भारत का जन्म 1947 में हुआ था, पर वे यह भूल जाते हैं कि आदि शंकराचार्य के समय भी यह देश एकसूत्र में बंधा था और उनसे पहले भी एकात्मता के उपवन में बहारों की तरह महक रहा था । पर जिनकी सोच बहुत सीमित हो, ज्ञान भी उधार का यानि अंग्रेजों की गुलामी का हो तो उनसे ज्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिए । 

बहुरंगी संस्कृति होने का एक फायदा तो यह है कि हर आयोजन को उत्सव की तरह मनाने की आदत हो गई है हमें । अब जन्म को ही ले लो । जन्मोत्सव को कितने धूमधाम से मनाते हैं लोग । और मनायें क्यों नहीं ? बच्चे का आगमन "गणेश" का आगमन माना जाता है और गणेश जी तो वैसे ही शुभता के प्रतीक हैं इसलिए बच्चे के जन्मोत्सव पर जोरदार उत्सव तो बनता है । बेटी का जन्म "लक्ष्मी" के घर आने जैसा है । 

इसी तरह विवाहोत्सव भी है । दो आत्माओं का मिलन कोई छोटी बात है क्या ? विवाह मतलब भगवान श्रीराम और माता जानकी का मिलन । हर पुरुष श्रीराम का रूप है और हर नारी माता सीता का रूप है इसलिए विवाह का उत्सव भी बहुत बड़ा उत्सव होता है । विवाह होगा तभी तो परिवार आगे बढेगा । अब ये मत कह देना कि सिर फुटौव्वल की नौबत भी उसके बाद ही आती है । 

यहां के लोग इतने उत्सवधर्मी हो गये हैं कि तलाक को भी उत्सव की तरह मनाने लगे हैं । हमारे एक मित्र का तलाक हो गया था । उन्होंने फोन करके यह जानकारी हमें ऐसे दी जैसे उन्होंने कोई बहुत बड़ा किला फतह कर लिया हो । साथ साथ में एक ग्रांड पार्टी की भी सूचना दी । शहर के सबसे बड़े होटल में पार्टी रखी थी उसने । एक से बढकर एक व्यंजन बनवाये थे "कॉन्टीनेन्टल" । आजकल पार्टियों की यही पहचान हो गई है । आधुनिक लोग "कॉन्टीनेन्टल फूड" ही खिलाते हैं । ऐसी पार्टियों में "पीने" की भी पूरी व्यवस्था होती है । हमने पूछा कि यह तलाक की पार्टी है या विवाह की ? तो वे बोले "चुडैल से पीछा छूटा है । ये क्या कम खुशी की बात है" ? मैं निरुत्तर हो गया । क्या कहता ?  
उनकी धर्मपत्नी भी हमारी दूर की परिचित थीं । एक दिन वो भी मिल गईं । उन्होंने एक निमंत्रण पत्र देते हुए कहा "भाईसाहब, तलाक की पार्टी रखी है, जरूर आइयेगा" । 
मेरे मुंह से निकल गया "तलाक की भी कोई पार्टी होती है क्या" ? 
"आप सही कहते हैं भाईसाहब, दरअसल यह तलाक की पार्टी नहीं है , यह तो 'राक्षस' से पीछा छूटने की पार्टी है । अब आप ही बताइये कि एक रावण के साथ रहते रहते और कब तक शोषित होती रहती मैं ? अब बला टल गई है तो ये कली भी खिल गई है" । 
मैंने देखा कि तलाक के बाद मैडम जी फिर से खिलकर जूही की कली बन गई हैं । ऐसे हालात में एक ग्रांड पार्टी तो बनती है ना । और अपना क्या है, अपने तो दोनों हाथों में लड्डू हैं । दिल ने कहा "ऐसी पार्टी होती रहें तो अच्छा है" पर हम ठहरे संस्कारी , तो ऐसे कैसे सोच सकते हैं ? 

अपने यहां तो "अंतिम संस्कार" भी बड़ी धूमधाम से मनाते हैं लोग । जब एक "ज्ञानी" से इसका कारण पूछा तो वे कहने लगे "हम सब उस परम पिता परमेश्वर के अंश हैं जो सृष्टि रचियता, नियंता, संहार कर्ता भी हैं । मृत्यु होने पर शरीर मरता है आत्मा नहीं मरती । आत्मा तो परमात्मा में विलीन हो जाती है अर्थात "अपने घर" चली जाती है । तो अब बताओ कि आत्मा की घर वापसी का उत्सव मनाया जाना चाहिए या नहीं" ? ज्ञानी जी ने मुझे निरुत्तर कर दिया । 

आजकल गुजरात में चुनाव चल रहे हैं । कल ही दिल्ली नगर निगम के चुनाव हुए थे । एक महीने पहले हिमाचल प्रदेश के चुनाव हुए थे । अगले तीन चार महीने में कर्नाटक के चुनाव हो जायेंगे । फिर पांच राज्यों के होंगे उसके बाद लोकसभा के आम चुनाव आ जायेंगे । इस तरह यह चुनाव यज्ञ बारह महीनों चलता रहता है । कभी लोकसभा तो कभी राज्य सभा के चुनाव  । राज्यों की विधान सभाओं एवं विधान परिषदों के चुनाव अक्सर होते ही रहते हैं । इसके अलावा नगर निगम, नगर पालिका, ग्राम पंचायत, जिला परिषद के चुनाव भी हैं । इनमें से अगर किसी के भी चुनाव नहीं हों तो राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के चुनाव तो होने ही हैं । उपचुनाव अलग हैं । इस तरह जब देखो तब देश के किसी न किसी हिस्से में चुनाव होते नजर आ जाते हैं । मतलब कि चुनाव हमारी संस्कृति का अटूट हिस्सा हैं । 

लोगों का रैला उमड़ता है चुनावों में । जैसे कि वे इन्हीं का इंतजार करते रहते हों कि कब चुनाव हों और कब वे गाड़ियों में भर भर कर रैलियों, चुनावी सभा में आयें । वैसे इसमें जाता क्या है ? कुछ नहीं , बल्कि आता ही आता है । फ्री की बस, फ्री का खाना, फ्री में पानी की बोतल और भाषण झेलने का 1000 रुपए अलग । मौजां ही मौजां है । लोगों के पास समय खूब है , कोई कमी नहीं है समय की । चौराहों पर ताश पीटने से तो अच्छा है किसी रैली या जनसभा में जायें और 1000 रुपएकूट लाऐं । इसे कहते हैं आम के आम और गुठलियों के भी दाम । जो चुनाव जीत जाता है , उसकी तो जैसे लॉटरी खुल जाती है । वह एक बार में ही सात पुश्तों का इंतजाम कर लेता है । अब ऐसी दशा में चुनावों को उत्सव की तरह नहीं लड़ें तो और क्या करें" ? 

चुनावों से याद आया कि चुनावों में जाने के लिए पहले माहौल बनाया जाता है । पूरे देश में इतना बड़ा आयोजन होता है जिसमें लगभग 90 करोड़ मतदाता भाग लेते हैं तो इन मतदाताओं के "माइण्ड वाश" के लिए तरह तरह के प्रयत्न किये जाते हैं । चुनावी घोषणापत्र को हम छोड़ दें तो एक सामान्य सी प्रवृत्ति प्राय: सभी दलों में देखने को मिलती है । चुनावों से ठीक पहले "यात्राओं" की बाढ आ जाती है । कोई भारत जोड़ो यात्रा निकालता है, कोई भारत तोड़ो यात्रा  तो कोई परिवर्तन यात्रा । कोई आक्रोश यात्रा निकालता है तो कोई सुशासन यात्रा । कोई "रथयात्रा" निकालता है तो कोई "पैदल यात्रा" करता है । भांति भांति के लोग, भांति भांति के दल और भांति भांति की यात्राऐं । हजारों की संख्या में लोग शामिल होते हैं इन यात्राओं में । वैसे भी इस देश में लोगों का बड़ा अच्छा अनुभव है यात्राओं का । खाटू श्याम जी की यात्रा से लेकर सालासर धाम, रामदेवरा, कल्याण जी की यात्रा ये तो छोटे छोटे उदाहरण हैं । चारधाम यात्रा , अमरनाथ यात्रा , कैलाश मानसरोवर यात्रा , वैष्णो देवी यात्रा , द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा वगैरह वगैरह । इसी में हजयात्रा भी शामिल कर लो  । इसके लिए तो सरकारें भी अनुदान देती थी । ये यात्राऐं भी किसी उत्सव से कम नहीं होती हैं । मतलब कि उत्सव हर आयोजन में झलकता है । 

एक बात और कि जितने भी आन्दोलन होते हैं वे चाहे किसी भी नाम से हों पर होते तो अराजक ही हैं । उनमें जमकर तोड़फोड़ की जाती है और सार्वजनिक संपत्ति का जो नुकसान किया जाता है वह अवर्णनीय है । लोग तो उनमें भी ऐसे ही भाग लेते हैं जैसे कि वे कोई उत्सव हों । थोड़े दिनों पूर्व दिल्ली की सड़कों पर बेचारे आंदोलन कारियों को अखरोट का हलवा खाकर काम चलाना पड़ा था और ड्राई फ्रूट्स का चबैना खाकर दिन गुजारने पड़े । पीने को पानी भी नहीं था इसलिए इंग्लिश दारू पीकर सवा डेढ साल निकालना पड़ा । ये होती है देश सेवा । भई वाह ! मजा आ गया । सुना है कि भारत तोड़ो यात्रा में भी ऐसे ही माल से काम चलाना पड़ रहा है । बेचारे । 

श्री हरि 
6.12.22 


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4 Comments

Peehu saini

06-Dec-2022 05:53 PM

Anupam 🌸👏

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Hari Shanker Goyal "Hari"

07-Dec-2022 07:22 AM

धन्यवाद जी

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Gunjan Kamal

06-Dec-2022 12:53 PM

👌👏

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Hari Shanker Goyal "Hari"

06-Dec-2022 04:15 PM

🙏🙏

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