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मैं फूल नहीं कागज़ का

मैं फूल नहीं कागज़ का

ना मैं खिलूंगा, ना महकूंगा।

ये मेरी मर्जी है, अपनी ख्वाहिश है
मैं कांटा हूं, कांटा ही रहूंगा।

मैं चुभूंगा, दर्द दूंगा
मगर किसी की हिफाज़त करके रहूंगा

हां ये अफसोस भी है दिल को मेरे
कि उसे बुरा लगता हूं
सबके हाथों को 
उसकी आँखों को चुभता हूं

उसको ये मेरा 
  बंधन न स्वीकार है
खिलखिलाते पुष्प के दर
मुझ कांटे का होना बेकार है,


चुनौतियों से हर रोज उलझता
जमाने भर के ताने सहता

अपने उसूलों पर जिंदा 
दुःखों का एक बंद पुलिंदा

और नहीं मिला कुछ हिस्से में
बस ताने ही भरे इस किस्से में!

 चाहे
 ये जीवन मेरा 
 किसी को न स्वीकार हो,
 हिफाजत उसकी जो न कर सका
 मुझको सौ सौ धिक्कार हो।

#MJ 

©®मनोज कुमार "MJ"

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9 Comments

Reena yadav

02-May-2023 11:40 PM

👍👍

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Pranali shrivastava

10-Dec-2022 07:52 PM

बहुत ही सुन्दर

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Thank you so much

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