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यादों के झरोखे भाग २९

डायरी दिनांक १२/१२/२०२२

दोपहर के तीन बज रहे हैं।

  आज पहले मम्मी के काम से बैंक ओफ इंडिया गया। पिछले कई वर्षों से बैंक ओफ इंडिया के कर्मचारियों की कार्यप्रणाली चिंता का विषय बन रही है। ग्राहकों का काम हो पाये या नहीं पर कोई भी सही बताने को भी तैयार नहीं। भीड़ बेबजह धक्का मुक्की करती रहती है। काउंटरों पर कोई मार्किंग नहीं है तथा कोई भी बैंक कर्मचारी कुछ भी बताने को तैयार नहीं है।

  मम्मी का एटीएम कार्ड लगभग तीन साल पहले खो गया था। उस समय से कितनी ही बार मम्मी के साथ यहाँ आया हूँ। यद्यपि एटीएम की किट देने का प्रावधान है। पर वह किट मिलती नहीं है। घर के पते पर भेज देंगें, कहकर फार्म भरबाने को कहते हैं। चूंकि घर के पते पर एटीएम मंगाने का कोई लाभ नहीं है, इसलिये आवेदन करते नहीं हैं।

  उसके बाद बैंक ओफ बड़ोदा जाना था। आरंभ से ही बैंक ओफ बड़ोदा के कर्मचारियों का व्यवहार काफी सहयोगी रहा है। हालांकि इस समय मेरा ज्यादातर व्यवहार आईसीआईसीआई से हो रहा है। पहली बार यह रही कि पुरानी जगह पर बैंक ओफ बड़ोदा की ब्रांच ही नहीं मिली। जानकारी करने पर ज्ञात हुआ कि अब बैंक ओफ बड़ोदा अरांव रोड पर है जो कि मेरे घर से बहुत कम दूरी पर है। इतनी दूर घूमना बेकार हुआ। फिर बैंक ओफ बड़ोदा के निर्दिष्ट स्थल पर पहुंचा। क्योंकि मैंने कई सालों से बेंक ओफ बड़ोदा से कोई व्यवहार नहीं किया है, इस लिये मेरा खाता लोक मिला। जिसका प्रपत्र भरकर जमा कर दिया है।

  घर की काफी सफाई हो चुकी है। वर्षों से बंद घर वैसे भी बहुत गंदा हो जाता है। इस बार मुख्य रूप से घर की सफाई के लिये ही आया हूँ। कितनी ही बार पहले भी प्रोग्राम बनाया था। पर हर बार किसी न किसी बजह से परेशानी आती रही थी। मनुष्य की एक विशेषता है कि वह जब तक टाल सकता है, टालता रहता है। तथा जब करने को आ जाता है तब करके ही रुकता है। मेरी भी स्थिति कुछ ऐसी ही है।

  आजकल प्रतिलिपि प्रीमियम में सम्मिलित मेरी एकमात्र कहानी दुनिया के रंग पर गड़बड़ कमैंट आ रहे हैं। अभी तक इस धारावाहिक को जितनों ने पढा, इसकी तारीफ ही की। कुछ पाठकों ने इसे बहुत अच्छी समीक्षाओं से सराहा। अब एक पाठिका मात्र पहले भाग पर ही बोरिंग की समीक्षा कर रही हैं। एक दूसरे पाठक पहले भाग की समीक्षा में प्रश्न कर रहे हैं कि क्या आपको लगता है कि यह कहानी अच्छी है।

  अच्छा और बुरा का निर्णय सभी का अलग अलग होता है। मैं कह सकता हूं कि मेरी कहानी जीवन की उन घटनाओं पर आधारित है जो कि अक्सर हमारे साथ होती रहती हैं। साथ ही साथ सभी महान लेखकों ने भी इसी तरह से उपन्यास लिखे हैं। जिनमें कथानक के साथ साथ मनोचित्रण का बखूबी चित्रण किया है।

  साथ चलने बालों का और साथ छोड़ देने बालों का कोई न कोई कारण अवश्य होता है। पर कई बार उस कारण का पता नहीं चलता। वैसे भी किसी को कभी भी साथ चलने के लिये मजबूर नहीं कर सकते। तथा जो बेबजह दूरी बनाये, उससे खुद दूरी बना लेना ही ठीक है।

  अभी एक मासिक साहित्यिक कर्तव्य पूरा करना शेष है। जल्दी ही उसे भी पूरा करना है। यदि हम अपने निर्धारित कार्य समय पर पूरा नहीं करते, तब अधिकांश की अपेक्षाओं से गिरते जाते हैं। साथ ही साथ यह भी सत्य है कि कुछ काम मन की स्थिति के साथ ही पूरे होते हैं।

  कल बहन श्रीमती जया शर्मा द्वारा लिये श्री सत्यम सिन्हा जी का साक्षात्कार पढा। उन्होंने कुछ बातें बहुत बड़ी बेबाकी से बतायी। मुझे भी विगत कई महीनों से लग रहा है कि आजकल स्त्री विमर्श साहित्य की आड़ में अश्लील साहित्य भी लिखा जा रहा है। अनाचार को स्त्री स्वतंत्रता से जोड़कर दिखाया जा रहा है। जबकि अनाचार कभी भी स्त्री की, खासकर भारतीय स्त्री की पहचान नहीं है। स्त्री पूज्य है तो अपने विशिष्ट गुणों के लिये जो कि किसी भी पुरुष में दुर्लभ हैं।

  अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम ।
 


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1 Comments

Gunjan Kamal

12-Dec-2022 03:54 PM

👏👌🙏🏻

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