Madhu Arora

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उलझन

उलझन
उलझन जीवन में हर घड़ी,
कभी ना सुल झाई जाए।
साथ मिलकर तुम चलो,
हल साथ ले आए।
एक दूजे की उलझन सुलझाए,
मौज भरी हम रहा बनाएं।
प्रेम से मिल कर रहे सदा हम,
 उलझन फिर किसी को ना सताए।
 फूल भरे सब मार्ग हो,
 हल भी खुद आ जाए।
 ईर्ष्या से तुम बचो सदा
 उलझन यही बढाए।
 सब अपना-अपना भुगते यहां,
 क्यों मन में बैर उप जाए
 जीवन तो सुख दुख की भाषा,
 क्यों हम जी को जलाएं।
 एक जाए तो दूजा आए,
 बिस्तर अपना जमा ना पाए।
 उलझन तो चिंता को घेरे,
 सिर पकड़ कर बैठे सारे।
 सुध बुध खोए अपनी जान,
 चिंता को तू बैरी मान।
उलझन में जब मन है फंसता,
रास्ता फिर कोई ना जंचता।
मन में उथल-पुथल करता,
बुद्धि को विपरीत है रखता।
हे प्रभु सबको दो वरदान,
उलझन का ना हो कोई काम।
मस्त ,व्यस्त ,सब स्वस्थ रहें,
इतना दो सबको वरदान।

         रचनाकार ✍️
         मधु अरोरा
    

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5 Comments

Varsha_Upadhyay

08-Dec-2022 08:42 PM

शानदार

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Punam verma

08-Dec-2022 08:30 AM

Nice

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Abhinav ji

08-Dec-2022 07:41 AM

Very nice👍👍

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