5) अब्बू का खेत ( यादों के झरोके से )
शीर्षक = अब्बू का खेत
एक बार फिर अपनी यादों के संदूक में बंद गुज़रे दिनों की यादों को आप सब के समक्ष रखने जा रहा हूँ, उम्मीद करता हूँ आप सब को पसंद आएगा मेरा ये छोटा सा यादगार संस्मरण
ये बात है उन दिनों की जब मोबाइल नामी फितना हम सब से कोसो दूर था, तब तो हमें इसके बारे में कुछ भी नही पता था और हमने सोचा भी नही था की ऐसा भी कुछ हो सकता है जिसके अंदर पूरी दुनिया समाई हुयी होगी और ये हमारे आने वाली नयी पीड़ी के बच्चों के बचपन को अजगर की भांति निगल जाएगा और बड़ो के साथ साथ छोटे बच्चों को भी अपना गुलाम बना लेगा
शुक्र है की ये मोबाइल नामी कीड़ा हमारे बचपन में नही जन्मा था , नही तो जो बचपन की यादें हमारे दिलो दिमाग़ में बसी हुयी है, जिन्हे याद कर पल दो पल के लिए इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में हमारे चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ जाती है , आज वो भी नही आ पाती
आइये चलते है, अपने टॉपिक अब्बू के खेत के बारे में व्याख्यान करने, ऐसा भी क्या है ? इस खेत में जिसे मैं यादों के झरोके के माध्यम से आप सब के समक्ष रख रहा हूँ
तो आइये बताता हूँ, आखिर क्यू मैं इस खेत और इससे जुडी यादें आपके साथ साँझा करना चाहता हूँ
ये खेत जो कहने को तो हज़ारो घने आम, अमरुद , नीबू के पेड़ो से घिरा एक बाग था लेकिन फिर भी हम सब इसे खेत बुलाते थे
ये खेत हमारा नही बल्कि हमारे उन्ही पड़ोसियों का था, जिनके घर में हमारे घर की खिड़की खुलती थी , ये खेत उनका पुशतेनी खेत था जो बाप दादा के ज़माने से चला आ रहा था और आज भी वो वैसा ही हरा भरा है उम्मीद करता हूँ आगे भी वो ऐसे ही हरा भरा रहेगा मनुष्य के बढ़ते पैसे के लालच में वो अपना अस्तित्व नही खोएगा
अब्बू का खेत और उससे जुडी यादें तो इतनी है की लिखते लिखते सुबह से शाम हो जाए पर इस व्यस्तता भरी जिंदगी में समय नही है की उन सब यादों को कलम की सहायता से आप सब के साथ साँझा कर सकूँ लेकिन फिर भी बहुत सी ऐसे पल है जिन्हे आपके साथ साँझा करने में मुझे बेहद ख़ुशी होगी
जैसा की मैंने बताया वो खेत नही बल्कि एक घने पेड़ो से घिरा एक बाग था और अब भी है , हमारे बचपन में उसके आस पास आबादी बहुत कम थी क्यूंकि वो थोड़ा दूरी पर बना था और दूसरी बात उसके बिलकुल नजदीक में ही मरघट ( शमशान ) था जिसके पीछे एक नदी बहती थी जो की उस बाग से होकर गुज़रती थी
उस समय लोगो का कहना था की इस नदी पर एक नट ( एक प्रकार का भूत जो की सफ़ेद चादर औड़े नदी के ऊपर बने एक पुल पर सोता था, और जो कोई भी उसे देख लेता वो उस पर हावी हो जाता ) रहता है , जिस कारण उस खेत में किसी बड़े के साथ जाना ही एक मात्र उपाय था
लेकिन हम बच्चें कहा किसी की सुनने वाले थे, और सुनते भी क्यू हमारे पास उस समय करने को था ही क्या, बड़े बड़े दिन, बड़ी बड़ी दुपहरिया, न ही इतनी पढ़ाई जितनी आजकल के बच्चें करते है , घर वालों से झूठ बोल कर निकल पड़ते थे अब्बू के खेत की और, और सुबह से दोपहर तक वही मौज मस्ती करते, कभी आम के पेड़ पर चढ़ते तो कभी अमरुद के पेड़ से अमरुद तोड़ कर खा लेते और कभी कभी तो खेत के पीछे बह रही नदी पर नहा भी लेते, डरते थे की कही नट न आ जाए लेकिन फिर भी नहा धोकर भाग आते थे
घर आने से पहले सब को अच्छे से समझा दिया जाता था की कुछ भी हो जाए लेकिन अपना मुँह मत खोलना की कहा से आ रहे है , कुछ भी झूठ बोल देना पर अब्बू के खेत का नाम मत लेना नही तो सबकी मार लगेगी
आम के दिनों में तो हम सब वही डेरा डाले रहते, वहाँ बनी झाड फूस की झोपडी में ही खेल कूद करते और साथ ही साथ आम भी खाते
उसी के साथ साथ अपने अपने घरों से चोरी छिपकर दाल, चावल नमक, सब्जी लाकर उसी खेत पर भत कुलिया बना कर खूब मजे से खाते
उसके दरखतों पर चढ़ कर लब्बा ताश ( एक प्रकार का खेल ) खेलते, वो सिर्फ खेत नही बल्कि हमारा दूसरा आशयाना था , जहाँ हमारा बचपन खेल कूद , लड़ाई , रूठना मनाना सब वही हुआ, सच में वो वो खेत और उससे जुडी यादों का कोई मोल नही
आज भी उस खेत में जाने पर सारा बचपन आँखों के सामने चलचित्र की भांति अपने आप प्रकट हो जाता है और आँखों में नमी आ जाती है और सिर्फ मन से यही एक आवाज़ निकलती है " हाय, कितना प्यारा था बचपन "
ऐसे ही किसी याद गार लम्हें को आप सब के समक्ष रखने का प्रयास करूंगा जब तक के लिए अलविदा,
यादों के झरोके से
Gunjan Kamal
07-Dec-2022 08:53 AM
बहुत खूब
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Parangat Mourya
07-Dec-2022 12:02 AM
Very nice 👍
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Zakirhusain Abbas Chougule
06-Dec-2022 10:38 PM
Nice
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