यादों के झरोखे भाग २३
डायरी दिनांक ०६/१२/२०२२
रात के आठ बज रहे हैं।
संसार में अच्छा करने के बाद भी अपमान मिल जाता है। दूसरों का हित करते रहने के बाद भी बहुधा वह सम्मान नहीं मिलता जो कि मिलना चाहिये। कई बार तो मनुष्य जिनकी मदद करता है, वे भी अचानक कुछ ऐसा कर देते हैं कि समझ में ही नहीं आता कि उनके इस कारण के पीछे क्या रहस्य था।
अभी एक रिश्तेदार भाई के निधन की सूचना प्राप्त हुई है। कुछ ही वर्षों के अंतराल में दो भाई पंचतत्वों में विलीन हो गये। जबकि उनकी माता जी लगभग अस्सी वर्ष की आयु तक जीवित हैं। और अपने जीते जी अपने दो पुत्रों के निधन का साक्षी हैं।
कुछ वर्ष पूर्व हमारे आफिस में एक विकलांग कर्मचारी कार्यरत थे। मेरी याददाश्त में उनका उत्पीड़न करने का दूसरे कितने ही वरिष्ठ अधिकारियों ने प्रयास किया। जिसका मैंने हर बार विरोध किया। एक बार तो उसका स्थानांतरण जलेसर करने की पूरी तैयारी कर दी थी। तुर्रा यह था कि नौकरी करेगा तो जाना पड़ेगा। उस समय मैंने अपने स्तर से प्रवलतम विरोध कर उसका स्थानांतरण रुकबाया। एक विकलांग बालक जिसने एटा शहर में अपने रहने की व्यवस्था बना रखी है, उसी का जलेसर क्यों स्थानांतरण होना चाहिये।
एक अधिकारी ने दबे स्वर में बताया कि वह कुछ फिदरती प्रवृत्ति का है। इसलिये इसे सबक सिखाना जरूरी है।
इस तथ्य का भी मैंने ही विरोध किया। विभागीय हित के अतिरिक्त किसी को सबक सिखाने की मंशा से किसी का भी स्थानांतरण करने का किसी भी अधिकारी को अधिकार नहीं है।
सौभाग्य कहो या दुर्भाग्य कि कुछ समय बाद वह मेरे अधीनस्थ बन गये। मेरे आज तक के कैरियर में मुझे किसी भी अधीनस्थ ने इतना परेशान नहीं किया जितना कि उन्होंने किया। नाकारा होना भी क्षम्य है। पर जिस कार्य के लिये उनकी ड्यूटी थी, उससे संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों के फोन वह मेरे लिये डाइवर्ट करने लगे। प्रशासनिक अधिकारियों की वीडियो कांफ्रेंसिंग अक्सर बीच में रुक जाती थी। तथा इसके लिये जिम्मेदार वह अधीनस्थ मेरे खिलाफ खेल खेलने में व्यस्त थे।
ऐसे ही एक भावुक क्षण में मैंने उनसे कह दिया कि भाई। मैंने तो आपका उस समय भी सहयोग किया था जबकि कोई भी तुम्हारे साथ न था। यदि तुम्हारा स्थानांतरण जलेसर हो जाता तो आपको कितनी परेशानी होती।
भाई का उत्तर और भी ज्यादा अच्छा था। आपने मेरा साथ दिया, उसके लिये आपका धन्यवाद। पर मैं अपनी फिदरत किस तरह छोड़ सकता हूं।
जीवन में जो प्रतिकूल परिस्थिति में साथ दे, उन्हें भुलाना संभव नहीं है। जो प्रतिकूल परिस्थितियों का जन्मदाता हो, उसे भी भुलाना संभव नहीं है। और जो अपनी छोटी फिदरत को छोड़ पाने में असमर्थ हो, उसे भी भुला पाना संभव नहीं है।
कब और कैसे कोई महत्वपूर्ण सूचना प्राप्त हो जाये, कहा नहीं जा सकता। कई बार तो जिस जानकारी के लिये वर्षों निकल जायें, वही जानकारी अनायास ही प्राप्त हो जाती है। कई बार आश्चर्य भी होता है कि इतनी स्पष्ट जानकारी मिलने के बाद भी इस जानकारी की तरफ किसी का ध्यान क्यों नहीं जा रहा। संभव तो यह भी हो सकता है कि वह अनोखी जानकारी भले ही मेरे लिये नयी हो पर किसी अन्य को उस विषय में पूर्ण जानकारी हो। विरक्ति का प्रदर्शन करने बाला वह खुद उस तथ्यों का पूर्ण ज्ञाता हो जिन्हें जानने के बाद किसी भी तरह की आसक्ति का कोई प्रश्न ही नहीं रहता।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम ।
Raziya bano
07-Dec-2022 10:22 AM
Shaandar
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Gunjan Kamal
07-Dec-2022 08:52 AM
👏👌🙏🏻
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Parangat Mourya
06-Dec-2022 11:59 PM
बहुत सुंदर 👌👍🌹
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